लघुकथा-सुषमा झा

काम
‘मां! आप काम करते-करते थक जाती हो।’
‘क्या करूं बेटा! काम करना तो पड़ेगा ही। खैर तू चिन्ता मत कर, पढ़ाई कर। तेरी नौकरी लग जाए बस। मैं तो तेरी शादी भी तुरंत कर सब काम से छुट्टी पा लूंगी।’
शादी के बाद।
‘मां! आप भी तो दिन भर खाली बैठी रहती हो, मीना का हाथ बंटा दिया करें न! बेचारी काम करते-करते थक जाती है।’
दहेज
‘मुन्ना! तुम्हारी बहू तो बड़ी खूबसूरत है, पर दान दहेज कुछ लाई है या नहीं ? तुम तो ठहरे भोला भंडारी, समधीजी ने ठग दिया होगा।’
‘नहीं दीदी! क्या करता दहेज मांगकर, बहू पढ़ी लिखी है, नौकरी करती है। कुछ मांगता तो दे देते और बहू जीवन भर रौब जमाती। अब देखना हर महीने पैसे भी लायेगी और घर भी संभालेगी।
‘अरे मुन्ना! बड़े चालाक हो। बहू तो आदर्श पिता का तमगा देगी।’
गलती क्या
‘आपने तो दिमाग खराब कर रखा है दीदी! हम सब छोटे थे, आपने हमें पढ़ाया लिखाया पर हम भी तो काबिल निकले न, अच्छी नौकरी पाई। आपकी टोका-टाकी से मीना भी परेशान है।’
’…….?’
‘अब आप ने हमारे लिए शादी नहीं की तो हमारी क्या गलती है ? इस बारे में पापाजी को सोचना चाहिए था।’
दीदीया सोचने लगी, पिताजी तो चल बसे, किसे दोष दूं ?
इंतजार
मैं द्वार पर खड़ी बच्चे की राह देख रही थी।
‘अरे अम्मा! आप भी इस धूप में खड़ी हैं। मैं कोई बच्चा हूं क्या ?’ उन्नीस साल के गुंजन ने हंसते हुए मुझे गले लगा लिया।
मन ही मन मैंने सोचा। जब तुम छोटे थे तो तुम्हारी जान का भय और अब बड़े हो गये तो बिगड़ जाने का भय। मां को तो बस इंतजार ही करना है।


सुषमा झा
प्राचार्य बस्तर हाई स्कूल जगदलपुर जिला-बस्तर छ.ग. 494001
मो. 9425261018