समीक्षा-परिचय : नसीम आलम ‘नारवी’-प्रभाकर चौबे

ये तेवर ग़ज़ल के देख ज़रा…

अगर साहित्यकार एक्टिविस्ट भी है तो समाज में उसके साहित्य पर कम उसकी सामाजिक सक्रियता पर ज्यादा चर्चा होती है। समाज का ध्यान उसके एक्टिविज्म की ओर रहता है और साहित्य या कहें उसका लेखन दबा-सा रहता है। हमारे मित्र ट्रेडयूनियन लीडर, शायर नसीम आलम नारवी के साथ यही हुआ। हुआ क्या खुद लेखक (नारवी जी) ने लेखन के स्थान पर सामाजिक सरोकार को वरीयता दी। उन्हें लगा कि दो कविता कम लिखूं तो चलेगा, मैं नहीं कोई और लिख लेगा लेकिन इस समय मजदूरों के साथ होना ज्यादा जरूरी है। और नारवी जी शायद कई मर्तबा ग़ज़ल लिखना स्थगित कर मजदूर आंदोलन का नेतृत्व करने चल पड़े हों, मजदूरों की लड़ाई स्थगित नहीं की जा सकती। इस तरह विचारों के प्रति प्रतिबद्ध और समर्पित व्यक्ति लेखन को ही स्थगित नहीं करता, उसके प्रकाशन को भी स्थगित करते चलता है।


उसके साहित्य से, कविताओं, ग़ज़लों से वह वर्ग तो परिचत होता है जिनके साथ संघर्ष करता है लेकिन प्रकाश में न आने के कारण जिसे साहित्य समाज या विद्वत समाज कहते हैं, जो आपेनियन मेकर होते हैं और समीक्षकों को प्रभावित करते हैं, राय बनाने को प्रभावित करते हैं, राय बनाने में सिद्धहस्त होते हैं, वह विशिष्ट समाज ऐसे साहित्यकारों के लेखन से अपरिचित-सा होता है और ऐसे एक्टिविस्ट साहित्यकार के लेखन को साहित्य के पन्नों पर स्थान देने में बेहद संकोची होता है। यहां तक कि उसे साहित्यकार के रूप में मान्यता देने की तो बात अलग साहित्य में उसकी चर्चा करने से परहेज किया जाता है। ऐसे समीक्षकों को लगता है कि इनकी चर्चा करने से पवित्र साहित्य बिटल जाएगा।
अपनी धुन के पक्के, विचारों के प्रतिबद्ध नसीम आलम नारवी ने लेखन को गम्भीरता से लिया उतनी ही गम्भीरता से जितनी गम्भीरता से मजदूर आंदोलन को लिया। वे लिखते रहे। छत्तीसगढ़ अंचल में ट्रेड यूनियन मूवहमेंट में नसीम आलम नारवी प्रेरणादायी नाम है और लेखक बिरादरी तथा मजदूर वर्ग, मजदूर नेताओं के बीच उनके लेखन को पूरा सम्मान प्राप्त है।
नसीम आलम नारवी की ग़ज़लों में नारेबाजी नहीं है। मजदूर आंदोलन से जुड़े रहे इसलिए नारे ही लेखन बनें, ऐसा नहीं सोचना चाहिए। समाज की समीक्षा है, ग़ज़लों में प्यार है, रिश्तों की गर्माहट पर भाव-अभव्यक्ति है, दोस्ती की ख़्वाहिश और अकेलेपन का दर्द भी है। सामूहिकता की ताकत का विश्वास है तो संघर्ष के प्रति सम्मान भाव है-
‘रहेगा क्या कोई मैआर अपनी इज़्ज़त का भरेंगे पेट जो मांगे की रोटियां लेकर।।’
संघर्ष और संघर्ष के रास्ते पर चलना है-
‘नसीम’ निचले न बैठो/ क़दम बढ़ाये चलो
तुम्हें तो आना है इक / सुब्हे कामरां लेकर
प्रगतिशील लेखक संघ की गोष्ठियों, रचनाशिविरों में इसे लेकर चर्चा चलती कि नसीम भाई का संग्रह आना चाहिए। विचारों के प्रति प्रतिबद्ध लेखक संगठनों में, विशेषकर प्रलेस में लेखक बिरादरी के प्रति सामूहिक चेतना का उदय और विकास लेखक गोष्ठियों और शिविरों में एक प्रक्रिया के तहत होने लगता है। छत्तीसगढ़ प्रगतिशील लेखक संघ ने चेतना के तहत जनकवि स्व.भगवती सेन (धमतरी) का संग्रह प्रकाशित किया। भिलाई इकाई ने साथियों का कहानी संग्रह ‘फौलाद ढालते हाथों के दिन’ तथा काव्य संग्रह ‘हाथों के दिन’ का प्रकाशन किया। राजनांदगांव इकाई ने जनकवि चंदूलाल चोटिया की कविताएं प्रकाशित की। बिलासपुर में 2012 में प्रलेस का राज्य सम्मेलन हुआ। सम्मेलन में नसीम आलम नारवी की सबने याद की। उनके संग्रह की बात भी उठी और तय किया गया कि उनका संग्रह छत्तीसगढ़ प्रलेस प्रकाशित करे। इसी निर्णय का परिणाम यह संग्रह है। एक और बात, नसीम आलम नारवी भाषा के सवाल पर दृढ़ता से मत रखते रहे हैं और इस प्रश्न पर हरिशंकर परसाई के साथ उनका पत्र-व्यवहार हुआ जो चर्चित रहा, भाषा के सवाल पर वे परसाई से भिड़ गये।
नसीम आलम नारवी को संग्रह प्रकाशन पर बधाई।


प्रभाकर चौबे
भिलाई
छ.ग.
फोन-09425513356