साक्षात्कार-लाला जगदलपुरी-बस्तर पाति फीचर्स

लाला जगदलपुरी

लालाजी की पुण्य स्मृति पर उनको सादर नमन! यह कालॅम उन्हें सादर समर्पित हैं.
लालाजी हमारी बौद्विक भूमि का वह नाम है जो सूरज बन कर चमक रहा हैं. उनकी चमक और प्रकाश में यहां का साहित्यकर्म एकलव्य की भांति आज भी प्रेरणा पा रहा है. हमारा साहित्य समाज आज भी उन्हें अपना प्रेरणा पुरूष मानकर रचनारत हैं. अब तक की साहित्यिक पीढ़ी उनसे किसी न किसी प्रकार जुड़ी भी थी. लालाजी का जन्म बस्तर की धरा पर दिनांक 17 दिसम्बर 1920 को हुआ और देहावसान 14 अगस्त 2013 को हुआ. उनके जीवन के इन दो बिन्दुओं के बीच के वर्षों ने साहित्य को जो अवदान दिया वह अविस्मरणीय है. उनका वृहत रचनाकर्म ही है जो नव-रचनाकार को उत्साही बनाये रखा है. वैसे तो बस्तर के साहित्य गुरू हैं वे पर उन्हें निर्विवाद रूप से नामचीन साहित्यकार डॉ. धनंजय वर्मा जी एवं शानी का मार्गदर्शक माना जाता है.
उनका प्रकाशित साहित्य है- कविता संग्रह ’मिमयाती ज़िन्दगी दहाड़ते परिवेश’ और ’पड़ाव’. इसी वर्ष श्री हरिहर वैष्णव, कोंडागांव ने लालाजी की समस्त कृतियों को एक साथ सहेजने का प्रयास किया है. दो खण्ड़ों में ‘लालाजी समग्र’ के माध्यम से उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी हैं. उनकी कालजयी रचनाओं में से कुछ अपने सुधी पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं.

रीते रह गये पात्र रीते

मचल उठे प्लास्टिक के पुतले,
माटी के सब धरे रह गये.
जब परवश बनी पात्रता,
चमचों के आसरे रह गये.

करनी को निस्तेज कर दिया,
इतना चालबाज कथनी में,
श्रोता बन बैठा है चिंतन,
मुखरित मुख मसखरे रह गये.

आंगन की व्यापकता का
ऐसा बंटवारा किया वक्त ने
आंगन अंतर्ध्यान हो गया
और सिर्फ दायरे रह गये.

लूट लिया जीने की
सुविधाओं को सामर्थोंं ने
सूख गई खेती गुलाब की
किन्तु कैक्टस हरे रह गये.

जाने क्या हो गया अचानक
परिवर्तन के पांव कट गये
‘रीते-पात्र’ रह गये रीते
‘भरे-पात्र’ सब भरे रह गये.

प्रश्न ही प्रश्न हैं बियावन में

हम तुम इतने उत्थान में हैं
भूमि से परे, आसमान में है.
तारे भी उतने क्या होंगे,
दर्द-गम जितने इंसान में हैं.

सोना उगल रही है माटी,
क्योंकि हम सुनहले विहान में हैं.
मोम तो जल जल कर गल जाता,
ठोस जो गुण है, पाषाण में हैं.

मौत से जूझ रहे हैं कुछ
तो कुछ की नजरें सामान में.
मुर्दों का कमाल तो देखो
जीवित लोग श्मशान में हैं.

मन में बैठा है कोलाहल
और हम बैठे सुनसान में हैं.
किसने कितना कैसे चूसा
प्रश्न ही प्रश्न बियावान में हैं.

सोचता हूं, उनका क्या होगा,
मर्द जो अपने ईमान में.

जीवन का संग्राम जंगली

इस धरती के राम जंगली
इनके नमन-प्रणाम जंगली.

कुडई, कंद, झुई सम्मोहक
वन-फूलों के नाम जंगली.

वन्याओं-सी वन छायायें
हलवाहे-सा घाम जंगली.

भरमाते चांदी के खरहे,
स्वर्ण-मृगों के चाम जंगली.

यहां प्रभात पुष्पधंवा-सा
मीनाक्षी-सी शाम जंगली.

शकुंतला-सी प्रीति घोटुली
दुष्यंती आयाम जंगली.

दिशाहीन, अंधी आस्था के,
जीवन का संग्राम जंगली.

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