डॉ शैलचंद्रा की लघुकथा

बदलते प्रतिमान


सरकारी स्कूल के शिक्षक पिता से कान्वेंट स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे ने प्रश्न किया-‘‘पिता जी मेरी क्लास में पढ़ने वाले मेरे मित्रों के पिता बड़े-बड़े पद में हैं। कोई डिप्टी कलेक्टर हैं तो कोई इंजीनियर हैं। वे सब मुझे चिढ़ाते हैं कि तेरे पिता एक सरकारी स्कूल के मास्टर हैं। पिता जी आप भी बड़े अधिकारी क्यों नहीं बने ?
अपने ही बच्चे के इस प्रश्न से बुरी तरह आहत पिता क्या बताते कि जैसे-तैसे गरीबी में पढ़कर कम से कम स्कूल मास्टर तो बन गये जो उनके और परिवार के लिए गर्व की बात थी कि वे देश का भविष्य गढ़ते हैं। राष्ट्र के निर्माण में योगदान देते हैं। परन्तु आज समाज में उनकी क्या हैसियत है, यह उनका बेटा ही बता रहा है। उन्होंने अपने को संयत कर कहा-‘‘बेटा! तुम अपने मित्रों से पूछना कि उनके पिता बड़े-बड़े पद में कैसे पहुंचे हैं ? हम जैसे प्रायमरी मास्टरों की बदौलत ही न! बेटा शिक्षक भूमिका समाज में महत्वपूर्ण होती है।
पिता की बात बच्चे ने कुछ समझी, कुछ न समझी। बस मासूमियत से देखता रहा।

डॉ. शैलचंद्रा, रावणभाटा, नगरी, जिला-धमतरी मो.-9977834645