ग़ज़ल-नूर जगदलपुरी

दफ़तर नामा…..1

अपनी मेहनत का हमें पेमेन्ट मिलना चाहिए
और वो भी आज ही अर्जेन्ट मिलना चाहिए.
आज ही हम बिल तुम्हारा पास कर देंगे, मगर
शर्त ये है मगर कि हमें पर्सेन्ट मिलना चाहिए.
ठेकेदारी है यही, कि आठ बोरी रेत में
एक बोरी हद से हद सीमेन्ट मिलना चाहिए.
मर्ज़ उनके बस का हो ना हो, मगर ऐ दोस्तों
सर्जनों को तो यही पेशेन्ट मिलना चाहिए.
चाहे गिर जाए मकां की छत किरायेदार पर
‘नूर’ घर मालिक को लेकिन रेंट मिलना चाहिए.

दफ़तर नामा…….2

बेंच, कुर्सी, आलमारी, टेबलों के दर्मियां
ज़िंदगी उलझी हुई है फ़ाइलों के दर्मियां.
एक पेंशन केस था जो उम्र भर अटका रहा
हेड एकाउण्टेंट जी की अटकलों के दर्मियां.
कोई आवेदन महीनों तक नहीं होता कुबूल
और कोई बिल पास होता है पलों के दर्मियां.
आपसी संघर्ष है, संघों के आहदे-दार में
पिस रहे हैं कर्मचारी दो दलों के दर्मियां.
ग़र नहीं कुर्सी पे बाबू तो फिर उसको ढूंढिए
पान-ठेलों, चाय गुमटी, होटलों के दर्मियां.
बीसियों बैठक हुई लेकिन नतीजा कुछ नहीं
एक मुद्दा जा फंसा है पागलों के दर्मियां.
शाम होते ही नज़र आती है, रिश्वत की रकम
ताश के पत्ते सुरा की बोतलों के दर्मियां.
कितनी उम्मीदें बंधी हैं इन्ही बस्तों से ‘नूर’
कितने अरमां दफ्न हैं इन बंडलों के दर्मियां.

दफ़तर नामा….3

चमचों की चमचा-गिरी से सारा दफ्तर चलता है
अफ़सर दिन को रात कहे तो यस-सर, यस-सर चलता है.
भेद जो उनके ठाट-बाट का पूछा तो वो कहने लगे
वेतन अपना जेब ख़र्च है, रिश्वत से घर चलता है.
रूक जाते हैं सारे देयक, लग जाते हैं आब्जेक्शन
घूस न मिलने पर उनका हर काम नियम पर चलता है.
जितने फ़र्जी बिल हैं सारे पास करा लो आडिट में
सुरा-सुंदरी की राहों में जब आडीटर चलता है.
कभी फैक्स से आ जाता है, पल दो पल में, मीलों से
कभी माह में ढाई कोस की चाल से लेटर चलता है.
काम की क्यों परवाह करें हम मेंबर हैं यूनियन के
और हमारे नेता का दिल्ली तक पावर चलता है.
इस ऑफिस से बढ़कर ‘नूर’ आराम कहां मिल पायेगा
गर्मी में कूलर चलता है, सर्दी में हीटर चलता है.

नूर जगदलपुरी
प्रवीर वार्ड क्र.-1
जगदलपुर
मो.-9630858729