काव्य-तमंचा रायपुरी

बस्तर

जंगल की पगडंडियां मुझे पसंद नहीं
ऐसी पगडंडियां जो घने जंगलों से गुजरती हैं
लिपटकर फिर किसी सड़क में समा जाती हैं
मुझे पसंद हैं ऐसी पगडंडियां
जो घने जंगलों के अंदर समा जाती हैं
अचानक कहीं गुम हो जाती हैं
नापो कभी कदमों से
बस्तर की इन खा जाने वाली पगडंडियों को

बस्तर-2

घोटुल लिंगो पेन की भावनाओं के घोड़े
थम से गये हैं
जम सी गयी हैं खदानों से उड़ती धूल
अठ्ठारह वाद्यों में
गुम गए हैं आख्यान
आदिम गीतों में,
शहर की पगधूलि ने कर
दिया है अपवित्र
पवित्र घोटुल को!

प्रकृति का स्वर्गीय आन्ांद जहां
अब कोई नहीं पाता
अब चेलिक और मोटियारी
हाथों में हाथ ले.
नहीं गाते रेला
नहीं उठते पैर
नृत्य के लिए.
बेलौसा नहीं सिखाती प्यार
सरदार नहीं लगाता कोई जुर्माना
अब मुरिया बच्चों के लिए
खुल गए हैं स्कूल
जहां मास्टर नहीं आता…….

तमंचा रायपुरी
शांतिनगर, रिंग रोड़ नं.-02
बिलासपुर जिला-बिलासपुर छ.ग.
फोन-
शिक्षा-पीएचडी, एमफिल,एमबीए, (एच आर), बीएड