बस्तर क्षेत्र की साहित्यिक क्षति
छत्तीसगढ़ी गीत एवं कविता के विख्यात रचनाकार श्री हुकुमदास अचिंत्य का आकस्मिक निधन क्षेत्र को गहरे अवसाद से भर दिया। वे अनेक पत्र-पत्रिकाओं, अखबारों और स्थानीय गोष्ठियों में अपनी उपस्थिति लगातार बनाये रखते थे। उनसे मिलने वाले यह सोच कर आश्चर्य में पड़ जाते कि उनके भीतर इतनी अधिक निरन्तर ऊर्जा कैसे प्रवाहित होती है ? उनका सदा ही साहित्य से जुड़ा रहना ही उन्हें ऊर्जावान बनाए रखता था। उनकी सक्रियता का नमूना होती थीं उनकी कविताएं जिनमे वर्तमान की तमाम घटनाओं की तस्वीर दिखाई पड़ती थीं। उनकी रचनाओं से पता चलता था कि वे अपने राजनैतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश के प्रति कितने संवेदनशील हैं।
उनकी रचनाएं हिन्दी, छत्तीसगढ़ी और हल्बी में समान रूप से होती थीं जो बताती थीं कि उनकी पकड़ इन सभी भाषा -बोलियों में थी। उनका कविता प्रस्तुति का ढंग विशिष्ट था जो सुनने वालों को आकर्षित करता था और साथ ही आनन्दित भी करता था। अपने सरल स्वाभाव के कारण सर्वप्रिय तो थे ही और लोगों की सहायता करने में भी हमेशा तैयार रहते थे।
उनकी रचनावली के कई संग्रह प्रकाशित हुए हैं जिनमें उनकी साहित्यिक सिद्धहस्तता स्थापित होती है। ‘‘डहर चलती है’’ छत्तीसगढ़ी गीत संग्रह और ‘‘रत्नावली’’ हिन्दी काव्य संग्रह था। बस्तर पाति परिवार उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजली देता है और भविष्य में उनके रचनासंसार को साहित्य जगत में उजागर करने का निश्चय करता है। उनका जन्म 9 जून 1934 को हुआ था एवं 9 अप्रेल 15 को देहावसान हुआ।
कुण्डलिया संचयन प्रकाशन की सूचना
शीघ्र प्रकाश्य कुण्डलिया संकलन ‘कुण्डलिया संचयन’ आधुनिक छंद मुक्त कविता के दौर में प्राचीन भारतीय छंदों का चलन जैसे बीते युग की बात हो चली थी, ऐस में प्राचीन भारतीय छंदों को पुनर्जीवन प्रदान कर उन्हें पुनर्स्थापित करने में कई साहित्यकार बड़ी महत्तवपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। त्रिलोक सिंह ठकुरेला (जन्मः 1 अक्टूबर 1966 नगला मिश्रिया, हाथरस) सुपरिचित कुण्डलियाकार हैं। इन्होंने कुण्डलिया छंद को पुनर्स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई है। राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत त्रिलोक जी ने कुण्डलिया छंद को नये आयाम देने का सराहनीय प्रयास किया है। कुण्डलिया छंद के उन्नयन के लिए इन्होंने रचनाकारों को प्रेरित कर ‘कुण्डलिया छंद के सात हस्ताक्षर’ और ‘कुण्डलिया-कानन’ का सम्पादन किया। ‘कुण्डलिया छंद के सात हस्ताक्षर’, ‘कुण्डलिया-कानन’ क बाद त्रिलोक जी द्वारा सम्पादित तीसरा कुण्डलिया संकलन ‘कुण्डलिया संचयन’ निकट भविष्य में साहित्य जगत के समक्ष होगा। कुण्डलिया संकलन ‘कुण्डलिया संचयन’ में सर्वश्री अशोक कुमार रक्ताले, डॉ.जगन्नाथ प्रसाद बघेल, डॉ.ज्योत्सना शर्मा, परमजीत कौर ‘रीत’ डॉ. प्रदीप शुक्ल, महेन्द्र कुमार वर्मा, राजेन्द्र बहादुर सिंह ‘राजन’, राजेश प्रभाकर, शिवानंद सिंह ‘सहयोगी’, शून्य आकांक्षी, साधना ठकुरेला, हातिम जावेद, हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ और त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कुण्डलियां संकलित हैं।
अखिल भारतीय बाल-साहित्य पुरस्कारों हेतु प्रविष्टियां आमंत्रित
अ.भा. स्तर पर राष्ट्रकवि पं. सोहनलाल द्विवेदी बाल साहित्य पुरस्कार 2015 के लिए बाल साहित्य की किसी भी विधा की हिन्दी भाषा की पुस्तकें विचारार्थ भेजी जा सकेंगी। पुरस्कार राशि इक्कीस हजार रूपये मात्र है। यह पुरस्कार अब तक डॉ. रोहिताश्व अस्थाना, डॉ. अजय जनमेजय, डॉ. आनंद प्रकाश त्रिपाठी, श्री गोविन्द शर्मा, श्री पुष्कर द्विवेदी, श्री संजीव जयसवाल, श्री घमण्डीलाल अग्रवाल एवं डॉ. कृष्ण कुमार आशु को प्रदान किया जा चुका है।
अ.भा. स्तर पर ही युवा बाल साहित्यकार सम्मान एवं वरिष्ठ बाल साहित्यकार सम्मान 2015 के लिए भी लेखकों से उपलब्धियों का विवरण आमंत्रित है। इन दोनों सम्मान की राशि पांच हजार रूपये (प्रत्येक) है।
यह जानकारी देते हुए पुरस्कारों के संस्थापक राजकुमार जैन ‘राजन’ ने बताया कि ‘चंद्रसिंह बिरकाली राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार 2015 हेतु लेखकों से राजस्थानी बाल साहित्य की कृतियां आमंत्रित हैं। इसकी पुरस्कार राशि पांच हजार रूपये मात्र है।
प्रविष्टि भेजने के लिए किसी प्रकार का शुल्क नहीं है। सम्मानित रचनाकारों को सम्मान राशि, प्रतिक चिन्ह, श्रीफल, प्रशस्ति पत्र भेटकर, शाल ओढ़ाकर एक भव्य समारोह में सम्मानित किया जाएगा।
20 नवम्बर 2015 के बाद प्राप्त हाने वाली किसी भी प्रविष्टि पर विचार नहीं किया जाएगा।
पता है- राजकुमार जैन ‘राजन’, चित्रा प्रकाशन, आकोला-312205, चित्तौड़गढ़ राजस्थान
इस पते से अन्य जानकारियां जवाबी लिफाफा भेजकर मंगाई जा सकती हैं।