पं.जमदग्निपुरी की चार कवितायेँ

बचपन का सपना
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बचपन में सोंचा करते थे, पता नहीं कब सयान होगें।
पता नहीं कब होगी शादी, पता नहीं कब जवान होगें।।

गाँव समाज में रुतबा होगा, बनेगें घर के मालिक।
सबपे अपना शासन होगा, हो अबोध या बालिक।।
पता नहीं कब हाँथ में अपने, घर के सभी समान होगें।
पता नहीं कब होगी शादी, पता नहीं कब जवान होगें।।
बचपन में——-

देश विदेश का करेगें दौरा, दौलत से भंडार भरेगें।
सभी हमारे आगे झुककर, प्रेम से आदर भाव करेगें।।
गाँव में घर तो होगा अपना, शहरों में भी मकान होगें।
पता नहीं कब होगी शादी, पता नहीं कब जवान होगें।।
बचपन में——–

अब सबकुछ है मिल गया, पूर्ण हुए बचपन के सपने।
सभी बेगाने हो गये, कल तक थे जो भी अपने।।
अब सोंचता हूँ वे सपने, कभी नहीं कल्‍यान करेगें।
प्रेम और भाईचारे से, ही हम सभी महान बनेगें।।

 

ना ये ही सुखी ना वो ही सुखी
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दहेज बाप कम बेटे की माँ, अधिक लेना चाहती है।
दहेज बाप कम बेटी की माँ, अधिक देना चाहती है।।

बेटे की माँ समाज में, रुतबा दिखाना चाहती है।
बेटी की माँ बेटी को, सुख दिलाना चाहती है।।

इसी लिए सब कुछ दहेज में, बेटी के साथ देती है।
औकात से अधिक दान में, दामाद‌ को कार मोटर देती है।।

फिर भी रह रह के बेटे की माँ, नाक भौं चढा़ती है।
बेटी हो कर के वो, बेटी की‌ शत्रु बन जाती है।।

इसीलिए सास बहू में अक्सर, नोक झोंक होती है।
सुन सुन के ताना उलाहना, माँ बेटी की दुखी होती है।।

बाप दोनों रहते सदैव, अपनी औकात में
माताएं दोनों भूल जाती, औकात अपनी दहेज में।।

एक देके दुखी दूजी पाके दुखी, चाहतें दोनों की थी एक ही समान।
ना ये ही सुखी ना वो ही सुखी, देकर लेकर दहेज में।।

 

घर के चूहे
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उसको सबक सिखाना है तो, पहले घर के चूहे मारो।
जो घर में बना सुरंग बुलाते, साँप छछुन्दर व खुंखारो।।

इनकी बिल में पानी डालो, या बिल में इनको दफन करो।
या बिल से बाहर इन्हें निकालो, पिजड़े में फंसाके बंद करो।।

ए ही कुतर रहे सब कपड़े, घर में छिपकर बैठे हैं।
ए ही रात में छिपकरके, घर पूरा खोद डालते हैं।।

हम सोंच रहे कोई और है खोदा, इन चूहों पर ध्यान न देते हैं।
ए ही अपने बिल में साँपों को, छुपा शरण खुब देते हैं।।

चूहों को बिल से बाहर कर, घर से बाहर कर डालो।
घर से कूडा़ करकट सब, एक बार सफाई कर डालो।।

सबकुछ होगा ठीक ठाक, खुशियाली आयेगी चहुँ ओर।
जब चूहे मर जायेंगे घर के, तब चलेगा नहीं किसी का जोर।।

हम याद रखेगें
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हम याद रखेगें हरदम, उन सब वीरों की कहानी।
जिसने दे दी है वतन पर, अपनी अनमोल जवानी।।

जब हम खोए थे यहाँ पर, भरने में अपनी झोली।
वो झेल रहे सरहद पर, दुश्‍मन के गन की गोली।।
जब देख रहे थे हम सब, किरकेट की उड़ती गिल्ली।
मरते थे वहाँ पर वो सब, खा खाके गन की गोली।।
हम सबकी सुरक्षा खातिर, उन सबने दी कुर्बानी।
हम नमन करें उन सबको, जो शहीद हुए बलिदानी।।
हम याद रखेगें हरदम———-

हम नमन करें उस माँ को, जिसने कुर्बानी दे दी।
ले जाके वतन पर अपने, लालन की जवानी दे दी।।
वह पतीपरायण नारी, जिसकी भीगी है सारी।
असुवन में रात गुजारी, वह पूजनीय है हमारी ।।
वह बहन है प्राण पियारी, अपने वीरन की दुलारी।
उसने भी दी कुर्बानी, अपने वीरन की जवानी।।
हम याद रखेगें हरदम——–

पं.जमदग्निपुरी

मो.-9967113402