लघुकथाएं-त्रिलोक महावर
भूख
कुछ मिलेगा बच्चा! ऊपर वाला तेरा भला करे!’
ऐसे ही याचक की झोली में मैंने एक सेर चावल उड़ेल दिये। उसने नाराजगी में सारे चावल मुझे दे मारे। मैं हतप्रभ रह गया। शायद, उसकी भूख पेट की नहीं थी।
कब्र
वह बहुत बूढ़ा था। दिन भर माथे पर हाथ धरे खांसता रहता था। रात को उसकी टुटही झोपड़ी से खटर-पटर की आवाजें आया करती थीं। एक दिन किसी ने पूछा- ’बाबा रात को क्या करते हो ?
तब बूढे ने कहा-’अपने लिए कब्र खोदता हूँ बेटा! क्या पता मरने के बाद दुनिया सही ठिकाने पर लगायेगी या नहीं ।’
बड़ा दिल
मिठाई की दुकान में घुसते ही उस पर नजर पड़ी। अपने चांद और सूरज के साथ बरामदे में थी।
मैंने पानी की एक बोतल, और मिठाई के साथ कुछ समोसे उसे दे दिए। तभी एक और महिला ने भी अपना हाथ बढ़ाया, जिसे अनदेखा कर मैं अपने कैरिबैग सहित गाड़ी में लद गया। बाहर झाँककर देखा, अपने दो बच्चों की परवाह किए बगैर उस औरत को आधा हिस्सा दे रही थी वह माँ।
त्रिलोक महावर