काव्य-त्रिलोक महावर

परिदृश्य

कत्लेआम हुआ
आम का
हुआ विनाश
पलाश का
दरस भी नहीं मिला
सेमल का,
बताओ पुष्पधन्वा
कैसे होगा उत्सव ?
बयार भी
कुछ बदली -बदली सी है कोयल ने भी
खेमा बदल लिया है
महुआ को
अस्मत बचाने के
लाले पड़ गए हैं
करोना पीड़ित की नाईं
सरई (साल) ने भी
फूलने से इंकार कर दिया है,
शहर में
तुम्हारे लिए कफ्र्यू है
गगन चुम्बी इमारतों ने
पास की गुंजाईश
खत्म कर दी है
गाँव और जंगलों को
खुद को बचाने की पड़ी है
नदी ताल झरनों में
चुल्लू भर पानी भी
नहीं बचा है
तुम्हारे इस तरह
न होने को हम
कुंती की तरह
बर्दाश्त करने का
प्रयास करेंगे
ऋतुराज
सांत्वना के लिए
ये क्या कम नहीं
अभी तो पांच बाकी हैं!

ले गया

बगल से जो गुजर गई
वह हवा नहीं थी
फुर्र चिड़िया भी नहीं
लरजती बदली भी नहीं
ऐसा भी नहीं था
तितलियों की टोली
तफरी करती गुजरी हो
बालों की लट के करीब से,

वह दबे पाँव निकला एकदम करीब से
मगर हिला गया
सर से पाँव तक
बगैर साँकल बजाये
दरवाज़े पर
थाप दिए बगैर
और तो और
कॉल बेल भी नहीं बजाई
फिर भी
साथ ले गया
उन्हें
कभी न लौटाने के लिए!

मेरी कविता

मेरी कविता है
चिड़िया
उसकी चोंच
चोंच में अटे दाने
जिसकी
उम्मीद में हैं
नीड़,

कल यहीं से
उड़ेगी
नये पंखों पर
मेरी कविता!