अलका पांडे की लघुकथा

कमल या कीचड़

’समझ में ये नहीं आता कि यहाँ किसी के थोडा फेमस हो जाने पर लोग, उसके अतीत की बखिया क्यों उधेड़ने लग जाते हैं….अरे! उसका वर्तमान देखो न…मम्मी…मेरी शूज कहाँ रखी है….देखो न प्लीज…।’ हर्ष झुंझलाते हुए ऑफिस जाने को तैयार हो रहा था।
’अरे! आई बाबा, थोडा नजर इधर-उधर घुमा भी लिया करो…ये देखो पलंग के नीचे है शूज तुम्हारे…।’ अर्चना मुस्कुराते हुए हर्ष की ओर देख रही थी।
’क्या हुआ बेटा! तुम किसके फेमस होने की बात कर रहे थे ?’
’अरे मम्मी! मैं मीडिया में फेमस हो रहे लोगों की बात कर रहा था…देखो न हम लोगों की आदत है, बहुत जल्दी किसी को सर पर बिठा लेते हैं और फिर उसे, उसी तेजी से जमीन पर पटक देते हैं…पता नहीं क्या मिलता है लोगों को ऐसा करने में…अरे! वर्तमान देखो न…।’
’अरे! ऐसा नहीं है बेटा! ये लो चाय पहले पियो फिर मैं तुम्हें समझाती हूँ।’ अर्चना बोली-’देखो बेटा हमारे वर्तमान का स्वरूप हमारे भूतकाल पर आधारित होता है…अगर भूतकाल इतना संघर्ष भरा नहीं होता तो…वर्तमान इतना निखरता कैसे…हाँ, तुम्हारी ये बात सही है कि लोग फेमस व्यक्ति में पूरा ईश्वर तलाशने लगते हैं…और भूल जाते हैं कि…चमकता हीरा कोयले की खदान में ही मिलता है…और कमल सिर्फ कीचड़ में ही खिलता है…इसी तरह फेमस लोगों के काले और कीचड़ युक्त माहौल में न उलझते हुए उनकी मेहनत की तरफ ध्यान देना चाहिए….क्यूँ ठीक है न बेटा…।’
’मम्मी! आप बिल्कुल सही कह रहीं है।’ हर्ष तारीफ भरी निगाहों से अपनी मम्मी को देख रहा था।
और मम्मी बड़े ही शांतिपूर्वक मुस्कुराते हुए बेटे के चिंतन पर गर्व कर रही थी।

अलका पाण्डे
भानपुरी, छ.ग.
मो.-9009481026