विश्वगुरु की राह पर
सरस्वती के मन्दिर में
सात साल के बच्चे की हत्या
पाँच साल की बच्ची से बलात्कार
लड़कियों को छेड़ते आचार्य
अब आश्चर्यचकित नहीं करते
भारत की भीड़ को
जो पढ़ती है आये दिन
ऐसे ही समाचार,
फिर भी विश्वास है
कि हम बनेंगे विश्वगुरु
बस, थोड़ी देर और रुकिए
होने ही वाला है कोई “चमत्कार”
यह आश्वासन सुनते-सुनते
बीत गये कई साल।
और यह भी तो चमत्कार ही है
कि झूठ पर करने लगे हैं हम
इतना विश्वास।
शिक्षा
शिक्षा का व्यापारीकरण
किया किसने ?
गाँव की भोली को
कोठे तक पहुँचाया किसने ?
सवाल केवल दो हैं
जिन्हें
न कोई पूछता है
न कोई उत्तर देना चाहता है।
विद्या
भौतिक भव्यता के आकाश में
छितरा है डार्क मैटर।
वहाँ कक्षायें लगेंगी
फ़ोटॉन्स की
और बहेगी एक ज्ञानगंगा
जिसमें होंगे चमकते हुये
असंख्य सूर्य।
विश्वास किया था
वंचितों ने
और सौंप दिया अपना सब कुछ
भव्यता के अहंकार में
सिर उठाये विद्यालय के
प्राचार्य को,
फिर छले गये
लूटे गये
और हो गये विवश
बहाने को अश्रु
शेष जीवन भर।
और तब जान पाये
यह रहस्य
कि शिक्षा के बाज़ार में
विद्या कब बिकी है भला!
एक ही वृक्ष की
मैंने क्रोध से देखा था
उस गंवार को
जिसने कहा था एक दिन
कि आधुनिक विद्यालय
और चकलाघर
दोनों शाखायें हैं
एक ही वृक्ष की
जो डूबी हैं पूरी तरह
गहन अंधकार में
और
जहाँ नृत्य करती है लक्ष्मी
सुकुमार लोगों के चीत्कार पर।
अब मुझे भी लगने लगा है
कितना सच कहा था
उस अशिक्षित ने
जिसे
इतने विलम्ब से समझ पाया हूँ मैं।
सचमुच
यह देश कितना मुग्ध है
मृगया संस्कृति पर!
स्मार्ट सिटी की धुंध में
दुष्यंत की स्मृतियाँ
पता नहीं
यह आश्वासन है
स्मृतियों के विस्थापन का
या सुनिश्चित् उपक्रम है
स्मृतियों के उन्मूलन का,
किंतु इतना तो स्पष्ट है
कि नहीं है
तमसो मा ज्योतिर्गमय का आदर्श
दिख रहा बस
तमस है… तमस है…
तमस रचित षड्यंत्र है।
ढहा दिया
साहित्यिक असंवेदनशीलता
के ज्वार ने
घर दुष्यंत कुमार का
और अब तैयारी है
संग्रहालय भी ढहाने की।
स्मार्ट सिटी की धुंध में
दुष्यंत की स्मृतियाँ
हो जायेंगी धूमिल
बचेंगे सिर्फ़
मन्दिर, मस्ज़िद और चर्च
किंतु नहीं बचेंगी स्मृतियाँ
देश को साहित्य की नहीं
इबादतगाहों की ज़रूरत है
साहित्य
सरकारें नहीं बना सकता न!
डॉ. कौशलेन्द्र
सनसिटी, लालबाग, जगदलपुर-494001 छ.ग.
मो.-9424137109