अंक-२-पाठकों की चौपाल

आदरणीय संपादक महोदय, सादर नमस्कार,
‘बस्तर पाति’ का प्रथम अंक आद्योपान्त पढ़ने का अवसर मिला। बस्तर वनांचल में आपने जो पत्रिका प्रकाशन का कार्य प्रारंभ किया है, वह निश्चय ही एक सराहनीय कार्य है। अतः इस महत्वपूर्ण कार्य को करने के लिए हमारी ओर से शुभकामनायें स्वीकार करें। साथ ही पत्रिका के संबंध में मेरे विचार भी आप तक सादर सम्प्रेषित हैं। पत्रिका के प्रकाशन हेतु संपादकीय में जो आपने उद्देश्य बताया है, उस उद्देश्य को लेकर पत्रिका निरन्तर डटी रहेगी, यह अपेक्षा है। बड़े लेखकों को पत्रिकाएँ सहर्ष स्वीकार करती हैं, परंतु नये व उदीयमान लेखकों को मंच नहीं मिल पाता। आपने नए रचनाकारों को प्रोत्साहित व प्रशिक्षित करने की बात कही है, इसके लिए भी आप साधुवाद के पात्र हैं। जो रचनायें छपी हैं, काफी अच्छी हैं। बस पत्रिका में कहीं-कहीं प्रूफ की कमी अखरती है, तथापि यह कोई बड़ा विषय नहीं है। मुखपृष्ठ में श्री बंशीलाल विश्वकर्मा की कृति सहज ही अपना ध्यान आकर्षित करती है, बस्तर के परिप्रेक्ष्य में आवरण चित्र का चयन अत्यंत सटीक है। पत्रिका के अंदर चितेरा जी के द्वारा रेखाचित्र बनाये गये हैं, जो पत्रिका की सुंदरता बढ़ाते हैं।
भरत कुमार गंगादित्य, द्वारा,श्री धन्नू महाराणा का मकान, हिकमीपारा, जगदलपुर छ.ग. 494001 मो. 09479156705

प्रिय भाई, बस्तर पाति का अगस्त अंक मिला, धन्यवाद। आदिवासी जीवन, वहां की संस्कृति और लोकधर्मी कलाओं पर आधारित यह पत्रिका निःसंदेह पाठकों के ज्ञान और समझ में अप्रत्याशित मदद करती है। श्यामनारायण श्रीवास्तव की कविताएं, उषा अग्रवाल, वर्षा रावल की कहानियां प्रभावित करती हैं। यूं तो पत्रिका प्रकाशन दुरूह कार्य है, सामग्री चयन से लेकर उसकी टायपिंग, पेजिंग, सेटिंग के साथ-साथ और आर्थिक पक्ष मजबूत रखना, कुल मिलाकर बिना सहयोग के यह कार्य सम्भव नहीं हो पाता है। फिर भी आपका प्रयास अच्छा है। कागज और छपाई पर थोड़ा ध्यान केन्द्रित करना जरूरी है। आशा है स्वस्थ होंगे।
डॉ.शोभानाथ शुक्ल, सम्पादक कथा समवेत, 1274/28, बढैयावार, सिविल लाइन्स-2, सुल्तानपुर-228001

आदरणीय संपादकजी सादर अभिवादन, नवीन पत्रिका में अनेक विधा की रचनाएं पढ़कर प्रसन्नता हुई। पत्रिका में रचनाओं का चयन उत्तम ढ़ंग से हुआ है। संपादक मण्डल को अशेष शुभकामनायें।
पवन तनय अग्रहरि, पुराना चौक, शाहगंज-223101 जौनपुर, उ.प्र.

प्रिय सनत कुमार जी शुभाशीष, आपके लिए कला संबंधी सुझाव देना चाहूंगा। पत्रिका में चित्रों का मुद्रण त्रुटिपूर्ण है। आज की तकनीक में अनेक सम्भावनाएं हैं, एक बार चलन में तो लाकर देखिए। महान्तीजी को सुन्दर चित्रों के लिए बधाई। वर्णव्यवस्था और उचित अंकन उनकी तूलिका में समा गई है। तीव्रगति भी समविष्ट है। मैंने देवनागरी को समीप से जाना है। ध्वनि ही उसकी जन्मदायिनी है अतः शब्दों का अंकन त्रुटिपूर्ण न हो। उदाहरण-कुन्ती (कुंती) पर विचार करें। आनेवाला कल और त्रुटियां डाल देगा। श्र अक्षर तोड़ा नहीं जा सकता है-आज यह चलन है कि उसे तोड़कर श् के स्थान पर छापा जा रहा है जोकि दोषपूर्ण है। आपकी पत्रिका के कुछ दोष हैं ॅ, ण्, त्ति आदि। शुद्ध लिखिए और शुद्ध छापिए। देवनागरी का कूड़ा मत करिए। न के कई रूप हैं उन्हें शुद्ध लिखिए। इटालिक छापने का चलन चला गया है उसकी जगह बोल्ड आ गया है। शिवम् में बिन्दी (अनुस्वार ) नहीं लगता है। प्रत्येक पृष्ठ पर बस्तर पाति सादे फण्ट में छापें-लोगो की तरह नहीं। मूल्य व अन्य विवरण आवरण पृष्ठ पर नहीं छापते हैं। रचनाओं एवं लेखकां को सीमित न करें-अनुरोध है।
नवल जायसवाल, प्रेमन, बी 201 सर्वधर्म, कोलार रोड, भोपाल-462042, फोन-07552493840

आदरणीय नवलजी, नमस्कार एवं बहुत-बहुत धन्यवाद-आपने इतनी बारीकी से ‘बस्तर पाति’ का अध्ययन किया और अपने अनुभवों के आधार पर सुझाव प्रेषित किया, पत्र और फोन द्वारा! पत्रिका प्रकाशन के पूर्व लेखन कर्म तक सीमित व्यक्ति को आपके द्वारा सुझाये गये बिन्दु ध्यान में आते भी हैं या नहीं-मुझे तो नहीं आये थे। अब जब प्रकाशन कार्य से जुड़ चुका हूं अतः इन पर ध्यान जाने लगा है। भविष्य में ध्यान रखूंगा।

संपादक ‘‘बस्तर पाति’’

नमस्कार, आशा है आप सानंद होंगे। ‘बस्तर पाति’ का अंक-2 मिला। आभार। सुदूर आदिवासी क्षेत्र की लोक संस्कृति एवं आधुनिक साहित्य को समर्पित इस पत्रिका की गद्य-पद्य की सभी रचनाएं पत्रिका के उद्देश्यानुरूप, प्रासांगिक, पठनीय और स्तरीय हैं। आवरण आकर्षक। चयन उत्तम। मुद्रण अपेक्षानुरूप। संपादन प्रशंसनीय। एतदर्थ आपको बधाई। कृपया लोकभाषा की रचनाओं को भी स्थान दें व उन्हें प्राथमिकता के साथ प्रकाशित करें। आगामी अंक की प्रतीक्षा में।
अशोक ‘आनन’, मक्सी-465106 जिला-शाजापुर (म.प्र.) मो.-09977644232

जनाब सनत जैन, आदाब, आपने ‘बस्तर पाति’ अंक-2 जून-अगस्त भेजा, शुकरिया। रऊफ परवेज से भी मुलाकात करा दी। वे अच्छे शायर और बेहतर इंसान हैं।
नईम कैसर, 31-शिमला हिल्स, भोपाल (म.प्र.)

प्रिय सनतजी, ‘बस्तर पाति’ का प्रकाशन बस्तर के रचनाकारों के लिए गौरव का विषय है। मैं उन समग्र ख्यातिलब्ध रचनाकारों को बधाई देता हूं जिनके ज्ञान के मोती से यह पत्रिका बहुउपयोगी हो सकी है। बस्तर की प्रकृति, समाज और संस्कृति का अपना वृहत् और गौरवमयी इतिहास है। आशा है भविष्य में इस तरह की रचनाओं का समावेश होगा। ‘बस्तर पाति’ के माध्यम से कई प्रतिभाओं को निखारने का अवसर प्राप्त हो रहा है। रचनाकारों ने अपनी कविताओं के माध्यम से अपनी भावनाओं को निश्चल रूप में व्यक्त किया है, उन्हें मेरी शुभकामनाएं। ‘बस्तर पाति’ के संपादक एवं सहयोगियों ने संपूर्ण बस्तर ही नहीं अपितु देश भर के रचनाकारों को एक सूत्र में पिरोने का प्रण किया है, उन्हें मेरा शत्-शत् नमन। मैं ‘बस्तर पाति’ के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं।
शिवशंकर कुटारे, चित्रकोट रोड, जगदलपुर छ.ग. मो.-09406294695

आदरणीय संपादक महोदय, सादर नमन्, आपकी पत्रिका ‘बस्तर पाति’ का प्रथम अंक प्राप्त हुआ। पत्रिका का प्रथम अंक होने के बावजूद पत्रिका का अंक सराहनीय है। जहां हम लोग समस्त सुविधाओं के बावजूद पत्रिका चलाने के विभिन्न संकटों से गुजर रहे हैं ऐसे में आपका और आपकी टीम का इतने दुर्गम इलाके में रहते हुए पत्रिका का संपादन, प्रकाशन करना अच्छा लगा। आपकी इस पत्रिका द्वारा न केवल आंचलिक प्रतिभाओं को मौका मिलेगा बल्कि विचारों के आदान-प्रदान का यह पत्रिका मंच साबित होगी। पत्रिका परिवार को मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं।
शिशिर द्विवेदी, दुर्वादल पत्रिका, 257 रामबाग, गांधी नगर, बस्ती, उ.प्र. मो.-09451670475

सनत जी अभिवादन, ‘बस्तर पाति’ का अंक-2 मिला, मुखपृष्ठ देखकर मन अनायास ही आदिवासी अंचल में पहुंच गया, मानों चित्र सजीव हो गया। एक विचार मन में उठा-
भारत मेरा / मुस्कुराते फूलों का / है गुलदस्ता
जंगल की हरियाली आंखों में तैरने लगी, हाथ प्रार्थना के लिए उठ गये-
हे हरियाले / लहलहाते वन / प्राणवायु दो
सनत जी! आपको बहुत-बहुत बधाई। आपने सुन्दर आवरण के साथ सभी विधाओं का संपादन कर आकर्षक संयोजन किया है, आदिवासी अंचल पर लिखी कथा, कविता पढ़ मन द्रवित हो गया कि अब तो जंगल बचाने के लिए सचेत हो जाओ अन्यथा एक दिन ऐसा आयेगा जब-
तिनका लिए / चिड़िया थक गयी / डाली न मिली
जैसी स्थिति आ जाए। ‘पाठकों से रूबरू’ और ‘बहस’ पत्रिका को उत्कृष्टता प्रदान करते हैं।
कमलेश चौरसिया गिरिश-201 धरमपेठ, नागपुर (महाराष्ट्र) मो.-08796077001

मान्यवर संपादक महोदय, शुभ अभिनंदन, इंदौर प्रवास के दौरान ‘बस्तर पाति’ (त्रैमासिक) जून-अगस्त अंक बुक स्टाल से खरीदकर पढ़ा। आदिवासियों पर यह पत्रिका आश्वस्त करती है। विशेषकर मुक्तछंद कविताओं में कुछ सुधार की आवश्यकता है। बाकी गीत, ग़ज़ल, कहानी, लघुकथा, आलेख पूर्णरूप से आश्वस्त करते हैं।
रमेश मनोहरा, शीतला गली, जावरा (म.प्र)-457226 जिला रतलाम मो.-09479662215

संपादक महोदय बस्तर पाति का अंक मिला, धन्यवाद। पत्रिका प्रकाशन की हार्दिक शुभकामनायें। पत्रिका मे उत्तरोत्तर सुधार सराहनीय है। अंक-2 में शशांक श्रीधर की रचनाएं चिन्ता बस्तर में अमन की एवं बाबूजी का चश्मा दोनों ही प्रेरणादायी कविताएं लगीं। उनको साधुवाद।
मो. जिलानी चन्द्रपुर, महाराष्ट्र