अंक-4-कविता कैसे बदले तेरा रूप

कविता का रूप कैसे बदलता है देखें जरा। नये रचनाकार ने लिखा था, नवीन प्रयास था इसलिए कसौटी पर खरा नहीं उतरा। उसी कविता को कैसे कसौटी पर खरा उतारें-

घड़ी

घड़ी का लगातार चलना
हल्की टिक-टिक के साथ
दिल की घड़कन-सा
लगता है
घड़ी का रूप बदल जाय
भले ही
गुण और धर्म नहीं बदला
सेकण्ड, मिनट और घंटा
यही तो है उसके अंग
दिनभर घूम-घूम
लेती हाल-चाल
सेकण्ड की सुई
मिनट और घंटे भी
मिलते रहते
तीनों का मिलन भी
हो ही जाता

यही कविता कुछ अन्य पंक्तियां जोड़ने पर देखें कैसे रूप बदलकर रोमांचित करती है-

घड़ी

घड़ी का लगातार चलना
हल्की टिक-टिक के साथ
दिल की घड़कन-सा
लगता है
घड़ी का रूप बदल जाय
भले ही
गुण और धर्म नहीं बदला
सेकण्ड, मिनट और घंटा
यही तो है उसके अंग
दिनभर घूम-घूम
लेती हाल-चाल
सेकण्ड की सुई
मिनट और घंटे भी
मिलते रहते
तीनों का मिलन भी
हो ही जाता
इक साधु की तरह।