डॉ शैल चंद्रा की आठ लघुकथाएं

शॉपिंग

“देख तो रमशीला, ये साड़ी कैसी है। अभी-अभी आन लाइन शॉपिंग से आई है।”मालकिन ने अपनी नौकरानी से कहा।
नौकरानी रमशीला ने मालकिन की साड़ी देखकर कहा,”बहुत सुंदर है मैडम, बहुत महंगी होगी।”
मालकिन ने गर्व से कहा”-हां, महंगी है तभी तो सुंदर है।सस्ती चीजें कहाँ सुंदर लगती हैं।
रमशीला ने अपनी साड़ी की ओर देखते हुए हां में सिर हिला दिया।
अक्सर मालकिन के यहां आन लाइन शॉपिंग से तरह-तरह की चीजें आती रहती हैं।रमशीला की आठ वर्षीया बिटिया भी अक्सर मालकिन के घर आती रहती है वे भी इन चीजों को देखती रहती है।
आज उसने देखा कि आन लाइन शॉपिंग के डिलीवरी बॉय ने एक बड़ा सा लिफाफा मालकिन को दिया है और उस लिफाफे से बहुत खूबसूरत खिलौना निकला।वह झट से उस डिलीवरी बॉय के पास पहुंच गई और उससे कहा-“भइया, आप अक्सर मालकिन को ही गिफ्ट देते हो। हमें भी दो न?”
बच्ची की बात सुनकर डिलीवरी बॉय ने हंसते हुए कहा-” बिटिया,मालकिन इस गिफ्ट को मंगाने के लिए पैसे देती हैं। तुम भी पैसे दोगी तो तुम्हें भी यह मिलेगा पर यह आन लाइन शॉपिंग पैसे वालों के लिए ही है। गरीबों के लिए नहीं।”
रमशीला की बिटिया ने बड़े भोलेपन से पूछा-“भइया, तुम्हें भी यह सारी चीजें मिलती होगीं न?”
“नहीं बेटा, यह चीजें हमें नहीं मिलतीं ।न तो हम जानते हैं कि इन बन्द लिफाफों में क्या है।हमें तो इन लिफाफों को पहुंचाने के बदले कुछ पैसे मिल जाते हैं।इससे हमारे घर का गुजारा होता है पर बिटिया, तुम्हें तो ऐसे लिफाफे तो मिलेंगे नहीं क्यों कि हम जैसों के भाग्य में यह नहीं है।तुम इसकी इच्छा बिल्कुल मत करो क्योंकि गरीबों के लिए यह केवल सपना ही है।समझी।” डिलीवरी बॉय ने गम्भीर स्वर से कहा।
यह सुनकर बिटिया उदास हो गई।

वो कमरा

“मांजी दिख नहीं रही हैं?कहीं गई हैं क्या?”राकेश के अभिन्न मित्र प्रशांत ने राकेश से पूछा।
“हां यार,वो क्या है कि घर छोटा पड़ रहा था तो मांजी को मजबूरन हम लोग वृद्धाश्रम छोड़ आये।”राकेश ने कहा।
“ओह!पर तुम्हारे घर पर तो तीन बेडरूम हैं न? तुम पति-पत्नी एक कमरे में,दूसरे में बच्चे और तीसरे कमरे में तो मांजी रहा करती थीं तो क्या परेशानी हुई?”प्रशान्त ने थोड़ी नाराजगी दिखाते हुए कहा।
हाँ यार, अब तीसरे कमरे में हमारा डॉगी डब्बू रहता है।क्या है कि बच्चे डॉगी के बिना रह नहीं सकते।”राकेश ने झेंपते हुए कहा।

आज की जरूरत

“अरे!क्या हुआ?तेरे कपड़े कैसे फट गए?” घबरा कर मम्मी ने नीतू से पूछा।
नीतू ने रोते हुए कहा-“मम्मी, अभी डांस क्लास से आ रही थी कि रास्ते में कुछ लड़के मेरे साथ बदतमीजी करने की कोशिश करने लगे कि तभी हमारे पड़ोस में रहने वाले शर्मा अंकल उधर से गुजर रहे थे।उन्होंने उन लड़कों को डांट-मार कर भगाया। उन लड़कों की छीना -झपटी में मेरे कपड़े फट गए।”
यह सुनकर मम्मी सकते में आ गईं।वे सिर पकड़कर वहीं जमीन पर बैठ गईं।
उनकी बातचीत सुन रही दादी ने बड़े ही गम्भीर स्वर से कहा-” बहू, काश!तुम नीतू को डांस क्लास के बदले कराटे क्लास भेजती तो यह स्थिति नहीं होती।आज इसकी सख्त जरूरत है।लड़कियां अपनी आत्मरक्षा स्वयं करें तो ऐसे बदमाश लड़कों की हिम्मत नहीं होगी कि वे किसी लड़की को छेड़ें।सुनो नीतू, तुम कल से कराटे क्लास ज्वाइन करना।”
सहमी हुई नीतू ने कहा-” जी दादी, आप सच कहती हैं ।आज लड़कियों को रानी लक्ष्मी बाई और दुर्गावती जैसी वीरांगना बनने की जरूरत है ताकि ऐसे दुष्टों को मजा चखा सकें।मैं भी ऐसी बनूंगी और उन बदमाश लड़कों को जरूर मजा चखाऊंगी।” यह कहती हुई नीतू के चेहरे पर दृढ़ता के भाव आ गए।

सीख

उदास सा चीकू आसमान में कलरव करते हुए पक्षियों को उड़ता देख रहा था। पास बैठी मां घर के हिसाब-किताब में लगी हुईं थी। उड़ते हुए पक्षी आपस में किल्लोल करते हुए मस्त दिख रहे थे। उन्हें एक साथ उड़ता हुआ देखकर चीकू ने अपनी मां से पूछा-” मां, इन पक्षियों का कोई धर्म नहीं होता क्या? क्या ये धर्म के नाम पर कभी आपस में नहीं लड़ते?”
मां ने मुस्कुराते हुए कहा,-“नहीं बेटा, इन पशु पक्षियों का कोई धर्म नहीं होता।ये धर्म के नाम पर भला क्यों आपस में लड़ेंगे?”
“तो फिर मनुष्य क्यों धर्म के नाम पर लड़ता है? काश!मनुष्यों का भी कोई अलग-अलग धर्म नहीं होता तो आज मेरे पापा हमारे साथ बैठे होते।उन धार्मिक दंगाइयों ने मेरे पापा की जान ले ली।”यह कहता हुआ चीकू जोरों से रो पड़ा।
उसे रोते हुए देखकर माँ भी सिसक उठीं।
सिसकती हुई माँ ने कहा-“काश!मनुष्य इन पशु-पक्षियों से कुछ सीख ले लेता तो संसार में आज शांति होती।कहीं कोई युद्ध नहीं होता।
माँ की यह बात सुनकर चीकू ने कहा-” हां माँ, पर क्या मनुष्य कभी यह सीख पायेगा?”
चीकू की यह बात सुनकर माँ निरुत्तर रह गईं।

आठवाँ वचन

वर-वधू विवाह की रस्म निभा रहे थे।एक दूसरे को सात वचन दे रहे थे कि तभी वधू की बूढ़ी दादी ने कहा-“देखो बच्चों सात वचन के बाद एकआठवाँ वचन भी तुम्हें एक-दूसरे को देना पड़ेगा।”
यह सुनकर विवाह में उपस्थित लोग चौंक गए।पंडित जी भी दादी का मुँह देखने लगे।
पंडित जी ने कहा-आठवाँ
वचन तो होता ही नहीं अम्मा जी, विवाह में केवल सात वचन बोला जाता है फिर ये आठवाँ वचन?”
दादी ने मुस्कुराते हुए कहा- हां पंडित जी, अब वर-वधू को आठवाँ वचन भी निभाना पड़ेगा और यह आठवां वचन अब विवाह में अनिवार्य किया जाना चाहिए।”
यह सुनकर सभी अब आठवाँ वचन सुनने के लिए उत्सुक हो उठे। दादी ने कहा”-वो ये है कि वर-वधू आठवाँ वचन लें कि हम कभी कन्या भ्रूण हत्या नहीं करेंगे।बेटा-बेटी में भेद नहीं करेंगे।बेटियों को बराबरी का दर्जा देते हुए खूब पढ़ाएंगे। काश!यह वचन मेरे माता-पिता ने भी निभाया होता तो मुझे अनपढ़ और उपेक्षित जीवन नहीं जीना पड़ता।”यह कहती हुई दादी का गला रुंध गया।

सौ सुनार की एक लुहार की

जब से सुमन आंटी की बहुएं ब्याह कर आई थीं तब से सुमन आंटी अपने ही घर में खुद को पराया महसूस कर रहीं थीं। बेटे भी अब माँ की बात नहीं सुनते।
सुमन आंटी के पति का कुछ वर्षों पहले ही देहांत हो चुका था।उन्होंने बड़े अरमानों से अपने बेटों की शादियां की।
आज तो हद ही हो गई जब बड़ी बहू ने रात की बासी रोटी उन्हें खाने दी। उन्होंने कुछ नहीं कहा पर उनकी आंखें भर आईं।
अभी वो रोटी खा ही रहीं थीं कि छोटी बहू ने ढेर सारे गंदे चादर उनको दिखाते हुए कहा-“मांजी,अब काम वाली बाई नहीं आएगी ।उसकी छुट्टी कर दिए हैं।आप खाली बैठी रहतीं हैं तो आज से आप कपड़े और झाड़ू पोंछा कर दीजिएगा।हम लोगों को बच्चों को होमवर्क भी कराना होता है।
यह सुनकर सुमन आंटी ने कहा-“नहीं ,मुझसे अब इस बुढ़ापे में यह काम नहीं हो पायेगा।काम वाली बाई को क्यों छुड़ा दिया तुम लोगों ने?”
यह सुनकर बहुएं हाथ नचाती हुईं बोली-“आपको पता भी है ?महंगाई कितनी बढ़ गई है ।ऊपर से आपका दवाइयों और दूध का खर्चा ।क्या पेड़ पर पैसा फलता है?करना है तो करो वरना कहीं और चले जाइये।”
बहुएं की जली -कटी बात सुनकर वो स्तब्ध रह गईं।
आज सुमन आंटी बहु-बेटों को कह रही थी-“तुम लोग कहीं दूसरे घर में अपना इंतजाम कर लो। मैंने वृद्धाश्रम वालों को यह घर बेच दिया है क्यों कि यह घर मेरा है और मेरे नाम में है। मैं अब अपने ही घर के वृद्धाश्रम में आराम से चैन सुख से रहूँगी।”

मां का हृदय

जब से होश संभाला है तब से मां ने मुझे कुछ न कुछ दिया है।प्यार- ममता तो वे मुझ पर लुटाती ही हैं।छोटा था तो वे मेरे हाथ में चॉकलेट-टॉफी देकर मुझे बहलाती थीं। थोड़ा बड़ा हुआ तो मेरे हाथों में कुछ पैसे देकर मुझे स्कूल भेजती थीं। किशोर हुआ तो मैं खुद ही जिद करके पैसे मांग लेता था। माँ चुपचाप मुझे रुपए दे देती थीं।
जब मैं कॉलेज पढ़ने शहर के बाहर जाने लगा तो मां मठरी,लड्डुओं के साथ मुझे रुपए भी पकड़ा देती ।यह कहते हुए कि -‘परदेश में तेरे काम आएंगे।’ बाबूजी मां को डांटते थे कि -‘बेटे को बिगाड़ रही हो। फिजूल खर्ची की आदत डाल रही हो।’तब माँ हंसकर मुझे दुलारकर और भी पैसे मेरे हाथों में पकड़ा दिया करती थी।
मां ने अब मेरी शादी धूमधाम से कर दी है।बड़े अरमानों से चांद जैसी बहू लाई है।आज बाबूजी इस दुनिया में नहीं हैं। माँ बिल्कुल अकेली हो गईं हैं।अब मैं इस घर का मालिक बन गया हूँ।मेरी शानदार नौकरी है फिर भी मैं मां की छोटी-छोटी जरूरतों को अनदेखा कर देता हूँ।
उस दिन मां ने अपना टूटा हुआ चश्मा दिखाते हुए कहा”-बेटा, जरा चश्मा बनवा देना।” यह सुनकर मेरी पत्नी ने गुस्से से बिफरते हुये कहा-“मांजी ,आपका खर्च बेवजह बढ़ जाता है।अभी कुछ दिन पहले तो नया चश्मा बनवाया था।सम्भाल के रख नहीं सकतीं आप?”
यह सुनकर माँ चुप हो गईं। तभी पत्नी ने मुझसे कहा-“सुनो जी, मांजी को अब दवाईयां या फल देने की कोई जरूरत नहीं है।बुढ़ापे में तो सब बीमार पड़ते ही हैं फिर हमारा खर्च भी बढ़ने वाला है ।नया मेहमान हमारे घर आने वाला है।”
पत्नी की यह बात मुझे भी सही लगी।
अब मां को सूखी रोटियां और दाल उपेक्षापूर्वक दी जाने लगी।अब मां चुप ही रहने लगीं।
आज मां एक छोटा सा बक्सा लेकर मेरे पास आईं और मुझसे कहा-“बेटा, इस बक्से में सोने के जेवर हैं जो मैं अब नहीं पहनती । इसे तुम रख लो ।तुम्हारे काम आएंगे।आज मैं यह घर छोड़कर वृद्धा आश्रम जा रही हूं।तुम लोगों पर मैं बोझ बनना नहीं चाहती।तुम लोग खुश रहो।” यह कहती हुई मां चली गईं।
मैं अपने हाथों में मां के दिये हुये उस बक्से को देख रहा था।

जनरल वार्ड

आज गंदगी से अटा पड़ा हुआ सरकारी हॉस्पिटल का वह जनरल वार्ड बिल्कुल साफ-सुथरा चमकता हुआ दिख रहा था। कल जब मैं यहां आई थी तो मुझे नाक में रुमाल रखना पड़ा था।
पूछने पर पता चला कि आज यहां के कलेक्टर साहब की पत्नी इस जनरल वार्ड में एडमिट हो रहीं थीं। मुझे यह सुनकर आश्चर्य हुआ कि कलेक्टर साहब की पत्नी जनरल वार्ड में क्यों एडमिट हो रही हैं? तभी। मुझे कलेक्टर साहब आते हुए दिखे।उनके पीछे पत्रकारों का दल आता हुआ दिखा।एक पत्रकार कलेक्टर साहब से पूछ रहे थे-“आप अपनी पत्नी को सरकारी हॉस्पिटल के जनरल वार्ड में क्यों एडमिट करवा रहे हैं?आप तो बढ़िया से बढ़िया प्राइवेट हॉस्पिटल में अपनी पत्नी की डिलीवरी करवा सकते हैं?”
यह सुनकर कलेक्टर साहब ने मुस्कुराते हुए कहा-“हां, मैं चाहता तो प्राइवेट हॉस्पिटल में अपनी पत्नी को एडमिट करवा सकता था परंतु इस देश में हजारों मरीज गरीब और तंगहाली के कारण सरकारी हॉस्पिटल के जनरल वार्ड में भर्ती होकर इलाज करवाते हैं और जनरल वार्ड की दशा कैसी होती है?यह तो सब जानते हैं। मेरी पत्नी अगर जनरल वार्ड में भर्ती होगी तो कुछ दिनों के लिए ही सही ये गंदगी से अटा पड़ा हुआ जनरल वार्ड प्राइवेट अस्पताल की तरह ही साफ सुथरा तो हो जाएगा। मैं तो अपनी बेटी को भी सरकारी स्कूल में पढ़ाऊंगा ताकि सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधर सकें।”
कलेक्टर साहब का यह कथन मेरे दिल को छू गया। काश!सबकी यही सोच होती?


डॉ. शैल चन्द्रा
सम्प्रति-प्राचार्या
शासकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय टाँगापानी
तहसील-नगरी
जिला-धमतरी
छत्तीसगढ़

मोबाइल नंबर-9977834645
9340148336