सनत सागर की कहानी -शिकार

शिकार


बैलगाड़ी के लगातार जाने से बने पहियों के गहरे निशान जंगल के अंधियारे में गुम नजर आ रहे थे, जीप के चरमराते ब्रेक बकरी के मिमियाने की तरह लगे, शायद उन्हें अहसास हो गया था कि मेेन सपाट सड़क के बाद लगभग 6 किमी. लंबी डब्लयू बीएम रोड का गढ्ढेदार चेहरा देखने के बाद किसी प्रकार की रहमत खुदा नहीं दिखाने वाला है। लगातार धूल भरी सांस के साथ गढ्ढे की मार से गाड़ी का मशीनी इंजन तक चिंचिया रहा था।
सामने सर के आधे बालों को मंुडवा कर पीछे बालों की लंबी चोटी बांधे कमर तक नंगा चमचमाता शरीर कमर से नीचे लाल रंग की पापलिन का टुकड़ा लपेटे ’कामा’ ने रूकने का ईशारा कर दिया था और गाड़ी दमेे के मरीज की तरह गहरी सांसें लेती रूकी थी।
दम साघे कामा के साथ आठ की संख्या में खाकी वर्दी विराजमान थी जो कामा के गांव में घटी वारदात की पड़ताल के लिए घने जंगलों के बीच ड्रेकुला की कई हिस्सों में फटी लपलपाती जीभ की तरह सड़क पर सरक-सरक चल रही थी। गाड़ी के अचानक रूकते ही डबल्यू बी एम की उड़ती धूल ने अपने बवंडर में जीप सहित सबको अपने घेरे में ले लिया मानो ड्रेकुला उन सबको लीलने के लिए सारा दम लगा रहा हो।
स्थिर हवा में स्थिर होते धूल के कणों ने बैलगाड़ी के लगातार जाने से बने पहियों के गहरे निशानों को दिखाया। पचासों साल पुराने बेतरतीब वृक्षों की अगणित संख्या ने वातावरण डरावना बना दिया था। जंगल की निशब्द शांति के स्वर कानों को चीरते हुए दिल की धड़कनों को अनियंत्रित कर रहे थे। वृक्षों की सघनता के साथ संर्कीण होता सड़क मार्ग हृदय की धमनी को कोलेस्ट्रोल की परत से छोटा करता लग रहा था।
’कहां है गांव ?’
‘इस जोड़ान के अंदर जाना है।’ का़मा की तुरंत आवाज से चौंक से गये सारे। कामा शायद जवाब देने तैयार बैठा था, उसे मालूम था उसकी बस्ती तक पंहुचना आसान न था। उसका गांव हर सरकारी सुविधाओं से विहिन था। न तो हेण्डपंप था न ही किसी प्रकार का सरकारी भवन। सरकारी अफसर भी आज तक नहीं आये थे।
आज बडी मशक्कत के बाद पुलिस पार्टी इस अनजाने गांव में छान बीन के लिए न जाने कितने दिनों के लिए पहुंच रही थी। राजस्व नक्शे में यह गांव है या नहीं, इसकी कोई जानकारी न थी। इंजन की उखड़ी सांसों को संयत कर गाड़ी उस जोड़ान पर मुड़ गई। उबड़ खाबड़ रास्ते पर 12-15 की स्पीड पर सरकती गाड़ी भी जबरदस्त हिचकोले खा रही थी। गाड़ी की बॉडी और इंजन के अलावा हर किसी ने मौन व्रत धारण कर लिया था।
सूरज साठ अंश पर आ गया था फिर भी घने जंगलों का अंधेरा ही जीता हुआ लग रहा था। संकीर्ण मार्ग के दोनों ओर के पेड़ आदम चेहरा लिए नजर आ रहे थे। दृष्टिभ्रम का खेल अब लगातार चल रहा था। जंगली जानवरों की आकृति क्षण क्षण मे दृष्टिगोचर होती, कभी पेड़ों से कूदकर गाड़ी पर आने वाले इंसान भी नजर आ जाते। इस पिछड़े आदिवासी इलाके में जहां लंगोट ही संपूर्ण वस्त्र की श्रेणी में आता है वहां पत्रावरण होना साधारण सी बात हो सकती है, इसलिए हर पत्ता अधोवस्त्र और वृक्षों की डालियां हाथ पैर होने का भ्रम पैदा कर रहे थे।


आठ खाकी में से सात तो लंबी लंबी बंदूकें पकड़े थे जो उनके लिए सुरक्षा व्यवस्था कम, बोझ ज्यादा प्रतीत हो रही थी। उनमें से एक गाड़ी की स्टेयरिंग संभाले था।
लगातार चार घंटे चलने के बाद भी गांव का नजर न आना उनके मन में शंका पैदा कर रहा था। थोड़ा और थोड़ा और के चक्कर में वे इस अनजाने चक्रव्यूह में फंस गये थे, जहां से निकलना भी उस कामा के रहमोकरम पर था। उस वक्त को कोस रहे थे जब वे अपने सुरक्षित ठिकाने थाने को छोड़कर इस जंगल मे आये थे। थाने का रूआब अब भय के पसीने में बह गया था। जरा सी भी अलग तरह की ध्वनि उनके पीले पडे़ चेहरों पर एक आड़ी लकीर खींच देती।
आखिरकार एक झोपड़ी नजर आ ही गई, पर उस बस्ती तक पंहुचते-पंहुचते आधा घंटा और लग गया। सितारे की तरह बस्ती की संरचना थी, बीच चौक पर छै पगडंडियां मिल रही थी जिसमे से हर पगडंडी पर छै-सात, छै-सात झोपड़ियां थी। इमली के पेड़ों की बहुतायत, गाय बैल के गोबर की तीव्र गंध विशेषता थी, लकड़ी की खदान पर होने का यह चिन्ह था कि हर झोपड़ी पेड़ों की मोटी-मोटी बल्लियों की चाहरदीवारी से घिरी थी।
गाड़ी की आवाज से सारा गांव जाग चुका था। एक व्यक्ति दौड़कर झोपड़ी से स्टूलनुमा लकड़ी का टुकड़ा ले आया। पुलिस गाड़ी का सिर्फ ड्रायवर अपनी सीट पर ही था बाकी सब उतर गये थे। उनका सीनियर कुर्सी पर बैठ गया। कामा उनके आगे उकडू बैठकर हाथ जोड़ लिया।
’साहब जहां आप बैठे हैं उसके पीछे ही पेड पर लाश फंसी है।’ कामा बोला
कुर्सी पर बैठा पुलिस वाला सुस्ता भी नहीं पाया था कि बिच्छू के डंक लगने की अनुभूति लिए उछल पड़ा। लाश दिख रही थी। लगभग नंगा आदमी था वो, इमली के पेड़ की मोटी डाल पर औंधा पड़ा था। उसके दोनों हाथ और पैर तने के दोनों ओर लटके थे, आंखें भय से खुली नजर आ रही थीं। पीठ पर एक तीर घुसा था।
सारे पुलिसियों की टांगों के बीच से सांप गुजरने की स्थिति लग रही थी। सारे के सारे जड़ हो गये थे। भयानक जंगल मंे भंयकर दृश्य था।
‘साहब! ओ साहब!’ कामा ने दो बार आवाज दी तो उन सबके शरीर सिहरन की लपेट में आकर स्थिर हुए। साथ ही उनके हाथ तीन फीट की बंदूक पर कस गये।
बीच चौक मे उस लाश को उतारा गया और पूछताछ शुरू हुई। लकड़ी की आठ कुर्सीनुमा संरचनाओं का इंतजाम हो चुका था। अबकी आठों पुलिसवाले साथ-साथ बैठे थे; शायद एक दूसरे को सुरक्षित करने की मौन स्वीकृति थी। आपस की नजदीकी उनके अंदर सुरक्षित होने का झूठा विश्वास पैदा कर रही थी।
‘कौन है ये ?’ यादव ने पूछा, वही उन आठों का सीनियर था।
‘गोमचा है साहब! पर यह हमारे गांव का नहीं है; पड़ोस के गांव का है।’ कामा अब भी हाथ जोड़े खड़ा था। उसके ऐसे ही लगातार खड़े रहने पर उसके दोनों हाथ चिपके होने का भ्रम हो रहा था।
‘किसने मारा इसे ?’ यादव फिर बोला। तब तक गांव के कुछ लोग घेरा बनाकर खड़े हो गये थे।
‘पता नहीं साहब! सुबह उठे तो यह झाड़ पर लटका था, नीचे खून टपका पड़ा था इसलिए पता चल गया कि कोई ऊपर है।’
‘दूसरे गांव का आदमी ! वो भी पेड़ के ऊपर गांव के बीचांेबीच मारकर लटका दिया गया और गांव में किसी को कुछ नहीं मालूम! ऐसा कैसे हो सकता है ?’ यादव अपने साथियों के साथ सोच में पड़ा ही था कि भीड़ के बीच से एक अठारह बरस का लड़का आया।
‘साहब! ये खबर इधर-उधर करता था इसलिए इसे मार दिये।’ बगैर लाग लपेट बोला वह।
सारी बस्ती इकठ्ठी हो गई थी पुलिसिया पूछताछ देखने। गांव के चौक का मैदान दो तीन सौ लोगों से धीरे-धीरे भर गया था।
अबकी यादव लाश की ओर ध्यान से देखा। उसके रोंगटे खड़े हो गये। सच में वह तो पहचाना चेहरा था। पर रिकार्ड में नाम तो कुछ ओर था। उसे कई बार बाजार मंे थानेदार साहब को लौकी बेचते देखा था। वो हमेशा लौकी ही लाता था और थानेदार साहब उसी से लौकी लेते थे। पल भर मे ही सारे शरीर ने बाल्टी भर पसीना छोड़ दिया; वर्दी गीली हो गई। उन्हें आज स्वयं के शिकार होने का पूरा अंदेशा हो गया। गाड़ी का ड्रायवर अपनी बंदूक वहीं पर छोड़कर छोटी उगंली उठाया और भीड़ को चीरता झाड़ियों की ओर जाने लगा। उसकी आंखें भय के कारण फटने पर आमदा हो गई थीं। भीड़ का हर व्यक्ति, क्या बच्चा, क्या बूढा क्या महिला सबके हाथों में या तो टंगिया, खुरपी, हंसुली या फिर लकड़ी का टुकड़ा जरूर था। जिसे हर कोई भीड़ से बाहर निकलते उस ड्रायवर से छुपाने की असफल कोशिश कर रहे थे।
ड्रायवर ने आसमान की ओर देखा लगभग साढ़े चार बज रहे थे। इतनी छोटी बस्ती में इतने सारे लोगों की भीड़ उसके टनटनाते दिमाग को पिलपिला बना रही थी। बढ़ती भीड़ और उनके पास हथियार, कसाई के टेबल पर रखे बकरे की जगह उसे दिखा रहे थे। उसका भयभीत मस्तिष्क द्रुत गति से भाग रहा था। वह पेशाब करने पेड़ की ओट में हो गया। वहीं उसने अपने सारे वस्त्र उतारकर फेंक दिया, सिर्फ पट्टेवाली चड्डी ही बाकी रह गई। उसका सांवला रंग और संध्या की बेला उसके लिए संजीवनी बूटी लग रहे थे। वह नाक की सीध में भाग लिया।
‘क्या सबूत है इस बात का ?’ यादव बड़ी मुश्किल से पूछा।
उस लड़के ने घूरकर देखा। ‘जितनी बड़ी लौकी उतने ही आदमी इस जंगल मंे। लौकी नहीं तो आदमी नहीं। भिन्डी या बरबट्टी का कूड़ा माने मीटिंग। और कुछ सबूत दूं ?’ लड़का गुर्राकर बोला।
‘—’ यादव की जबान मंे इन बातों ने कील ठोंक दी। जबान हिली ही नहीं।
‘आज तो हमारा जश्न है। पुलिस वाले मिले, पुलिस की गाड़ी मिली और इतने सारे हथियार मिले। अब तुम्हारे गंदे खून को इस धरती पर बहायेंगे तब तो लाल निशान और ज्यादा लाल होगा। और वह ड्रायवर जो कपड़े छोड़कर भागा है वो बतायेगा दुनिया को हमारा भयानक चेहरा।’
रात के अंधेरे से भी भयानक देख चुका वह ड्रायवर भागता हुआ, पंहुच गया किसी तरह मेन रोड पर।