काव्य -केशरीलाल वर्मा

कफन

ये कवि,
तुम लिखते हो हरदम,
दुनिया की हर कड़ियों पर कविता।
कफन सा चादर बिछा दिखता नजारा।
जिसे ओढ़े तुम सो जाते हो।
जिन्दगी भर, कविताओं की –
सृजन से, बनती है चिता।
लोग उठाकर देखते हैं, कफन,
और देखते उसका हाल।
समाधि के पूर्व तक
लटका देते हैं लोग पेड़ पर।
कफन….
और हर एक राहगीर
चाहने वाला उसे देखकर।
देखते रहें उसे चिथड़े होते तक।
श्मशान घाट का पेड़, जहां लटका रहे।
एक भिखारी मांगता रहे भीख
उस कफन के लिए।


केशरीलाल वर्मा
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