मोहम्मद मुमताज़ हसन की कवितायेँ

‘अम्न के दुश्मन’    ( 1 )
जाति-धर्म/भाषा के नाम पर
लड़ने वाले
अम्न के दुश्मनों ने
फैला
रक्खा है आतंक यहां!
शत्रु ये अमन के –
उड़ाना चाहते हैं परिंदा –
शांति और इंसानियत का!
चुभती है शायद उन्हें – अनवरत
 बरसों से बहती
एकता की हवा!
‘भाईचारा’ डसता है उनको-
लड़ते जो जाति/धर्म के
नाम सदैव ही
करते वार ‘आतंक’ के हथियार से!
एक अदद सुखमय सुब्ह की / उम्मीद लेकर खुलती हैं  आँखें जब –
देखती हैं फिर वही-
भयावह/ करुण दृश्य
बारूद के कड़वे/विषैले धुंए की
 गंध/ जहां तहां बिखरे पड़े
मानव अंगों के टुकड़े
सहम जाती आंखें-
देखकर वह विभत्स दृश्य…..!
रक्तरंजित लाशों के ढेर/
चीखते भागते लोगों का हुजूम
कर देते विचलित/उद्वेलित
अंतर्मन को…..
मानव-
बन गया है क्यों दानव
क्यूं खलता उसे – एकता/प्रेम
 और सौहार्द का वातावरण …?
पड़े होते सामने ताज़ा
अख़बार के पन्ने –
क्षत विक्षत चित्रों/ रक्तरंजित
पंक्तियों से भरे…!
अखबार के बदरंग पन्नों पर
 बड़े बड़े अक्षरों में
 लिखी हेड लाइनें यही………
आतंकी हमले……मानव…….मृत्यु…..
घायल….लापता……राजनीति…. नेता……बयानबाजी…… घोषणाएं ….मुआवजा…… मुआवजा……… मुआवजा……..?■
‘ नदी का अस्तित्व ‘  ( 2 )
नदी –
तुम उदास क्यों हो कि
अब नहीं गर्भ में तुम्हारे
शीतल जल का स्त्रोत
मैला हो गया है तुम्हारे
भीतर का स्वच्छ जल!
भरा गया है इन्हें/प्लास्टिक
के ‘दुर्गन्धयुक्त’ कचरे से!
छीन ली गई है- शीतलता नदी की
कल कल/निश्छल बहती जल धारा –
वह रूप सलोना –
दिया था जो प्रकृति ने तुमको!
तट पर पानी में तैरते-कूदते / छप छप अठखेलियाँ करते बच्चों का समूह
आसपास हरी दूब पर
विचरण करते वन्यप्राणी
अब –
नहीं आते पास तुम्हारे!
बढ़ते शहरीकरण / अनियंत्रित
जनसंख्या घनत्व के कारण
 सिमट सा गया है नदी का अस्तित्व
छीन गई है –
अल्हड़ता/चंचलता उसकी….!
देख कर नदी की उदास
काया  हो जाता है दुःखी – सूर्य भी
किरणें लौट आती हैं छू कर
 नदी के गर्भ को
…..और नदी ख़ामोशी से
विवश है समेटने को
‘अस्तित्व’अपना…….?■
 ‘गाथा हिंदुस्तान की’  ( 3 )
खड़ा हिमालय सुना रहा है
गाथा हिंदुस्तान की,
हिन्दू मुस्लिम, सिख ईसाई
‘जात’ नहीं इंसान की!
बांट रहे क्यों खंड-खंड में
आपस का यह भाईचारा,
लगे दांव पर आज हैं फिर
मंदिर -मस्जिद गुरुद्वारा!
अनेकता में सूत्र एकता के
बतला रही नदी की धारा,
लड़ते क्यूं आपस में यारों
सम्पूर्ण भारत वर्ष हमारा!
मांग रहा है दक्षिण कोई
मांग रहा कोई उत्तर सारा!
भारत माता जननी सबकी
करते हो क्यों फिर बंटवारा!
अतिक्रमण कहीं किया चीन ने
कहीं ले गया पाकिस्तान!
भूभाग यदि ये मिल जाए सारे
गौरवशाली होगा हिंदुस्तान!
‘विभाजन’शक्तिहीनता का सूचक
सीख यह गीता-क़ुरान की,
खड़ा हिमालय सुना रहा है
गाथा    हिंदुस्तान    की !!■
 ‘इंसानियत’    ( 4 )
 आदमी –
‘इंसान’ होना नहीं चाहता
इस विषम परिस्थितियों में
जबकि –
जानता है वह यहां –
छीन लिए जाते हैं
 ‘अधिकार’ जीने के
‘शालीनता’ को उसकी
 ‘विवशता’ समझकर!
परिवर्तित हो कर विषैले
धुंए में वायु – घोल रही है
दुर्गंध वातावरण में…नित्यदिन!
‘हर आदमी’ के भीतर बैठा है…
एक ‘खार खाया हुआ आदमी’
‘आक्रोशित’/ आक्रामक –
 ‘राज’ से / ‘समाज’ से
या स्वयं से भी……!
ये कैसा वातावरण
 किया गया है निर्मित जहां –
 ‘प्रेम’ है सहमा – सहमा -सा
‘सहिष्णुता’ लटकी है खूंटी पर
कई दिनों से घर में रखी
मुरझाई ‘सब्ज़ियों’ की तरह…?
…..और प्रसन्न हैं हम सब इसी
टूटे-फूटे/दरकते/ संकुचित
 होते समाज के भीतर……!!■
नाम- मोहम्मद मुमताज़ हसन
पिता का नाम – डॉ मोहम्मद हसन ( मानो बाबू )
माता – राबिया ख़ातून
जन्मतिथि -31 अगस्त’1988
लेखन – विगत दस वर्षों से   लेखन कार्य में सक्रिय,
प्रकाशित रचनाएं – हिंदी साहित्य की गद्य एवं पद्य विधा में और बाल साहित्य की  अबतक लगभग 500 से अधिक रचनाओं का देश की विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं यथा बाल साहित्य समीक्षा, बाल वाटिका,बच्चों का देश, देवपुत्र, दुलारा नन्हा आकाश,अपना बचपन, बाल वाणी, लल्लू जगधर,समझ झरोखा,चकमक, बालहंस, बाल प्रहरी,बाल सेतु,नूतन कहानियां, हंसती दुनिया, शीराज़ा, कादम्बिनी, स्नेह,स्कूल टुडे,भावर्पन, आनंद रेखा, शिक्षा दीक्षा, कृषक जागृति, युग साहित्य मानस, नालन्दा दर्पण,समय सुरभि अनन्त, एक नई सुबह,समकालीन अभिव्यक्ति, जर्जर कश्ती, जनभाषा सन्देश, सुमन सागर, इस्पात भाषा भारती, देशकाल संपदा, रांची एक्सप्रेस, कथा संसार,प्रहरी, अक्षर भारत, कथा सागर, अविराम, दि अंडर लाइन,संगम सवेरा, हस्ताक्षर, साहित्य हंट, नव किरण, साहित्य शिखर,मधुराक्षर,शब्दाक्षर पत्रिका,सरस्वती सुमन,सुवासित, साहित्य वसुधा,साहित्य जनमंच,मरु नवकिरन, मानवी,हम हिंदुस्तानी,शब्दाक्षर, शब्दाहुति,साहित्य नामा, काव्यांजलि, तेजस, नव साहित्य त्रिवेणी,विजय दर्पण टाईम्स, दैनिक वर्तमान अंकुर, प्रभात खबर, हिंदुस्तान, आज,दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, राष्ट्रीय सहारा, नव भारत टाइम्स, सन्मार्ग, दस्तक प्रभात इत्यादि में प्रकाशन,कई साहित्यिक वेबसाइटों एवं साझा संग्रहों में रचनाएं शामिल,
पुस्तक प्रकाशन –  विचाराधीन!
विशेष- पटना से प्रकाशित होने वाले प्रमुख हिंदी दैनिक समाचार पत्रों यथा ‘हिंदुस्तान’, ‘दैनिक जागरण’, प्रभात खबर, राष्ट्रीय सहारा, आज,सन्मार्ग,नवभारत टाईम्स और जनसत्ता में सामाजिक मुद्दों/ सम सामयिक विषयों पर  सैंकड़ों विचार( लघु लेखों ) का प्रकाशन,आकाशवाणी से कुछ रचनाओं का प्रसारण!
पुरस्कार/सम्मान – साहित्यनामा, सामयिकी, हम सब साथ साथ, प्रभात खबर, दैनिक वर्तमान अंकुर,उत्तरांचल उजाला, जैमिनी अकादमी, क़लम लाइव अकादमी बदलाव मंच,शब्दाक्षर, देवशील मेमोरियल,हमरंग फाउंडेशन इत्यादि सहित कई समाचार पत्रों द्वारा पुरस्कृत/सम्मानित!
सम्प्रति- लेखन, अध्ययन
व्यवसाय – स्वरोजगार
संयोजक – ‘गुलदस्ता’ ( राष्ट्रीय साहित्यिक मंच )
स्थायी/पत्राचार का पता-
मोहम्मद मुमताज़ हसन
 द्वारा –  डॉ. मानो बाबू,
रिकाबगंज, टिकारी, गया,
बिहार  -824236
मोबा. – 7004884370/8271659903