काव्य-बद्रीश सुखदेवे

प्यारा न्यारा बस्तर हमारा

छत्तीसगढ़ में देवी-देवताओं का गढ़
बस और तर, तर और बस.
एक नजर पर हर शहर
कहते अपनी कहानी
अतीत से विकास की
राजा और रानी की
पूजा-पाठ के अवसर
धूप और तिखूर का
फूलों, फलों और मेलों का
गोंचा तुपकी, कोदो कुटकी
ज्वार जोंधरा, कुल्थी कोसरा
महुआ की छांव का भोले-भाले गांव का
पेज और भात, मनोरम जलप्रपात
हर मौसम बरसात, वाह क्या है बात
सरई के कोसा, इडली और दोसा
दलपत सागर की मछलियां
चापड़ा की चटनी, केकड़ा का भाजा
मुनगा और मुरगा मिलता है बार-बार
बस बस्तर आ जा एक बार
नार, टोला, गुड़ा, पारा, पाल और पुर
दोस्ती और प्यार से भरपुर हमारा जगदलपुर
ताड़ी, सल्फी, लांदा, छिन्द और मंद,
विचरण कर ले यहां स्वच्छंद.
मड़ई, मेला, नवाखाई, और मुर्गा लड़ाई है
दशहरा, जातरा, माटी तिहार और जगार
सब में बिखरे हैं आपस में प्यार
हल्बी गोंड़ी भतरी, दोरली, न्यारी व्यारी
यहां की हर बोली
उत्कल, बंग्ला, आंध्रा, छत्तीसगढ़ी, मराठी, गुजराती,
उत्तर से दक्षिण तक पूरब से पश्चिम तक
जैसे इंद्रावती का गोदावरी से गोदावरी का बंगाल की खाड़ी से
सम्पूर्ण भारतीयता का अनोखा संगम
दुनिया के नक्शे पर एक नन्हा और न्यारा सा
‘‘बस्तर हमारा प्यारा-प्यारा सा‘‘.

बद्रीश सुखदेवे
रायपुर