पाठकों की चौपाल
प्रिय पाठक, नमस्कार,
कुछ बातें ‘बस्तर पाति’ के नियमित कॉलम के संबंध में करना चाहूंगा। ‘बहस’ कॉलम पाठकों और पत्रिका के बीच संवाद स्थापित करने के उद्देश्य से ही रखा गया है। ऐसा नहीं है कि उस कॉलम में लिखी समस्त बातों से आप सहमत हों। असहमति और सहमति से ही ज्ञान का विस्तार होता है। इसलिए आप अपने विचारों से असहमति एवं सहमति हमसे और अन्य पाठकों से साझा करें।
ठीक इसी तरह नक्कारखाने की तूती कॉलम है जिसमें उन विषयों पर लगातार लिखा जा रहा है जिससे हम रोज दो-चार होते हैं पर फंसे वहीं होते हैं। इन विषयों में एकदम सामान्य परेशानियों का प्रस्तुतिकरण नहीं होता बल्कि वैसी बातें होती हैं जहां हम उन परेशानियों को नियति या न बदल सकने वाला नियम मान लेते हैं।
आप से अनुरोध है कि आप अपने विचार जरूर भेजें। पाठकों से रूबरू के माध्यम से आपके विचार साझा होंगे। संपादक
प्रिय सनत,
बस्तर पाति के अंक-4 के प्रकाशित होने पर बधाई एवं शुभकामनाएं। उत्तरोत्तर इसी तरह अपने काम में सफल होते रहें यही कामना है।
कहानी प्रतियोगिता के बहाने सहज-सरल कहानियां पढ़ने को मिलीं। कहानियों को प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान देने की सम्पादक/सम्पादक मण्डल की अपनी रूपरेखा हो सकती है लेकिन मुझे जो कहानी सबसे अधिक पसंद आई वो है-कुमार शर्मा ‘अनिल’ की ‘पुरस्कार’। सधी हुई भाषा शैली, कथा वस्तु, विषय की यथार्थपरक विवेचना और कहानी में कौतुहल का वातावरण। मेरी ओर से बधाई।
‘पाठकों से रूबरू’ यानी सम्पादकीय बहुत अच्छा लगा। इसमें जिस सकारात्मकता, मौलिकता और सहजता की बात कही गई है इन सब चीजों की आज वास्तव में बहुत अधिक ज़रूरत है। सम्पादक के विचारों पर सभी लेखक और पाठकों को ग़ौर फ़रमाना चाहिए। नसीम आलम ‘नारवी’ जी की ग़ज़लें उम्दा हैं। हर शेर में मानीखे़ज बात है और ये बड़ी बात है। नारवी जी बधाई के पात्र हैं। उनकी ग़ज़लों में उनके शाइर का तेवर दिखाई देता है-मसलन-
तक़ाज़ा वक़्त का है तर्क कर ये नर्म-खी
फ़तह क़रीब है तेवर बदल कर देख ज़रा।
नक्कारखाने की तूती एक अच्छे कॉलम की शुरूआत है। इसे लगातार चलाते रहना चाहिए। शरदचंद्र गौड़ जी को अपने व्यंग्य उपन्यास ‘मन्नू भण्डारी जाएगा मंगल पर’ के लिए बधाई।
ख़ुदेजा ख़ान, अशोका पार्क के सामने, धरमपुरा, जगदलपुर
आदरणीय ख़ुदेजा जी, नमस्कार
आपका लंबा-चौड़ा पत्र और उस पत्र में बस्तर पाति की समीक्षा पाकर मन आनंदित हो गया। आप बस्तर क्षेत्र की वो साहित्यकार हैं जो अपने लेखन-यथा-ग़ज़ल, कविता, नज़्म, कहानी, लघुकथा, आलेख और समीक्षा में सिद्वहस्त होने के साथ-साथ वर्तमान सामाजिक, राजनैतिक, साहित्यिक समस्त घटनाओं के प्रति सजग-सचेत हैं। आपके विचारों में जो सुलझापन है वह अन्य साहित्यकारों में दुर्लभ है। आपके द्वारा अनेक पुस्तकों की समीक्षा भी की गई है। अगले अंकों में उनका लगातार रसास्वादन किया जावेगा।
बड़े ही दुख के साथ बताना पड़ रहा है कि सितम्बर माह में नसीम आलम ‘नारवी’ जी का निधन हो गया। -सनत जैन
सनत भैया जी, नमस्कार,
ज्ञात हो कि मैं सकुशल हूं भगवान आपको एवं पूरे ‘बस्तर पाति’ परिवार को सकुशल रखे। मैं आपकी पत्रिका के सभी अंक पढ़ चुका हूं। मैंने साहित्यिक किताबों का अध्ययन अपनी महाविद्यालयीन शिक्षा के समय कुछ समय निकाल कर शहडोल म.प्र. के वाचनालयों में किया था जो आज तक जारी है। मैं अभी सशस्त्र सीमाबल में प्रधान आरक्षक के पद पर तैनात हूं, अध्ययन आज भी जारी है। मेरी साहित्य क्षेत्र में रूचि महाविद्यालय के गुरूओं के योगदान और उनके विचारों से हुई। हमारा मध्यप्रदेश (बाद में छत्तीसगढ़ भी) हिन्दी भाषी इलाका है अतः हमें हिन्दी में लिखे-छपे साहित्य – कथा, कहानी,व्याख्यान आदि को पढ़ने का मौका मिला जो कि आदत में बदल गया। आपके द्वारा प्रकाशित ‘बस्तर पाति’ हम पाठकों के लिए सारगर्भित पत्रिका है। यह देश के एकदम पिछड़े इलाके से प्रकाशित हो रही है; हिन्दी भाषा एवं साहित्य की रक्षा के लिए आपको बारम्बार धन्यवाद एवं आभार। मेरी नौकरी की खोज में सन् 2005 में जगदलपुर आना हुआ था। वृंदावन कालोनी में स्व. जनकप्रसाद वर्मा (अभियंता, लोक निर्माण विभाग) के निवास में रूकना हुआ था। उस वक्त वर्मा जी जीवित थे, उनकी पत्नी जो कि शहर के बालिका विद्यालय में शिक्षिका हैं और उनके सुपुत्र जो कि वर्तमान में रायगढ़ में अभियंता हैं, उनके द्वारा दिया गया आदर-सत्कार आज भी दिल और दिमाग में जिन्दा है। वर्मा जी की पत्नी का मां की तरह वात्सल्य भाव था।15 दिन के प्रवास में राजमहल, उसके पीछे स्थित बड़ा सा तालाब, बस्तर की रथयात्रा, दशहरा महोत्सव के समय दंतेश्वरी माई की पालकी का आना, इन्द्रावती नदी, मुर्गा लड़ाई का स्थान, चौराहे बाजार, रेल्वे स्टेशन आदि का घूमना फिरना हुआ था। चारो ओर आदिवासियों द्वारा प्रवीरचंद्र भंजदेव की जय-जयकारा लगाना आश्चर्य पैदा करता है। स्व. राजा आज भी आदिवासी जनों के हृदय में निवास करते हैं। अतः आपसे निवेदन है कि आप स्व. राजा जी के जीवनकाल की कहानियां, संस्मरण को अपनी पत्रिका में जरूर स्थान देंगे। उनके साहसिक व्यक्तित्व का वर्णन जरूर लिखें ताकि पत्रिका के माध्यम से ज्यादा लोग उनके बारे में जान सकें। वैसे मैंने राजाजी पर लिखी किताब को भी पढ़ा था। बड़ा ही लोमहर्षक वर्णन है। भैया मैं जरौदा, तर्रा, रायपुर छ.ग. का निवासी हूं वर्तमान में भारत-भूटान सीमा पर अरूणाचल प्रदेश में तैनात हूं। मेरी और आपकी ससुराल भाटापारा है तो हमेशा प्रेम-व्यवहार बना रहेगा। शुभकामनाओं के साथ आपका सैनिक भाई और छत्तीसगढ़िया।
सुनील कुमार शर्मा, (स.सी.ब.) नामश्रृंग, तवांग, अरूणाचल प्रदेश पिन-790104 मो-9977805981
आदरणीय सुनील जी, जयहिन्द
सर्वप्रथम आपको सैल्यूट! आप और आप जैसे हर जवान की बदौलत भारत आज सुरक्षित है और विकास की ओर अग्रसर है। मुझे अपने आप पर नाज़ है कि मैं एक जवान के साथ सीधे तौर पर जुड़ा हूं। आप देशसेवा के साथ साहित्य के पाठक भी हैं इसका अर्थ यही है कि आप बहुत ही अच्छे इंसान हैं। मेरी एक सलाह है कि साहित्य पठन में रूचि है तो लेखन भी करें क्योंकि आप तो देश के उन स्थानों में आते-जाते हैं जहां आम तौर पर जाना कठिन होता है। आप अपने संस्मरण लिखें ज्यादा आसानी होगी। हम और हमारे पाठक इसे रूचिपूर्वक पढ़ना चाहेंगे। आप जगदलपुर आये थे और अपनी यादों में जगदलपुर को बसा लिया है, आपके पत्र से मालूम होता है। हिन्दी भाषा और साहित्य का जितना भला साहित्यकार एवं संपादक-प्रकाशक करते हैं उससे कहीं ज्यादा तो पाठक पत्रिका/पुस्तक खरीदकर अपने आर्थिक एवं पत्राचार द्वारा नैतिक सहयोग से करते हैं। जिस प्रेम के साथ अपने लेखक /पाठक भाई का पत्र आता है प्रकाशन संबंधी सारी थकान उड़न-छू हो जाती है। अपना प्रयास सार्थक लगता है और भविष्य के लिए आत्मविश्वास का ख़जाना और बढ़ जाता है। -सम्पादक
आदरणीय संपादक महोदय, नमस्कार
आशा और कामना करता हूं कि आप कुशलता से हैं। श्रीमती सुमन शेखर, ठाकुरद्वारा, कांगड़ा से यह जानकर प्रसन्नता हुई कि ‘बस्तर पाति’ में मेरी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। तत्संबंधी अंक प्रेषित कराने का कष्ट करें। आभारी रहूंगा।
मनुस्वामी, 446-अहाता औलिया, मुजफफ्रनगर-251002
आदरणीय मनु जी, नमस्कार
आशा करता हूं कि आप को ‘बस्तर पाति’ का आपकी रचनाओं वाला अंक अब तक प्राप्त हो गया होगा। न हुआ हो तो पुनः प्रेषित करता हूं। संपादक
संपादक जी,
बस्तर पाति का अंक प्राप्त हुआ। धन्यवाद। प्रख्यात लेखक, कवि लाला जगदलपुरी को यह अंक समर्पित कर आपने एक बड़ा काम किया है। लालाजी का नाम तो बहुत सुना था-थोड़ा बहुत उन्हें पढ़ा भी था पर पहली बार उनके बारे में विस्तार से पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ ने एक से एक लेखक, साहित्यकार, कलाकार, कवि देश को दिये हैं। छ.ग. के प्रगतिशील लेखक संघ के कई साहित्यकारों/कलाकारों से मेरा निकट का संबंध भी है। बस्तर की एक अलग ही सभ्यता व संस्कृति है, यह तो साल वनों का एक सुन्दर दीप है जहां लालाजी जैसे फक्कड़ साहित्यकारों ने एक नयी अलख जगाई है।
मनु स्वामी, कीर्ति श्रीवास्तव, सुमन शेखर, सुमय्या काशिफ़, चक्रधर शुक्ल, नज्म़ सुभाष, कुष्ण मोहन ‘अम्भोज’, प्रो. भगवानदास जैन, सुरेश विश्वकर्मा ‘चितेरा’ की कविताएं बहुत अच्छी लगी। पत्रिका में विज्ञापन नहीं है, कैसे निकाल पाते हैं पत्रिका ? साहित्य के प्रति आपके समर्पण को सलाम करता हूं। छ.ग. के साहित्यकारों को एक माला में पिरोने का आप बहुत बड़ा कार्य कर रहे हैं।-डॉ. राजेन्द्र पटोरिया, आजाद चौक, सदर, नागपुर-440001, मो.-9421779906
आदरणीय राजेन्द्र जी, नमस्कार
आपने ‘बस्तर पाति’ का शुरू से ही उत्साहवर्धन किया है-धन्यवाद! वास्तव में लालाजी ने बस्तर के लोक साहित्य, भाषा एवं बोली के लिए जितना काम किया है उसके एवज में न तो उन्हें सम्मान मिला है न ही उनकी रचनाओं के संरक्षण की दिशा में कोई योजनाबद्व कार्य हो रहा है। बस्तर विश्वविद्यालय शुरू हुए अरसा बीत गया परन्तु वह भी लालाजी का सम्मान कर, अपना सम्मान नहीं कर पा रहा है। अगर लालाजी दिल्ली या भोपाल में होते तो आसमान पर होते।
पत्रिका प्रकाशन मेरे लिए व्यवसाय नहीं वरन साहित्य के प्रति आसक्ति है, इसलिए स्वयं के खर्चे से पत्रिका प्रकाशन हो रहा है। इस खर्चे में साहित्य समर्पित पाठक, लेखक अपना सहयोग पंचवर्षीय सदस्यता लेकर दे रहे हैं। और आप जैसे साहित्य के प्रति निष्ठावान लोग लगातार पत्र लिखकर मेरा नैतिक बल बनाये रखते हैं, मेरी ऊर्जा और बढ़ाते हैं। पुनः धन्यवाद।-सनत जैन
बहुत प्रिय भाई सनत, सप्रेम नमस्कार,
‘बस्तर पाति’ के अंक मुझे नियमित मिल रहे हैं। अंक-4 दो दिन पूर्व ही मिला। यह अच्छा लग रहा है कि आप स्थानीय रचनाकारों को बराबर स्थान दे रहे हैं। ‘सूत्र’ के जरिये अग्रज विजयसिंह यह काम करते रहे हैं, अब भी वे युवा व नवोदितों से संवादरत हैं। अच्छा है कि आप जैसे उत्साही साथी की उपस्थिति छत्तीसगढ़ साहित्यिक पत्रकारिता में बढ़ी है। ‘बस्तर पाति’ के अंकों में लाला जगदलपुरी पर एकाग्र अंक हम लोगों के लिए लालाजी को गहराई से जानने में मदद करता है। अन्य जो भी अंक अब तक आये हैं उनमें बस्तर की प्रतिभाओं को खोज-खोजकर प्रस्तुत करते आयें हैं। हां, पत्रिका की पृष्ठ सज्जा के प्रति कुछ उदासीनता है आप इसे बेहतर कर सकते हैं। सनत भाई! मैं अपनी रचनाएं भेजकर ‘बस्तर पाति’ में छपने का सुख भी चाहूंगा। शेष फिर।
रजत कृष्ण, संपादक, ‘सर्वनाम’, बागबाहरा, छ.ग. मो.-9755392532
आदरणीय रजत जी, नमस्कार
आपका पत्र पाकर मुझे कितनी खुशी हुई उसका वर्णन करना मुश्किल है। आप एक प्रेरक व्यक्तित्व हैं। आपके संपादन में निकलने वाली ’सर्वनाम’ पत्रिका का मैं शुरू से ही प्रसंशक हूं। आप लोगों ने पत्रिका प्रकाशन के माध्यम से जो बीड़ा उठाया है उस जैसा ही मैं भी कुछ करना चाहता हूं। आपका आशीर्वाद मिलेगा तो मुझे खुशी होगी। आप अपनी रचनाएं अधिकार पूर्वक भेजिए, उत्कृष्ट रचनाएं प्रकाशित कर ‘बस्तर पाति’ का सम्मान ही बढ़ेगा। पुनः धन्यवाद।-सनत जैन
संपादक जी नमस्कार
आपके द्वारा प्रेषित ‘बस्तर पाति’ की प्रति प्राप्त हुई उत्तरोत्तर ‘बस्तर पाति’ सफलता के सोपान पर अग्रसर है। निःसंदेह यह पत्रिका छत्तीसगढ़ की एक पहचान बनती जा रही है। पत्रिका की सामग्री उच्चस्तरीय है। साहित्यिक पत्रिकाओं में इसे अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है। बस्तर जैसे दूरस्थ जिले में उत्कृष्ट कोटि की साहित्यिक पत्रिका निकालना चुनौतीपूर्ण कार्य है। पूरे देश के साहित्यकार और पाठक इस पत्रिका से जुड़ते जा रहे हैं। साहित्य के विद्यार्थियों के लिए भी यह पत्रिका मार्गदर्शिका है। आपको कोटिशः बधाई। मेरी इच्छा है और निवेदन है कि बस्तर की पत्रिका होने के कारण इसमें अगर आवरण के अतिरिक्त हल्बी, गोंडी आदि बोली में एक रचना आये तो उत्तम होगा। आंचलिकता को प्राथमिकता देंगे ताकि आदिवासी संस्कृति, भाषा, बोली की जानकारी पूरे देशवासियों को हो। जयहिन्द।-डॉ. शैल चंद्रा, प्राचार्य, शा.कन्या हाई स्कूल, सांकरा, जिला-धमतरी छ.ग. मो.-9977834645
आदरणीय शैल जी, सादर नमन,
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! आपने ‘बस्तर पाति’ का बारीक विश्लेषण कर उसके वर्तमान और भविष्य की व्याख्या की। सम्पादक, लेखक एवं पाठकों की तिकड़ी ही किसी भी पत्रिका को स्तरीय बनाती है। जब पत्रिका से जुड़ा व्यक्ति अपनी कीमती सलाह प्रेषित करता है तो पत्रिका का भविष्य उज्जवल हो जाता है। लंबे वक्त तक चलने के लिए सभी का वैचारिक, नैतिक, आर्थिक सहयोग आवश्यक होता है। आपके बताये अनुसार ‘बस्तर पाति’ में हम भी चाहते हैं कि आंचलिकता हो, इसके लिए उस तरह का लेखन करने वाले मौलिक लोगों को ढूंढने का कार्य लगातार चल रहा है। पिछले अंकों में रचनाएं भी हैं। सम्पादक