अंक-2-कविता कैसे बदले तेरा रूप

कविता का रूप कैसे बदलता है देखें जरा। नये रचनाकार ने लिखा था, नवीन प्रयास था इसलिए कसौटी पर खरा नहीं उतरा। उसी कविता को कैसे कसौटी पर खरा उतारें-

हम ठूंठ हैं
निशान हैं /कभी हमारे बड़े होने का
हम ठूंठ हैं
यत्र-तत्र-सर्वत्र
बिखरे पड़े हैं
बड़े-छोटे-मंझोले
कोई न बचा अंधी भूख से
जो पेट नहीं
बल्कि पेटी को सताती है
हम ठूंठ हैं
झेल रहे हैं
अपने दोबारा
न उग पाने का अभिशाप
हम ठूंठ हैं।

यही कविता कुछ अन्य पंक्तियां जोड़ने
पर देखें कैसे रूप बदलकर रोमांचित
करती है-

हम ठूंठ हैं
निशान हैं /कभी हमारे बड़े होने का
निशान हैं/ तुम्हारे क्रूर होने का
हम ठूंठ हैं
यत्र-तत्र-सर्वत्र
बिखरे पड़े हैं
बड़े छोटे मंझोले
कोई न बचा अंधी भूख से
जो पेट नहीं
बल्कि पेटी को सताती हैं
हम ठूंठ हैं
झेल रहे हैं
अपने दोबारा
न उग पाने का अभिशाप
हम ठूंठ हैं
हम प्रतीक हैं
तुम्हारे बुद्धिजीवी होने का
प्रतीक हैं
तुम्हारे सर्वगुणसम्पन्न होने का!