लाला जगदलपुरी-संस्मरण-श्रीमती मोहिनी ठाकुर

एक विलक्षण व्यक्तित्व

आकाश से ऊँचे विचारो को सहेजे, सागर से गहरे व्यक्तित्व वाले थे लालाजी, जो हमेशा मेरे पिता तुल्य रहे, मुझे फक्र है इस बात का कि उन चंद रचनाकारों में से मैं भी एक हूं जिनके लिए बड़ी सहजता से उन्होंने भूमिका लिखना स्वीकार किया। यही नहीं मेरे कविता-संग्रह के लिए अपने आशिर्वचन के साथ-साथ जो स्नेह मुझे दिया वह मेरा बड़ा संबल बना, ऐसे समय में, मुझे जब इसकी निहायत जरूरत थी। मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित करता था उनका सादापन, सीधा और सच्चा मन। जब उनका सानिध्य मिला उनके ज्ञान सागर से अंजुरी भर-भर ज्ञान बटोरती रही। उनके पास बैठे हुए घंटों गुजर जाते पता ही नहीं चलता। लेखन की बारीकियों पर, कविता की बानगी पर, बाल कविताओं पर वृहत् चर्चा होती और इन विषयों पर उनसे जो कुछ सीखा, पाया वह मेरी बड़ी उपलब्धि रही है। उनका मार्गदर्शन मेरे लिए सदैव प्रेरणादायक रहा।
बड़ा अच्छा लगता जब वो अपनी पुस्तकों में से कोई पंक्तियां पढ़कर सुनाते और मुझे पुस्तकें भी दिया करते, वे सभी पुस्तकें मेरे संग्रह भी अमूल्य निधि के रूप में हैं। और जिसे मैंने बहुत सहेजकर रखा है वह है उनकी बडे़ अपनेपन से लिखी चिट्ठी! जिसमें उन्होंने मुझे ‘‘प्रिय बेटी’’ लिखकर संबोधित किया है यह उस पत्र के जवाब में उन्होंने लिखा था जब मैंने उन्हें पत्र द्वारा अपने कविता संग्रह ‘‘नीम अंधेरे’’ के लिए भूमिका लिखने का अनुरोध किया था (उन दिनों मै रायपुर में थी) अपनी सभी अविस्मरणीय यादों के साथ वे हमारे साथ हमेशा रहे हैं और रहेंगे।

श्रीमती मोहिनी ठाकुर
ग्राम-लामनी
तहसील-जगदलपुर
जिला-बस्तर, छ॰ ग॰
मो.-08718811825