समाजसेवी
अनिल कुमार जी से मेरी मुलाकात बहुत पहले हुई थी एक मित्र के यहां। समाज व राष्ट्रीयता की अवधरणा पर उनका लेक्चर सुनकर मैं वाकई उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। उनका लेक्चर ही प्र्रभावशाली और ओजपूर्ण नहीं था अपितु कौम की हर खिदमत करने के लिए भी वे तत्पर दिखलाई पड़ रहे थे।
समाज में व्याप्त समस्याओं और कुरीतियों को लेकर भी वे काफी चिन्तित थे। मित्र ने मुझे बताया कि अनिल कुमार जी के बड़े-बड़े लोगों से अच्दे संबंध हैं और अपनी बिरादरी के रिश्ते करवाने में भी रूचि रखते हैं।
एक दिन मैंने भी अनिल कुमार जी से कहा-’’सर! हमारी बिटिया भी शादी के लायक हो गई है, उसके लिए भी कोई उपयुक्त वर हमें बतलाइए।’’
’’हां, हां, क्यों नहीं। मेरा काम ही भाइयों की सेवा करना है पर एक काम करना नरेन्द्र, बिटिया का बायोडाटा मुझे भिजवा देना।’’ अनिल कुमार जी ने आश्वस्त करते हुए कहा।
मैं अगले दिन ही बिटिया का बायोडाटा लेकर अनिल कुमार जी के यहां पहुंच गया। मुझे देखते ही उन्होंने पूछा-’’हां भई नरेन्द्र! कैसे आना हुआ ?’’
मैंने उन्हें बीते कल की बात याद दिलाई और कहा-’’अनिल कुमार जी! बड़ी बिटिया की शदी तो कई साल पहले कर चुका हूं। बेटे की शादी की मुझे कोई चिन्ता नहीं। बस सारी चिन्ता छोटी बिटिया की है। मेरे पास कुल मिला कर बारह-तेरह लाख रूपये हैं और ये सारे पैसे मैंने छोटी बिटिया की शादी के लिए ही संभाल कर रखे हैं।’’
मैं और कुछ कहना चाहता था पर अनिल कुमार जी ने बीच में ही मेरी बात काटते हुए कहा-’’अरे! मुझे क्या समझा रहा है ? मुझे पहले से ही अंदाजा था कि तेरा बजट ऐसा ही होगा, दरम्याना-सा, कोई दस-बारह लाख का।’’ अनिल कुमार जी ने फिर पास ही रखी एक फाइल की ओर इशारा करते हुए कहा-’’बायोडाटा सामने मेज पर रखी फाइल में रख दे। इस बजट में यदि कोई लड़का मिलता है तो देखता हूं।’’
अपनत्व
पूरी सीढ़ी में काफी चहल-पहल थी। छोटे-छोटे कई बच्चे ऊपर-नीचे आ-जा रहे थे और खेलकूद रहे थे। दरअसल शर्माजी के यहां मेहमान आये हुए थे। उनकी बहन के बेटे की शादी थी। वो अपने पूरे परिवार के साथ शादी का निमंत्रण देने और भात न्यौतने के लिए आई हुई थी। शर्माजी ऊपर वाले फ्लैट में रहते हैं। उनके नीचे वाले फ्लैट में गुप्ताजी का परिवार रहता है। दोनों परिवारों में बड़ी घनिष्टता है। शर्माजी के परिवार ने शाम की चाय पर गुप्ताजी के परिवार को भी बुला लिया था। उनकी बहन ने गुप्ताजी के परिवार को भी शादी का कार्ड दिया और आने का आग्रह किया। चाय के साथ खाने-पीने का इतना अधिक सामान था कि सबके पेट भर गये। मिसेज गुप्ता ने कहा कि आज रात खाने की छुट्टी। खाते-पीते और गपशप करते शाम कब बीत गई पता ही नहीं चला। चाय के बाद जब गुप्ताजी का परिवार बाहर निकला तब तक बाहर अंधेरा हो चुका था और सबने अपनी-अपनी बाहर की लाइटें जला ली थीं। सीढ़ियों में कॉमन लाइटें नहीं हैं लेकिन सबके दरवाजों पर रोशनी की अच्छी व्यवस्था है और देर रात तक लाइटें जलती रहती हैं। गुप्ताजी के घर के बाहर तो कभी-कभी सारी रात ही लाइटें जलती रहती हैं। जब गुप्ताजी परिवार जाने लगा तो मिसेज शर्मा ने मिसेल गुप्ता से यूं ही अपनापन जताने के लिए कहा-’’आज मेहमानों को जाते-जाते देर हो जायेगी। आप अपनी लाइटें जलती रहने देना।’’
’’ये भी कोई कहने की बात है ?’’ मिसेज गुप्ता ने भी उतने ही अपनेपन से जवाब दिया। डिनर के बाद जब मेहमान जाने के लिए बाहर निकले तो देखा कि नीचे सीढ़ियों में पूरी तरह से अंधेरा पसरा हुआ था। सभी लाइटें बंद थीं। अगले दिन मिसेज शर्मा ने शिकायत करते हुए मिसेज गुप्ता से कहा-’’अरे भई! वैसे तो आपकी लाइटें सारी-सारी रात जलती रहती हैं। कल कहने के बावजूद लाइटें जल्दी बंद कर दीं।’’
मिसेज गुप्ता ने जवाब दिया-’’अब हमें क्या पता था कि आपके मेहमान इतनी ज्यादा देर से जायेंगे ? फिर रात को सोने के बाद कौन उठता लाइटें बंद करने ?’’
सीताराम गुप्ता
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