यशवंत गौतम की कविता

खामोशी

साल-सरई
जंगल-खेत
घोटुल-मांदर-रेला गीत
सब खामोश
जिन्दगी खामोश
ऐसे में
सूरज कांपता
दे जाता है
सूनापन-
और गहरा जाती है-
शाम।
मंगलू के कोठार में
डोंगरी के वीरान में
लेकिन
खामोश सब खामोश
फिर
होता है धमाका-
गूंज उठती है
साल वनों की वादियां
थर्रा जाती हैं कुर्सियां
दौड़ती हैं गाड़ियां
चमकती हैं बत्तियां
लेकिन खामोश
सूरज हर दिन की तरह
उगता है फिर डूबता है
लेकिन-खामोश!
सब -खामोश!
आखिर कब टूटेगी
यह-
खामोशी!

 

यशवंत गौतम
कोण्डागांव जिला-कोण्डागांव,
छ.ग.
फोन-09407756565