देशाटन
लगभग चालीस दिनों से ‘पैसेंजर ट्रेन’ से देश घूमने निकले प्रभात कुमार आज असमंजस में पड़ गये कि यहाँ सियालदा से आगे घूमने जायें या यहीं रूककर बस जायें। क्योंकि प्रश्न ऐसा ही था- आप भी लिख देना धंसी आंखे, पिचके पेट, हड्डियों का पुतला आदि। इस प्रगतिशील देश में तस्वीरों सहित छाप देना। आपको तो भरपूर रायल्टी मिलेगी, पर इनकी कौन सुध लेगा। पूछने से मालूम पड़ा, यहाँ भात नहीं हो रहा, पाँच सालों से अकाल है, कुछ पैदा भी हो जाये तो माओवादी जला देते हैंं। सरकार से गुहार करो तो गोलियों से मार रही है, तो क्या वे जिन्दा हैं? यहां मौत भी नहीं मांग सकते, कुछ किया तो जेल में डाल जमानत पर रिहा कर देते हैं, मानो खाना भारी हो।
यह सब देख देश की तस्वीर का वह काला सच देख, उसे अपने जीवन के तीस साल का सुहाना सफर भी बेकार लगा। और उसने वहीं रहने का प्रण किया और घर मैसेज भेज दिया-
‘‘प्रिये, आपके साथ गुजारे जीवन की सुखद यादों के साथ आज आपसे क्षमा के साथ कुछ साल अपने देशवासियों की मदद करने हेतु यहां सियालदा में बस रहा हूँ। यहाँ से कब वापसी होगी आज नहीं बता सकता। हाँ, आप यहाँ न आयें, क्यांकि आप हमसे भी ज्यादा भावुक हैं, देख नहीं पाओगी। इस तरह आज चार साल में प्रभात कुमार सियालदा के बाहर गाँवों की तस्वीर बदल जिला परिषद् का अध्यक्ष बन गया। क्या था क्या बन गया।
नरेन्द्र कुमार
सी-004 उत्कर्ष अनुराधा
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