ट्रेन से यात्रा करते वक्त कितनी दफा टीटी आपकी आरएसी टिकट से बर्थ कंफर्म किया है जरा याद करें. ये रेलवे द्वारा टीटी के लिए मलाई है जिसे पह अपनी तनखा के दूध के साथ मिलाकर पीता है. दुनिया चांद पर पहुंच गई पर ये लूट जारी है. बर्थ का पैसा लेकर सीट दी जा रही है….कम से कम रिजर्वेशन का आधा पैसा तो वापस मिले यात्री को…पर नहीं लूट जारी है. बेचारा आरएसी वाला रात भर इस उम्मीद से जागता रहता है शायद उस टीटी बर्थ दे ही देगा. पर टीटी तो दूसरों को बर्थ बेचकर नोट छापता है.
यात्रियों को इस लूट से बचाने के कई उपाय हो सकते हैं जिन पर आम जनता ही नहीं सोचती है तो फिर सरकार क्यों विचार करे. कुछ उपाय ढूंढने का प्रयास करते हैं. सीट कंफर्म होने पर टीटी लिखकर दे यात्री को. यदि टिकट पर न लिखा हो तो रेलवे रिजर्वेशन का पूरा पैसा वापस करे.
रेलवे अपना ऐसा आटोमेटिक सिस्टम बनाये कि यात्री को पता चले कि उसकी पोजिशन क्या है. टीटी से पूछने की जरूरत ही न पड़े. टीटी सफर में आये हुये यात्रियों की आनलाइन जानकारी देता जाये और वेटिंग वालों का नाम आप ही आप आगे बढ़ता जाये. पर ऐसा होना व्यवस्था में छेद बनाकर रखने वालों के देश में संभव कहां हो सकता है.
बड़ा ही पेचीदा मामला है कि कैसे साबित हो कि यात्री को सफर के दौरान आरएसी से बर्थ मिली ही नहीं. क्योंकि टीटी का चार्ट तो शो करेगा ही कि उसने आएसी वालों को बर्थ दे ही दी है. उसके चार्ट को यात्री छू भी नहीं सकता है. यात्री अपने पैसों की वासी का क्लेम कैसे करे? यहां एक तथ्य विचारणीय है कि सरकार का प्रत्येक विभाग अपने उपभोक्ता को दोयम दर्जे में रखता है और अपने कर्मचारीयों की ही सुनता है. यदि कर्मचारी लिखकर दे दे कि उपभोक्ता चोर है तो प्रथम दृष्टया वह चोर साबित ही हो जाता है. इसके बाद उपभोक्ता को साबित करना होता है कि ‘मैं चोर नहीं हूं.’ अब वह कैसे साबित करे कि उसे आरएसी टिकट होने के बाद बर्थ नहीं मिली बल्कि उसने सीट पर आड़ा बैठे-बैठे ही सारी रात गुजारी है. उसके पास अपने साथी यात्री का भी सर्पोट नहीं होता है क्योंकि वह उसका जाना पहचाना तो नहीं होता है न. यात्री ट्रेन में जोर से बोल भी नहंीं सकते हैं.. आरपीएफ वाले मौके की तालाश में होते हैं. उनमें से कुछ इतने खतरनाक होते हैं कि सीधे-सादे आदमी को बाथरूम से निकलते ही पकड़ लेते हैं और धमकाते हैं-क्यों बे….बीड़ी पीने बाथरूम गया था? पुलिस की छवि इतनी अच्छी है कि यात्री डर ही जाता है. वह घिघयाने लगता हैं…तब होती है सौदेबाजी. सौ से लेकर दो-दो हजार तक लूट लेते हैं. जबकि ट्रेन के बाथरूम की स्थिति यह होती है कि वहां से बीड़ी की बास आती ही रहती है. जो भीतर जाने वाले के कपड़ों में समा जाती है. कम पानी पीने, तंबाकू गुटका खाने वाले लोगों की पेशाब से वैसी ही गंध तैयार हो जाती है. मुझे एक बार भोपाल स्टेशन के पहले इसी प्रकार आरपीएफ वालों ने पकड़ा था. गनीमत थी कि उन दो पुलिस वालों ने एक साथ एक-एक सवाल पूछा. पहला पूछा-‘‘क्यों बे बीड़ी पीने बाथरूम में घुसा था.’’ दूसरे वाले ने पूछा-‘‘कहां जा रहा हैं बे ?’’
मेरे मुंह से दूसरे सवाल का जवाब पहले निकल गया.-‘‘भोपाल में उतरना है. वहीं रहता हूं’’ और पहले सवाल पर कहा-‘‘ अरे भैया मैं तो इस एक बाथरूम से निकला हूं तो इसके सामने वाले बाथरूम से भी वैसी ही बास क्यों आ रही है ? आप भी अंदर जाओगे तो आपके कपड़ों से भी वैसी बास आयेगी.’’ इस वाकये के बीच मैंने ध्यान से सोचा तो पाया कि उस पुलिस वाले के मुंह से ही बीड़ी की गंध आ रही थी और वही मुझसे पहले बाथरूम गया था.
टीटी महोदय तो कुछ करेंगे नहीं इसलिए आरएसी के पैसों के लिए सबसे बढ़िया उपाय हैं कि आरएसी वालों को सामान्य टिकट के साथ थोड़ा-बहुत एक्ट्रा चार्ज लिया जाये और ट्रेन में यदि बर्थ मिली तो वह वहीं ट्रेन में ही टीटी को भुगतान करे. जितने आरएसी टिकट हों उनकी सूची की उतनी ही फोटोकापी बनाकर टीटी पहले से ही अपने पास रख और प्रत्येक आरएसी टिकट के साथ एक सूची में उस टिकट की वरीयता क्रम पर हस्ताक्षर कर टीटी रसीद के साथ दे.
यहां होगा यात्री राजा. और यही तो सच भी है यात्री है तो ट्रेन हैं, टीटी हैं और उनकी तनखा है उनका रूतबा है.
इन उपायों के अलावा भी बहुत से उपाय हो सकते हैं पर ईमानदार पहल की जरूरत है. इस संबंध में एक जबरदस्त कोटेशन याद पड़ता है कि-‘‘जब इतनी ईमानदार पहल करने का साहस हो तो, इस पहल की जरूरत ही क्या होगी.’’ फिर भी दिमाग है कि लगातार सोचता ही जाता है.