बस्तर पाति-किसी ‘पहुंच’ वाले को साहित्यिक कार्यक्रम की आसंदी देना कहां तक उचित है?
नारवी जी-कोई औचित्य नहीं है। आयोजन हेतु पैसों की सहायता हो जाती है तथा जन की उपस्थिति बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं।
बस्तर पाति-व्यवहार में और रचित साहित्य में कितने प्रतिशत का अंतर जायज है?
नारवी जी-व्यवहार, देश, काल, परिस्थिति पर निर्भर करता है। यह कोई गणित का सवाल नहीं है।
बस्तर पाति-किसी भी साहित्यिक पत्रिका के संपादक की योग्यता क्या होनी चाहिए?
नारवी जी-साहित्यिक पत्रिका के संपादक की योग्यता (1) देश, काल और परिस्थिति का बोध होना आवश्यक है।
(2) कोई विद्यालयीन मापदंड निर्धारित नहीं किया जा सकता है।
बस्तर पाति-साहित्यकार होने के लिए व्यक्ति को कितना पढ़ा-लिखा होना चाहिए?
नारवी जी-कोई मापदंड निर्धारित नहीं है।
बस्तर पाति-साहित्यिक सफलता के मायने क्या होते हैं?
नारवी जी-सामान्यतः पाठकों में लोकप्रियता को साहित्यिक सफलता माना जा सकता है। साहित्यकार अपना मंतव्य पाठकों तक पहुंचाने में सफल हो तभी साहित्यिक सफलता मानी जा सकती है।
बस्तर पाति-साहित्यकार अपने जीवन में क्या करता है और वह क्या रचता है, क्या दोनों में तारतम्य होना जरूरी है?
नारवी जी-साहित्यकार अपने जीवन में जीवन की वास्तविकताओं का अनुभव करता है, अनुभव पर आधारित अपने विचार और दिशा-निर्देश अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज के बीच पहुंचाता है। दोनों में तारतम्य अनिवार्य है। जैसे रिश्वत देना या लेना जुर्म है परन्तु साहित्यकार या अन्य कोई भी क्या इस सच्चाई को अपने जीवन में शत-प्रतिशत लागू कर पाता है ?
बस्तर पाति-हास्य और व्यंग्य में क्या अंतर होता है ?
नारवी जी-हास्य मनोरंजन मात्र है। व्यंग्य में विनोद के साथ-साथ शिक्षा और दिशा-निर्देश भी होता है।
बस्तर पाति-संपादकीय के विषय क्या होने चाहिए, समसामायिक घटनाएं, साहित्य से संबंधित या फिर सामाजिक समस्याओं पर?
नारवी जी-समसामायिक घटनाएं और समाज से उसका सरोकार।
बस्तर पाति-किसी भी पत्रिका में छपने के लिए रचनाएं भेजना कहां तक उचित है?
नारवी जी-मेरे विचार में रचनाएं सम्प्रेषण के लिए होती हैं और सम्प्रेषण का माध्यम प्रकाशन भी है। इसलिए रचनाओं को छपने भेजना उचित है।
बस्तर पाति-साहित्यिक परिदृश्य में आने का षहरों में रहने वाले साहित्यकारों को ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले साहित्यकारों से ज्यादा मौका मिलता है, क्या यह सच है?
नारवी जी-हां, सच है।
बस्तर पाति-वर्तमान व्यंग्य रचनाएं हास्य की श्रेणी में क्यों आ रही हैं?
नारवी जी-व्यंग्य में गंभीरता, शिक्षा तथा दिशा-निर्देश की अनिवार्यता होती है जो कम होती जा रही है और केवल हास्य बढ़ता जा रहा है।
बस्तर पाति-क्या उम्र के साथ लेखन में परिपक्वता आती है, या ये जुमला यूं ही उछाला गया है?
नारवी जी-आती है।
बस्तर पाति-मात्र कविता लिखना साहित्य है या फिर अन्य विधाओं से जुड़ना चाहिए?
नारवी जी-न तो केवल कविता लेखन में सिमटना अनिवार्य है और न ही अन्य विधाओं से। अभिव्यक्ति की परिपूर्णता जरूरी है।
बस्तर पाति-आप साहित्य की किस विधा को अपने लिए अनुकूल मानते हैं? क्या उसी विधा ने आपकी पहचान बनायी है?
नारवी जी-कविता (ग़ज़ल)। हां।
बस्तर पाति-सुविधाओं के बीच रहकर जो साहित्य रचा जाता है, क्या वह आम लोगों का साहित्य हो सकता है?
नारवी जी-साहित्य कोई उपभोक्ता वस्तु नहीं बल्कि साहित्य, सामाजिक परिवेश का विश्लेषण एवं दिशा-निर्देश का माध्यम है।