बस्तर पाति कहानी प्रतियोगिता-1, तृतीय पुरस्कार-मनजीत मीरा

प्रेम के रंग
उन दिनों मैं अपने प्रथम लघुकथा संग्रह की तैयारियों में जोर-शोर से जुटी हुई थी। घर के कार्य और कार्यालय जाने के साथ-साथ एक निश्चित समयावधि में मुझे लघु कथाएं लिखकर अकादमी में संग्रह के रूप में प्रकाशन हेतु जमा करानी थीं। दिन भर लघुकथा के आइडियाज़ सोचती, उन्हें लिखती और सुधारती। यूं तो मुझे टेलीविजन पर धारावाहिक देखने का बहुत शौक है पर उन दिनों मैंने अपने इस शौक को भी तिलांजली दे दी। फिर भी एक धारावाहिक ‘‘देवों के देव महादेव’’ मैं नियमित देखती थी। लघुकथा लिखने की प्रक्रिया के दौरान भी यदि इस धारावाहिक का वक्त होता तो मैं अपना लेखन अधूरा छोड़ देती। उस दिन एक विषय ‘प्रेम के रंग’ मुझे लेखन हेतु प्रेरित कर रहा था पर कुछ अति आवश्यक खरीददारी करनी थी तो पति उसी समय बाजार चलने की जिद करने लगे। मेरी लघुकथा अभी अधूरी थी और मुझे यह भी अनुमान था कि यदि अभी बाजार गई तो हो सकता है मेरा प्रिय धारावाहिक निकल जाए और हुआ भी यही। हां, एक फायदा जरूर हुआ कि अपनी लघुकथा ‘प्रेम के रंग’ के लिए कुछ अतिरिक्त सामग्री जरूर मिल गई। अधूरी लघुकथा का ताना-बाना मन में बुनते हुए मैंने खाना बनाया और यह सोचकर सो गई कि अब यह लघुकथा कल ही पूरी करूंगी।
तब ऐसा बिल्कुल नहीं लगा था कि यह स्वप्न है।
कैलाश पर्वत पर शिव ध्यान-मुद्रा में मग्न अधलेटे से बैठे थे और पार्वती उनके पैर दबा रही थीं।
‘‘क्या सोच रहे हैं, स्वामी?’’ पार्वती ने शिव से पूछा।
‘‘सोच रहा हूं कि युगों-युगों से, जन्म-जन्मांतरों से तुम मुझे प्रेम करती हो। पृथ्वी लोक पर पति का प्रेम पाने के लिए पत्नियां तुम्हारी पूजा-अर्चना करती हैं। फिर भी पृथ्वी लोक पर पति-पत्नी के बीच प्रेम का इतना ह्रास क्यों होता जा रहा है? क्यों तुम्हारे भक्तों को अपनी पूजा का प्रतिफल नहीं मिल रहा?’’
महादेव की इस बात से पार्वती चिढ़ गईं- ‘‘आप यहां कैलाश पर बैठे-बैठे मेरे भक्तों की आलोचना मत करो। आपको कैसे पता कि पृथ्वी लोक पर पति-पत्नी के बीच प्रेम का ह्रास हो रहा है? जबकि मैं तो यह मानती हूं कि पृथ्वी लोक पहले से ज्यादा प्रेममय हो गया है। देवलोक में दूतों से जो सूचनाएं मुझे प्राप्त हो रही हैं, उसके अनुसार तो पृथ्वी लोक पर प्रेम में वृद्धि ही हुई है और साथ ही उसका प्रदर्शन भी। प्रेम के लिए जब कोई अपनी जान की आहुति दे दे तो यह प्रेम का सर्वात्कृष्ट रूप है। पृथ्वी लोक पर अब प्रेम में ज्यादा आत्महत्याएं हो रही हैं।’’
‘‘आत्महत्या नहीं, इन्हें हत्या कहो देवी। जब एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को प्रेम में इतनी यातनाएं दे दे कि वह अपना जीवन ही समाप्त कर ले तो यह हत्या समान ही है। स्पष्ट शब्दों में कहें तो प्रेम की हत्या है। मैं यह नहीं कहता कि पृथ्वी लोक पर प्रेम बिल्कुल समाप्त हो गया है परन्तु उतना भी नहीं है जितना कि तुम सोचती हो। जो दिखाई दे रहा है, वह तो प्रदर्शन मात्र है।’’
‘‘तो क्या सती के रूप में जब मैंने दाह किया था तब आप मुझसे प्रेम नहीं करते थे? वह आत्महत्या थी या..?’’ पार्वती कुछ रूष्ट हो गईं।
‘‘वह तो स्त्री-हठ था, देवी। मेरे प्रेम और विश्वास को आजमाने ही तो गई थीं तुम अपने पिता के घर।’’
पार्वती से कुछ कहते ना बना। कुछ देर तक वे सोचती रहीं फिर जिद कर बैठीं- ‘‘स्वामी, मैंने आज तक आपकी हर बात पर विश्वास किया है परन्तु इस बात पर मुझे संदेह है। मैं स्वयं इसे अपनी आंखों से देखना चाहूंगी…।’’
शिव मुस्कुराए- ‘‘चलो, अपनी आंखों से ही देख लो। याद करो एक बार पहले भी तुमने मेरी बात पर अविश्वास किया था और मां सीता का वेष धारण कर राम की परीक्षा लेने पहुंच गई थीं। तब भी तुम्हारी ही पराजय हुई थी।’’
सोते में शायद मैंने करवट बदली होगी कि स्वप्न में दृश्य बदल गया। बाजार में कार में बैठी मैं अपने पति का इंतजार कर रही थी कि अचानक मुझे शिव-पार्वती दिखाई दे गए। बाजार की चहल-पहल में जब भीड़ ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई तो मैं समझ गई कि उन्हें सिर्फ मैं ही देख पा रही हूं। चारों तरफ प्रेम प्रदर्शन की कई झांकियां थीं। स्त्री-पुरूष, लड़के-लड़कियां बाहों में बाहें डाले अपने प्रेम का खुलकर इजहार कर रहे थे।
‘‘फंस गए, महादेव…।’’ मैं मन ही मन मुस्कुराई- ‘‘इस बार आप नहीं जीतने वाले।’’ तभी पार्वती ने एक जोड़े की तरफ इशारा किया- ‘‘वो देखो, स्वामी…। वो लड़का उस लड़की से कितनी प्रेम भरी बातें कर रहा है। उन दोनों की आंखों में प्रेम का अथाह सागर हिलोरें मार रहा है। आपने लड़की को देखा महादेव? कितने प्यार से अपने हाथों से उसे आइसक्रीम खिला रही है। वैसे ही जैसे मैं अपने हाथों से आपको भोजन कराती हूं…।’’ पार्वती चहक उठीं।
शिव रहस्यमयता से मुस्कुराए और उन्होंने दूसरी तरफ इशारा किया- ‘‘इनके बारे में तुम्हारा क्या कहना है, देवी?’’
‘‘महादेव, यह तो नव-विवाहित दम्पत्ति हैं। दोनों कितने सुन्दर प्रतीत हो रहे हैं। देखो, अब उस युवक ने अपनी पत्नी के कंधे पर हाथ रख दिया है। दोनों प्रेम में इतने मग्न हैं कि उन्हें उस ठेले वाले की आवाज भी सुनाई नहीं दे रही। और…रूको स्वामी, देख तो लो वह नवविवाहिता अपने मेंहदी लगे हाथों से कितने प्रेम से अपने पति के मुंह में पहला कौर डाल रही है।’’ पार्वती ने विजयी मुद्रा में कहा।
‘‘अभी तो प्रेम के बहुत से रंग देखने हैं, देवी।’’
टहलते-टहलते शिव-पार्वती मेरी कार के समीप आ गए तो मैंने उन्हें मन ही मन प्रणाम किया।
‘‘इसे देखो…।’’ शिव बोले।
पार्वती असमंजस में पड़ गइंर्- ‘‘यह तो अकेली है। इसका प्रेमी कहां है?’’
‘‘प्रेमी नहीं, पति कहो देवी। वह इसके लिए जन्मदिन का उपहार लेने गया है और इसे नहीं पता। यह तो अपने लेखन कार्य में इतनी डूबी रही कि अपना जन्मदिन तक भूल गई। अपने पति पर नाराज यह बैठी तो यहां है पर इसका मन-मस्तिष्क मुझमें ही अटका हुआ है।’’
‘‘आप में स्वामी? वह कैसे? क्या ये आपकी परम भक्त है?’’ पार्वती ने जिज्ञासावश पूछा।
‘‘ऐसा ही समझ लो, देवी। अभी भी इसका सारा ध्यान टी.वी पर ही लगा हुआ है कि महादेव निकल जाएंगे।’’
‘‘और आपने तो इसे साक्षात दर्शन दे दिए। धन्य हैं प्रभु आप।’’ पार्वती हंसी।
‘‘इनके प्रेम के बारे में तुमने कोई टिप्पणी नहीं की।’’ शिव ने पार्वती की ओर देखकर पूछा तो पार्वती कुछ नहीं बोलीं क्योंकि उनके मन में तो अभी भी प्रेम के पहले दो दृश्य ही चल रहे थे।
‘‘इतना काफी है, प्रभु। अब लौट चलते हैं।’’ पार्वती के चेहरे पर एक विजयी मुस्कान उभरी।
अचानक शिव ठिठक गए- ‘‘वो देखो, देवी।’’ उन्होंने फुटपाथ की ओर इशारा किया।
पार्वती ने देखा कि फुटपाथ पर एक औरत भुट्टे भून रही थी। उसका पति जल्दी-जल्दी भुट्टों के छिलके उतार-उतार कर डलिया में रखता जा रहा था। औरत एक हाथ से कोयलों को पंखा झलती जल्दी-जल्दी भुट्टे सेंक रही थी ताकि सामने खड़े ग्राहकों को निपटा सके। कोयलों की आंच से छलक आए पसीने को वह बीच-बीच में अपनी सूती साड़ी के पल्लू से पोंछती भी जा रही थी। उसे ऐसा करते देख पति पानी का गिलास भरकर ले आया। भुट्टे वाली ने तृप्त होकर पानी पीया और एक मीठी नजर अपने पति पर डाली।
‘‘क्या यह भी प्रेम है? यह दृश्य आपने मुझे क्यों दिखाया? ये दोनों तो अपनी रोजी-रोटी कमाने में इतने व्यस्त हैं कि प्रेम के लिए इनके पास शब्द और समय ही नहीं हैं।’’ असमंजस में भर पार्वती बोलीं।
शिव ठहाका लगाकर हंस पड़े- ‘‘प्रेम एक बहुत ही गूढ़ भावना है। यह प्रदर्शन की वस्तु नहीं।’’
‘‘लेकिन प्रभु, मन और आत्मा में प्रेम हो और उसे बताया ना जाए, उसका प्रदर्शन ना किया जाए तो एक-दूसरे को पता कैसे चलेगा कि वे आपस में कितना प्रेम करते हैं।’’
‘‘अच्छा ये बताओ, अभी हमने जो चारों दृश्य देखे, उनमें सर्वाधिक प्रेम किस जोड़े के बीच था?’’ शिव ने उल्टा प्रति प्रश्न कर दिया।
‘‘मुझे तो उस लड़के और लड़की के बीच सर्वाधिक प्रेम नजर आया। उनका प्रेम तो वहां आसपास खड़े लोग भी महसूस कर रहे थे।’’ पार्वती ने समर्थन हेतु शिव की ओर ताका।
‘‘गलत हो तुम।’’ शिव बोले- ‘‘दरअसल इन चारों जोड़ों में पहले दो जोड़ों में तो प्रेम था ही नहीं। वह लड़का अपनी मंगेतर से झूठ बोलकर आया था और लड़की सुबह अपने किसी दूसरे ब्वाय-फ्रैन्ड के साथ थी। दूसरे जोड़े में उस नव विवाहिता ने सिर्फ पैसे के लिए अपने बॉस से शादी की है और युवक ने भी अपनी पहली पत्नी को तलाक दिए बिना धोखे में रखकर उससे दूसरे शादी कर ली। तीसरे जोड़े में प्रेम से ज्यादा कर्त्तव्य की भावना है क्योंकि पिछले जन्मदिन पर जब पति उपहार लाना भूल गया था तो पत्नी कई दिन तक उससे नाराज रही थी। इन चारों जोड़ों में यदि सच्चा प्रेम है तो उन पति-पत्नी के बीच है जो भुट्टे बेच रहे थे।’’
‘‘आप तो पृथ्वी लोक की भाषा बोलने लगे, प्रभु। मान लिया आपके पास दिव्य-दृष्टि है लेकिन आपको यह साबित करना होगा कि सर्वाधिक प्रेम चौथे जोड़े में ही है।’’
‘‘पृथ्वी लोक पर आकर तो तुम भी मेरी बातों पर संदेह करने लगीं, देवी। तुम मुझसे प्रेम करती हो ना, तो प्रेम की पहली शर्त ही विश्वास है। मैंने अपनी दिव्य दृष्टि से ही यह जाना है कि पहली दोनों जोड़ियां प्रेम नहीं बल्कि प्रेम का स्वांग कर रही थीं। उनके प्रेम-प्रदर्शन ने तो तुम्हें भी भ्रमित कर दिया। जहां तक चौथे जोड़े के प्रेम की गहराई की बात है तो इसके विस्तृत विवरण में पड़कर तुम इसे पुराण मत बनाओ, लघुकथा ही रहने दो।’’
देवों के देव महादेव ने मुस्कराकर एक स्नेह भरी दृष्टि मुझ पर डाली और पार्वती को लेकर अन्तर्ध्यान हो गए।

मनजीत शर्मा ‘मीरा’
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