श्रीमती शैल चन्द्रा की कवितायेँ

शहरों से होड़ लेता गांव

गांव अब नहीं रह गया गांव
शहरों से होड़ लेता फिर रहा है गांव।
सूरज की पहली किरणों के साथ
अब नहीं जागता गांव।
नहीं सुनाई देती बैलगाड़ी की
चरमर-चरमर चूं
ट्रैक्टर, बाईक के शोर से गूंज उठता है गांव।
चौपाल सूना है
नहीं होती अब दुनिया जहान की बातें
सुख-दुख की बातें
मंगलू की अनाथ बिटिया के बारे में
सब मौन हैं
होती है राजनीति की बातें
स्वार्थ की बिसात पर
सत्ता के शतरंज की शह और मातें
यही सब बातें
जाति-धर्म के नाम पर बंट रहा है गांव
गांव की गोरियां नहीं खिलखिलाती पनघट पर
नहीं थापती उपलें दीवारों पर
सिने तारिका से नकल कर
बनना चाहती हैं कोमलिका या रमोला सिकन्द
टी.वी. के सीरियलों में बुनती हैं झूठे स्वप्न
कोई यशोदा अब माखन नहीं बिलोती
कौन सुनता है अब बांसुरी ?
कन्हैया की बांसुरी से अनजान है गांव।

सलवटें

सलवटें जब चादरों पर उभर आती हैं
तो लगता है
रात भर किसी ने
बैचेनी में करवटें बदली हैं
सलवटें जब किसी के कपड़ों में झलक जाती हैं
तो लगता है
बेचारा दीन-हीन गरीब
जिसकी हालत नहीं बदली है
सलवटें जब किसी माथे पर
सिमट आती हैं
तो लगता है
यही उसके जीवन की कहानी है
जो उसकी जवानी को बुढ़ापे में बदली है।

श्रीमती शैल चन्द्रा
प्राचार्य
रावणभाटा, नगरी
जिला-धमतरी छ.ग.
फोन-09424215994