मेरी ग़ज़ल – डॉ बी प्रकाश मूर्ती ” पैमाना “

मेरी ग़ज़ल

समन्दर से जो मिल जाता वो फिर कतरा नही रहता
खुदा के साये में हमको कभी खतरा नही रहता

मुझे बाँधा नही जाता करो तुम लाख कोशिशें
मैं दरिया का वो पानी हूँ कहीं ठहरा नही रहता

जिसे तुम हुस्न समझते हो छलावा है वो कुदरत का
की इतराते हो जिस पर तुम वही चेहरा नही रहता

खयालों के समन्दर में बड़े तूफान आते है
ये दरियाओं तलाबों में कोई खतरा नही रहता

मैं पैमाना मैं कैदी हूँ हमेशा सच ही कहता हूँ
जो कहता झूठ मैं भी तो कभी पहरा नही रहता

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ये मुसीबत रही जिंदगी के लिए
गम में पीते रहे दिल्लगी के लिए

जिंदगी मुझको तुझसे शिकायत नही
रास्ते थे बहुत ख़ुदकुशी की लिए

शौक से छोड़ दूं मैं ये दुनिया तेरी
तुम चले आओ इकबारगी के लिए

हम तेरे शहर में इतने मशहूर है
जैसे परवाना है आशिक़ी के लिए

बेवजह कोई पीता नही है सनम
चाहिये कुछ वजह रिन्दगी के लिए

सारी दुनिया मिली तु कहीं न मिला
मैं तलाशा बहुत बंदगी के लिए

होश की बाते मदहोश करती नही
ये किताबें है बेचारगी के लिए

कुछ जमाने का गम है सर में मेरे
भर दे पैमाना सबकी खुशी के लिए
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कैसे कहूँ किसी से जमाना बदल गया
बदला जो वक़्त तो हर सहारा बदल गया

फिर शाख से गिरा पत्ता सब देखते रहे
उसकी नजर फिरि तो नजारा बदल गया

तुम हो गई किसी की मैं किसी का हो गया
मौजें बदल गयी तो दरिया बदल गया

इतनी बेरुखी मुझसे तेरी ठीक तो नही
मेरे लिए तुम्हारा नजरिया बदल गया

तेरी जगह कोई और मंदिर में मिलता है
सच बोलो क्या पता कुछ तुम्हारा बदल गया

डॉ बी प्रकाश मूर्ती ” पैमाना “
जगदलपुर बस्तर (छ ग)

Mo-94253 45539