काव्य-रीमा दीवान चड्ढा

उम्मीद

वो सूखे पत्ते वो सूखे फूल न देखो
ये नयी कोंपल की फूटती मुस्कान देखो।
पतझड़ का सन्नाटा धीरे से टूट रहा है
नये पौधों में बहती नयी बयार देखो।
माना हरा-भरा उपवन वीरान सा पड़ा है
बीज पड़ गये हैं आने वाली नयी बहार देखो।
दुःख भी झेला दर्द भी सह गये
अब के मिलने वाला है बेशुमार प्यार देखो।
कोशिशों से मिलेगी कामयाबी ज़रूर
खुशी-खुशी मेरी जीत का खुमार देखो।
बहुत दिया जमाने को हमेशा मैंने
अब की मेरी ये दौलत बेशुमार देखो।
दोस्तों की महफिलें जमने लगीं हैं फिर से
मेरे लिये आया है त्यौहार देखो।
भीड़ में कौन अपना है कौन पराया
शक्ल सूरत नहीं दिल के आर-पार देखो।
खामोशी टूटेगी एक दिन मुझको ये यकीं है
मेरे यकीं पर खुदा भी होगा मेहरबान देखो।

जीवन राग

सुबह सुहावनी खोल रही संभावनाओं के द्वार
करता चल कर्म अपने अवसर मिलेंगे अपार।
चिड़ियों की चहचहाहट में सुन लेना नया राग
जीवन का असल संगीत है, प्रकृति का पराग।
सूरज की लालिमा फैला रही ऊर्जा का संसार
भर ले मुठ्ठी में अपनी, अपने हिस्से का प्यार।
हरे-भरे पेड़ दे रहे हरियाली का संदेश
मत तोड़, मत काट, तेरा अपना यह देश।
कल-कल कर बहती पावन नदियां सारी
प्रदूषित मत कर गंगा-यमुना मां है हमारी।
चलो आज कर लें हम सब एक नयी पहल
बनायें दूसरों के लिए खुशियों का महल।

रीमा दीवान चड्ढा
301-सनशाइन-
के.टी. नगर, काटोल रोड,
नागपुर-440013
मो.-09372729002