ग़ज़ल-रउफ परवेज

ग़ज़ल-1

मिल के गुलशन को चलो अपने बसाया जाए
प्यार के फूलों से फिर उसको सजाया जाए।
आज घर-घर में शज़र ऐसा लगाया जाए
जिसका हमसाए के आंगन में भी साया जाए।
जो सहारा बने और दिलों को बांटे
ऐसी दीवारें तअस्सुब को गिराया जाए।
साफ गंगा है न जमना है न झेलम दरिया
चल कशमीर के झरनों में नहाया जाए।
लाजवंती का दरिन्दा कोई लूटे न सुहाग
मां की रक्षा करें बहनों को बचाया जाए।
ख़ूने नाहक से हैं आलूदा जो ख़ूनी पंजे
उनका इनसान के दामन पे न साया जाए।
जिस से इंसां की मोहब्बत का संवर जाए चमन
सिलसिला कोई मिल के चलाया जाए।
जो हर इक घर को दे पैग़ामे मुसर्रत वो ख़ुशी
गीत ‘परवेज़’ वही सबको सुनाया जाए।

ग़ज़ल-2

अहले सितम के रोज़ सवालात कुछ न कुछ
अहले जुनूं के रोज़ ज़वाबात कुछ न कुछ।
सूखा पड़ा तो गांव के चेहरे उतर गए
मजबूरियां बताएंगी बरसात कुछ न कुछ।
कुछ काम तो करें कि रहे नाम बाद मर्ग
दुनिया में छोड़ जाएं निशानात कुछ न कुछ।
है ऐडस् की तरह का हवाला भी इक मर्ज़
होते रहेंगे जग में तिलसमात कुछ न कुछ।
ऐसा नहीं बदल ही न पायेगा आदमी
बदलेंगे दो जहान के हालात कुछ न कुछ।
तारीख़ को मिटाओ कि मुझको जलाओ तुम
बाकी रहेंगे फिर भी निशानात कुछ न कुछ।
फिर आसमान मिलने लगा है ज़मीन से
फिर गुल खिलाएगी यूं मुलाकात कुछ न कुछ।
‘परवेज़’ इस बदलते ज़माने के साथ-साथ
बदले हैं मैंने अपने ख़्यालात कुछ न कुछ।

ग़ज़ल-3

मैं बेतहाशा दौड़ता जिस राह गया
अंबर हसरतों का फ़िज़ा में बिखर गया।
उस आदमी को चील सा झपटा है मर्ग ने
जो गर्दिशे हयात के तेवर से डर गया।
बातों के जगंलों में भटकते ही रह गये
कोहरा फ़िज़ा से छूट के सांसों में भर गया।
मैंने सलीबे वक्त को बाहों में कस लिया
आई जो पास मौत का चेहरा उतर गया।
अब आसमां के रंग भी देखेंगे बैठकर
मौसम की बरकतों से चमन तो संवर गया।
हैरान हो के कब्र मेरी देखती रही
मिट्टी का जिस्म ख़ाक में जाने किधर गया।
या ज़िन्दगी हसीन थी या आसमां जीमल
इक जाल में फरेब के ‘परवेज़’ घिर गया।

ग़ज़ल-4

आज आया है यहां कल उसे जाना होगा
फिर खुदा जाने कहां उसका ठिकाना होगा।
लाश कमरे में रखे रोते रहोगे कब तक
तुम को इस बोझ को कंधे पे उठाना होगा।
ज़िन्दगी बैठ के दहलीज़ पे सीती है कफ़न
कारवां के लिए अर्थी को सजाना होगा।
हर तरफ देखते हैरान खड़े हैं राही
क़ाफ़ला जाने किस सम्त रवाना होगा।
गो नुमाइश का है बाज़ार में अपने दस्तूर
हम को बाज़ार की रस्म मिटाना होगा।
ख़्वाब दीवाने का बनकर ही न रह जाए हयात
आदती को हमें इनसान बनाना होगा।
सिर्फ बातों से अंधेरे न छटेंगे ‘परवेज़’
लोग कहते हैं तो कुछ कर के दिखाना होगा।


रउफ़ परवेज़
बालाजी वार्ड
जगदलपुर जिला-बस्तर छ.ग.
फोन-09329839250
शिक्षा-बीए एलएलबी
दो ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित, देशभर की पत्र पत्रिकाओं में
प्रकाशित, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर काव्यपाठ
सम्मान-अभियाम एवं रोटरी क्लब जगदलपुर से सम्मानित