ग़ज़ल
चलने वाले जरा देख कर,
हादसों से भरा है सफ़र।
रखिए हालात मद्देनज़र,
कौन देता है किसको ख़बर।
रहगुज़र के लिए मंजिलें,
मंज़िलों के लिए रहगुज़र।
उलझनों से उलझती हुई,
ज़िन्दगी आ गई राह पर।
हम सभी एक मज़हब के हैं,
आज इस पर बात कर।
सोचते रह गये हम ‘विकास’,
ज़िन्दगी हो गई मुख़्तसर।
ग़ज़ल
काश हम आपकी अदा होते,
दर्दे-दिल की बड़ी दवा होते।।
मैंने ग़ैरत को चुन लिया वरना,
आज हम भी हवा हवा होते।।
अब तो दिल की यही तमन्ना है,
हम किसी दिल की तमन्ना होते।।
आदमी होने से तो अच्छा था,
किसी बच्चे का झुनझुना होते।।
हो गये दिलज़दा ‘विकास’ वरना,
एक दिलावेज़ फरिश्ता होते।।
सुकून का……
सुकून का साया गया,
हरा दरख्त काटा गया।
खुशी के बदले ग़म दिये,
इंसानियत का नाता गया।
मुन्ना गले से लिपट गया,
दादा गीत गाता गया।
क्या हिन्दू क्या मुसलमान
एक उजाला बांटा गया।
प्यार में क्या नफा-घाटा
देता गया पाता गया।
‘विकास’ उसकी तरफ बढ़े,
वह कह कर जो टाटा गया।
यादव ‘विकास’
अम्बिकापुर, छ.ग.