कहानी-उषा अग्रवाल

वासू

आज वासु कहीं नज़र नहीं आ रहा न ही उसकी आवाज़ सुनाई दी, निशा व्याकुल सी दरवाजे़ पर खड़े होकर नज़रे दौड़ा रही थी. उसका मन नहीं लग रहा था वासु के बिना. उसके अकेलेपन का उसके एकांत का साथी बन गया वासु. तभी विनय ने आवाज़ लगाई, निशा क्या कर रही हो बाहर मैं यहॉं अकेला बैठा हूं. ‘हां आती हूं’ कहकर निशा विनय के पास आकर बैठ गई. विनय रिमोट कंट्र्र्रोल से लगातार टी.वी. के चेनल बदलता जा रहा था, पर कोई भी कार्यक्रम उसे शायद पसंद नहीं आ रहा था. रोज़ तो विनय खाना खाकर ग्यारह बजे दुकान चला जाता फिर रात नौ, दस बजे तक ही लौटता पर आज हड़ताल होने के कारण मार्केट बंद था और विनय घर में बोर हो रहा था.
विनय और निशा बड़े से घर में अकेले रहते, माता-पिता दूसरे भाई के पास शहर में थे और यहॉं भी बीच-बीच में आते रहते .शादी को आठ-नौ साल बीत जाने पर भी दोनों संतान सुख से वंचित थे. विनय का दुकान और दोस्तों में समय बीत जाता पर निशा का मन नहीं लगता था. छोटे-छोटे बच्चों को देख उसका हृदय वात्सल्य से भर उठता और मॉं बनने की लालसा प्रबल हो उठती. विनय से जब उसने बच्चा गोद लेने की बात कही तो उसने यह कहकर टाल दिया कि अभी कुछ समय और इंतज़ार करते हैं फिर सोचेंगे. डॉक्टर के हिसाब से तो सब कुछ ठीक था बस नसीब की बात थी और यहीं पर शायद इंसान का बस नहीं चलता. घर में जब कोई आ जाता तो निशा का खालीपन भर जाता था. छुट्टियों में उसकी ननद और जेठानी के बच्चे आते तो पूरा घर चहक उठता, उनकी शैतानियों से उनकी शरारतों से. निशा की सुबह कब होती, शाम कब होती पता ही न चलता. पर जब सब चले जाते तो फिर वही सूनापन, वही तन्हाई उसे घेर लेती.
खाली बैठे-बैठक निशा ने अपने सपनों के साथ ही न जाने कितने छोटे-छोटे स्वेटर्स, टोपी और मोजे बुन डाले थे. उसे सिलाई, कढ़ाई और बुनाई का बचपन से ही बहुत शौक था. आज वही शौक उसका टाईम पास तो कर रहा था लेकिन भरती आलमारियॉं देखकर उसकी ऑंखों में मोटे-मोटे ऑसू छलक आते, इन्हें पहनने वाला कब आएगा यह सोचकर.
कुछ महीने पहले वासु अपने परिवार के साथ पड़ोस में रहने आया था. मिलनसार, बातूनी निशा की वासु के साथ जल्दी ही दोस्ती हो गई. जैसे ही उसका काम खत्म होता वो वासु को आवाज़ देती और वो भी जैसे निशा की आवाज़ का इंतज़ार कर रहा होता, तुरंत चला आता. फिर तो निशा का समय पंख लगाकर उड़ जाता, वो उसके साथ खूब हॅंसती, खूब बोलती. उसे विनय से ज्यादा वासु की पसंद, नापसंद का ख्याल रहने लगा. वासु को ये पसंद है, वासु को वो पसंद नहीं है और जब भी बाजार जाती उसकी पसंद की सारी चीजें पहले ही घर पर लाकर रख लेती. टी0वी0 देखने के अलावा वो वासु के साथ विडियो गेम भी खेला करती. खेलते-खेलते जब वासु अपने में खो जाता तो निशा उसे अपलक निहारने लगती. काली कजरारी मोटी-मोटी ऑंखें मानो अभी बोल पड़ेंगी, गोरा रंग, गठीला और तन्दुरूस्त बदन, उस पर छोटे काले घुंघराले बाल. उसे वासु पर बेहद प्यार आने लगता और पता नहीं मन ही मन वो उसे कितना प्यार करने लगी थी. उसे अपलक निहारते देख वासु धीरे से मुस्कुरा उठता और फिर अपने खेल में मगन हो जाता.
विनय को निशा का वासु के साथ इतना ज़्यादा घुलना-मिलना पसंद नहीं आता था. अगर वासु सामने हो तो फिर निशा विनय की भी परवाह नहीं करती थी, वासु पर ही उसका पूरा ध्यान रहता. सास, ननद का भी फोन आता तो कुछ देर बात करने के बाद वो वासु की ही बात ले बैठती या कहती अभी वासु बैठा है मैं बाद में बात करूंगी. निशा के अति प्रेम के कारण वासु सभी की ईर्ष्या का केन्द्र बन गया था. पहले निशा मायके खुशी-खुशी बहुत दिन रहकर आती पर अब दो, चार दिन में उसे वासु की याद सताने लगती और वह जल्दी लौट आती. विनय यह देखकर हैरान रह जाता कि निशा कभी मेरे बोलने से जल्दी वापिस नहीं आई और अब वासु का प्रेम उसे कहीं टिकने नहीं देता , पर उसका प्रेम निश्च्छल और पवित्र था जिसका ओर-छोर नहीं था.
वासु के प्रेम में डूबे यॅूं ही दिन बीते जा रहे थे कि अचानक निशा को चक्कर आने लगे और उसकी तबियत खराब लगने लगी .पर उसे लगा यूंॅ ही कमज़ोरी होगी कुछ दिन में ठीक हो जाएगा. एक दिन उसे गुमसुम पड़ा देख विनय जबरन दवाखाना ले गया. वासु भी आकर थोड़ी देर बैठकर चुपचाप चला जाता, उसे समझ नहीं आता कि निशा पहले की तरह हॅंसती-बोलती क्यों नहीं. दवाखाने से लौटकर निशा गाड़ी से उतरकर जब घर के अंदर न जाकर वासु के घर की तरफ जाने लगी तो विनय भी उसके पीछे-पीछे चल दिया. वासु दरवाज़े पर खड़ा मानो उसका ही इंतज़ार कर रहा था. उसे देखते ही निशा ने उसे अपनी बॉंहों में भर लिया और उसके गालों पर, हाथों पर, माथे पर तड़ातड़ चुम्बन की बौछार करने लगी. उसे जोर से भींच लेने पर और इस अप्रत्याशित प्यार से वासु घबरा उठा और ज़ोर ज़ोर से रोने लगा. हॉं वासु ज़ोर ज़ोर से रोने लगा क्योंकि वो दो-ढाई वर्ष का नन्हा शिशु ही तो था.
उसके रोने की आवाज़ सुनकर वासु के मम्मी-पापा, दादा-दादी और पड़ोस के घर के सभी लोग एकत्र हो गए. विनय इस अनूठे प्यार को देख अभिभूत हो उठा, उसकी ऑंखें छलक पड़ी. वह निशा को वासु से अलग करते कह रहा था ‘‘निशा छोड़ो उसे, बच्चा है रो रहा है देखो.’’ पर निशा कहॉं मानने वाली थी. वह वासु को प्यार करते बस यही कहे जा रही थी, ‘वासु मेरे बच्चे तेरे प्यार ने मेरी ममता को जगा दिया और इस बंजर रेगिस्तान में भी वात्सल्य का ऐसा झरना फूट पड़ा कि मुझे भी उसका स्वाद मिल गया. यह सब तेरे ही कारण हुआ है, मेरे घर पर पड़ने वाले तेरे नन्हें कदमों का ही यह फल है. तुझे मुझसे और मुझे तुझसे इतना स्नेह होने के कारण ही मेरे मन में ममता का जो बीज पड़ा आज वही बीज प्रस्फुटित होकर एक नन्हें वासु के रूप में मेरे घर ऑंगन को महकाएगा. मैं बंजर धरती इस पौधे से हरी-भरी हो जाऊंगी, मैं भी मॉं बनने का गौरव प्राप्त करूंगी और उसका भी नाम वासु ही होगा चाहे वो बेटा हो या बेटी. मेरे घर में भी नन्हें वासु की किलकारियॉं गुंजेगी, वासु मेरे बच्चे.
और खड़े सभी लोग निशा के वासु के साथ प्रेम के इस अनूठे रूप को देख नतमस्तक हो उठे.


उषा अग्रवाल ‘पारस’
धरमपेठ, नागपुर
मो.-09028978535