मालूम होगा शायद
तुम जो यहां बैठे अख़बारों में
ख़बरें ढूंढ़ा करते हो
ख़बरें जो लिखीं होतीं हैं
अख़बारों के पन्नों पर
घुमड़ती हैं जे़हन में
दिनभर काले कीड़ों की तरह
इन्हीं ख़बरों के बीच
गुज़रता जाता है सारा दिन
अख़बारों के पन्नें यूं हीं कमरे के
किसी कोने में पड़े फड़फडाते हैं
ये जो ख़बरें ख़ास थीं सुबह
आम हो उठतीं हैं
लोगों की जु़बानों में आकर
चर्चायें हुआ करती उनपर
चौक-चौराहों, गली-मुहल्लों में
चाय की चुस्कियों और
सिगरेट के उड़ते धुंये के बीच
तुम चाहो तो सुन, देख सकते हो
दरवाजे के उस पार
वह जब इन अख़बारों में आती हैं
ख़ास हो जाया करतीं हैं अक्सर
इन्हीं ख़बरों को तुम हर रोज़
पन्नों में ढूंढा़ करते हो
दंगों, सियासी जंग, हत्या, बलात्कार
बड़ी उत्सुकता से पढ़ते हो हर रोज़
इन ख़बरों का बनना तुम्हारे ही हाथों में है
तुम जो हर रोज़
इन ख़बरों के बीच से होकर ग़ुज़रते हो
हर रोज़ इनका सिरा
तुम्हारे ही हाथों में थमा होता है
तुम्हारे ही हाथों गढ़ी जाती हैं ख़बरें
लेकिन तुम इसे जान नहीं पाते
यह सच्चाई है क्योंकि
हर रोज़गर तुम इन ख़बरों को न पढो
ये गुम हो जायेंगी
अख़बारों के इन्हीं पन्नों से
कहीं जा छिपेंगी कोने में
तुम जब इन्हें पढ़ना छोड़
जा खड़े होगे ख़बरों के बीच
रोकोगे इन्हें बनने से
ये ख़बरें कहां बन पायेंगी
ख़बरों का वज़ूद कहीं गुम हो जायेगा
क्योंकि यह ख़बरें तुम से हैं
तुम ही हो जो इन्हें बनाते हो
लिखते हो इन्हें अखबारों में
देखते हो इन्हें पन्नों में ताकि
हर रोज पढ़ पाओ नयी ख़बर
सुबह चाय की चुस्कियों में
चौराहे के उस पार
देखता मैं सर्दी की स्याह रात
चौराहे के उस पार
टिमटिमाता नीरव आकाश
प्रकृति तल में सिमटता निर्विकार
सोचता,
सड़क की मद्धिम रोशनी में
वादियों में गिरता हिमकण
चांदी-सा चमकता साभार
हवा,
चीरती अंतस को बार-बार
मौन रात और मैं
हम दोनों ही साथ-साथ
धूप,
ठिठुरती आती अल सुबह
अर्घ्य देती स्त्री
सर्दी स्निग्ध सुस्त खड़ी
खिल उठती मुरझायी धरती
मैं चौराहे पर
हथेलियों में लिए प्राण
गाता मन ही मन ये मलय गान
देखता लोगों की बेवज़ह
ठिठुरन भरी चाल
श्रीमती रश्मि पाठक
श्रीकृष्ण कुमार पाठक
संडे मार्केट रोड,
टाऊन घर के निकट
रातू, रांची- 835222
मो. नं.- 8797579112