बातचीत-जनाब रउफ परवेज़-अंक-1

बस्तर क्षेत्र की साहित्यिक उपलब्धि इस क्षेत्र के लिये सम्मान का विषय होने के साथ ही साथ राज्य और देश के लिये भी गौरव की बात है. यहांॅ की फिज़ाओं में घुली शक्ति ही है जो इन साहित्यकारों के लिये संजीवनी बूटी बन गई. इस शक्ति ने ही लालाजी जैसे मनीषी को बनाया और शानी जैसे कहानीकार, उपन्यासकार को भी बनाया. इसी साहित्य की माला के एक मोती हैं जनाब रऊफ परवेज़ साहब. आदिम क्षेत्र जगदलपुर में आने के बाद यहीं के हो कर रह गये. यहांॅ की हवाओं को सांसों मे बसाया और अपना साहित्य संसार रचाया. आपने ग़ज़लों के अलावा नज़्म, रूबाई, लघुकथा और बड़ी कहानी लिखने में भी ध्यान लगाया. अपना साहित्य-धन सभी विधाओं से समृद्ध किया है.इनकी ग़ज़लों ने सारे देश में अपनी छाप छोड़ी है. आज तो कंप्यूटर का जमाना है, आपने तो कागज क़लम के जमाने में भी बड़ी मेहनत की. इस पिछड़े कहलाने वाले क्षेत्र को साहित्य-धन से भर दिया. आपकी रचनायें देश की अनेक साहित्यिक पत्रिका में स्थान पा चुकी हैं. आपका नाम परिचय का मोहताज़ नहीं है. आपका सरल स्वाभाव और सहयोगी भाव हर किसी को अपना बनाने की सामर्थ्य रखता है. आइये इनसे कुछ विषयों के सवाल पूछें और जानें कि इनकी क्या सोच है वर्तमान के संबंध में.

सनत जैन-आपने लेखन कब से शुरू किया इस पर प्रकाश डालें. कहते हैं शेरो शायरी प्यार मोहब्बत की उपज है, क्या यह सच है ? इस पर यदि विशेष घटना जुड़ी हो तो बतायें.-
रऊफ साहब-मैं स्कूल में पढ़ता था. प्राईमरी से मेरी शिक्षा उर्दू में हुई. तत्पश्चात् हाईस्कूल तक और उसके बाद की सम्पूर्ण शिक्षा अंग्रेजी के माध्यम से हुई.
जब मैं रायपुर में हाई स्कूल में दसवीं का छात्र था, जाने अनजाने कुछ लिखने का एहसास हुआ. मैंने कलम उठाया, लिखना शुरू किया और उर्दू में एक अफ़साना लिख डाला. बेमन से उस समय की दिल्ली से निकलने वाली मैगज़ीन मासिक ‘कामयाब’ को भेज दिया. वह अफ़साना उस माहनामें में प्रकाशित हो गया जिस पर मुझे सुखद आश्चर्य भी हुआ था.
उसके बाद कॉलेज के जमाने में मैंने दो तीन कहानियाँ और लिखीं जो प्रकाशित भी हो गईं लेकिन मन के भीतर जो बैचेनी सी थी वह तब समझ आई जब मुझे शेर कहने की तहरीक हुई और मैने ग़ज़ल कहना शुरू किया.
1958 में मेरी पहली ग़ज़ल माहनामा ‘बानो’, दिल्ली उर्दू मासिक पत्रिका में प्रकाशित हुई जिसने मेरी हौसला अफ़जाई की और मैं पूरे उत्साह के साथ शेरो फ़न के मैदान का शहसवार हो गया. उस वक्त तक न मेरा कोई उस्ताद था, न ही किसी ने मेरी राहनुमाई की थी. शेरो शायरी प्यार मोहब्बत की उपज है, इसे मै सही मानता हूं. जब मन शिद्दत से महसूस करता है तो मैं कहता हूं-
थी तसव्वर में एक शहज़ादी
जिसकी यादों के खिल रहे थे कंवल
मैंने लफ़ज़ों के चुन लिये मोती
बन गई इक बड़ी हसीन ग़ज़ल.
अब इस मुक्तक में आप के प्रश्न का उत्तर साफ़ नज़र आ रहा है. आप विशेष घटना की बात पूछते हैं तो बता दूं कि मेरे जज़बात में हलचल हुई थी और मैंने पूरी एक ‘नज़्म’ ‘अपनी नौखे़ज मोहब्बत की कहानी है यह‘ सिर्फ़ पंद्रह मिनट में कह डाली थी जिसका अंतिम पद है-
‘कितना आहिस्ता ख़रामी से नदी का पानी
मंचले गहरे समुन्दर में चला जाता है
तेरी हस्ती मेरी हस्ती में समा जाता है’

सनत जैन-आपको ग़ज़ल और शायरी में महारत है इसके अलावा आपने और किस विधा पर लिखा है ?.-
रऊफ साहब-मेरे लिये आपने कहा है-‘आपको ग़ज़ल और शायरी में महारत है’ इस बन्दा नवाज़ी के लिये मैं शुक्रगुज़ार हूं. साथ ही यह बात साफ़ कर दूं कि इल्म, शेरो फन के समुन्दरी साहिल पर मेरी हैसियत उस बच्चे की तरह है जो रेत पर बैठा सीप चुन रहा है, अभी तो उसे मौजों से खेलते हुये गोते लगाकर समुन्दर पार करना है.
शेरो शायरी में एक खुला मैदान है, मैंने ग़ज़लों के अलावा ‘नज़मों’, ‘आज़ाद नज़मों’, ‘रूबाई’, ‘क़तात’, ‘नात गोई’ पर भी अपने ज़ज़्बात को ज़बान दी है, रूपक और लेख लिखे हैं.

सनत जैन-बस्तर संभाग में आपके अलावा और कौन कौन शायरी और ग़ज़ल के क्षेत्र में काम कर चुके हैं ? उनमें से किस किस की शायरी ने आपको प्रभावित किया ?-
रऊफ साहब-बस्तर संभाग में शायरी और ग़ज़ल के क्षेत्र में मरहूम नूर क़ाजीपुरी, कफ़ीन फ़तेहपुरी, हबीब राहत हुबाब, शफ़ीक़ रायपुरी, नूरद्दीन नूर जगदलपुरी, याक़ूब नसीम, खुदेजा ख़ान, शबाना अली आदि ने अदब को अपनी खि़दमात से नवाज़ा है. जहाँ तक कलाम से प्रभावित होने की बात हैं, मेरा कहना है कि ‘‘जो ज़र्रा जिस जगह है वहीं आफ़ताब है.

सनत जैन-आपकी शायरी के विषय ज्यादातर क्या है- प्यार, जीवन या फिर और कुछ ?
रऊफ साहब-शायरी के विषय की बात पर बता दूं कि शुरू में मैंने तमाम तर रूमानी शायरी की है, साथ ही ग़मेजानाँ के साथ ग़मे रोज़गार से भी दो चार होना पड़ा. समय समय पर जैसे जज़बात में तहरीक हुई मैंने शेर कहे.
मैंने कहा
‘नर्म बिस्तर पे जब रात सोती रहे
और छा जाये हर सिम्त इक ख़ामशी
एक हलचल सी हो बहरे जज़बात में
शायरी के लिये और क्या चाहिये’
या- दर्द बन कर जो छाये वही साज़ है
सोजे़ दिल बनके उठे वो आवाज़ है
झूम जायें फ़िजायें वो नग़मा सुना
मुझको परवेज़ तारों ने आवाज़ दी

सनत जैन-अदम गौण्डवी की शायरी में एक नये प्रकार का अंदाज़ था क्या यह भी शेरो शायरी का रूप है ?-
रऊफ साहब-आप अदम गोण्डवी की शायरी के बारे में पूछते हैं तो सुने, अदम गौण्डवी ज़मीन का शायर है. उसने जीवन में जो भी देखा, भोगा, पाया, खोया सब को अपने शेरों में सुमो दिया. अदम गौण्डवी को शेर कहने का प्रभावशाली
अंदाज़ है जो शेरो शायरी की अज़मत व शान को बुलंदो बाला करता है कभी कभी लगता है कि अदम ने अपनी अलग पहचान बना ली है.

सनत जैन-आपने कहानी या अन्य विधा पर हाथ नहीं आज़माया ? आपकी नजर में ग़ज़ल अपने भीतर की भावनाओं को व्यक्त करने का सबसे सही ज़रिया है ?-

रऊफ साहब-मैंने मिनी अफ़सानें या लघुकथा पर भी क़लम चलाया है. हालाते ज़माना और गर्दिशे दौरा ने इतनी मोहलत नहीं दी कि तवील अफ़सानें लिखूं वरना मेरे कलम में अभी बहोत भूख बाक़ी है. कभी सोचता हूं कि सब कुछ छोड़कर सिर्फ़ लिखता रहूं.

सनत जैन-अपने प्रकाशित संग्रहों के संबंध में बताये ?-
रऊफ साहब-जैसा कि मैंने बतलाया है ग़मे रोज़गार ने संग्रहों के प्रकाशन की मोहलत नहीं दी. उर्दू में मेरा पहला दीवान ‘कौसे क़ुज़ह’ (इन्द्रधनुष) उर्दू अकादमी, म.प्र. भोपाल से 1997 में प्रकाशित हुआ. दूसरा संग्रह ‘शीशों के दरीचे,’ विश्व भारती प्रकाशन से 2003 में प्रकाशित हुआ. अभी तीन और संग्रह प्रकाशित होने को हैं.

सनत जैन-आपकी रचनायें किन किन पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं ?-
रऊफ साहब-मेरी रचनायें देश की उर्दू एवं हिन्दी पत्रिकाओं में प्रकाशित होती हैं. उर्दू पत्रिकाओं में ‘शायर’ बम्बई, ‘गुलबन,’ लखनऊ, ‘नयादौर’ लखनऊ, ‘सदार उर्दू‘ भोपाल, ‘चश्म ए उर्दू’ रायपुर आदि. हिन्दी में ‘‘शेष’’ जोधपुर, ‘गोलकोन्डा दर्पण,‘ हैदराबाद, ’रंग चकल्लस‘ मुम्बई ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ नई दिल्ली आदि.

सनत जैन-वर्तमान समय में आपको इस क्षेत्र से ग़ज़ल के लिए कोई बड़ी उम्मीद है और किस ग़ज़लकार से कुछ ज्यादा उम्मीद है ?-
रऊफ साहब-वर्तमान समय में शेरों सुख़न का दौर रूक-रूक कर थमा-थमा सा चल रहा है लेकिन मैं निराशावादी नहीं हूं. नये लिखने वाले जोशीले अन्दाज़ में सामने आ नहीं रहे हैं. ऐसे माहौल में फ़िलहाल किसी भी ग़ज़लगो का ख़ास तौर पर उल्लेख नहीं किया जा सकता.

सनत जैन-ग़ज़ल क्या उर्दू में ही लिखी जा सकती है या फिर ग़ज़ल लिखने के लिए उर्दू भाषा सहायक सिद्ध होती है ? क्योंकि उर्दू भाषा में बड़े और लंबे वाक्यों को छोटे शब्द में कहा जा सकता है ?-
रऊफ साहब-ग़ज़ल की जे़बाइश तो उर्दू के चमन में ही हुई है. ग़ज़ल की एक तहज़ीब है, एक खु़शनुमा माहौल है जिसमें इसकी परवरिश हो रही है और यह क़दम ब कदम परवान चढ़ रही है. अब तो मुल्क में हिन्दी ग़ज़ल के साथ अनेक भाषाओं में ग़ज़ल पर आज़माइश हो रही है लेकिन सभी की सूत्रधार उर्दू ग़ज़ल ही है. ऐसे प्रयास जो अवाम में मक़बूलियत हासिल कर रहे हों उनकी प्रश्ांसा की जानी चाहिये.

सनत जैन-इस क्षेत्र के रचनाकारों के लिए आपका क्या संदेश हो सकता है ?-
रऊफ साहब-क्षेत्र के रचनाकारों को मैं कहना चाहूंगा कि चाहे वह किसी भी वर्ग के हों, किसी भी स्कूल के हों उर्दू ज़रू़र सीखें क्यांकि उर्दू में जो मिठास है, घुलावट है वह हिन्दी के वाक्यों में भी चाश्नी का काम करती है और रचना में निखार पैदा हो जाता है वैसे भी दोनों बहनों की तरह ही हैं.
नये रचनाकारों को स्कूल और कॉलेज की चहारदीवारी में खोजना होगा ताकि वह साहित्य एवं अदब के मंच पर जलवा अफ़रोज़ होकर उसकी इज्ज़त, उसके वक़ार को ऊँचा कर सकें और समाज में भी क़ाबिलेकद्र मुक़ाम हासिल कर सकें. जो साहित्य के मैदान में प्रवेश कर चुके हैं उन्हें मेहतन और लगन के साथ खूब मश्क़ करने की अर्थात पढ़ने लिखने की ज़रूरत है.

सनत जैन-बस्तर पाति’ के लिए आपका क्या संदेश है ? इस पत्रिका की कमियों पर प्रकाश डालिए. पत्रिका में क्या सुधार आवश्यक है-
रऊफ साहब-‘बस्तर पाति’ एक मुकम्मल प्रोग्राम के तहत आपने शुरू किया है तो पूरे हौसले के साथ हर वर्ग का सहयोग हासिल करें, उसे आकर्षक बनाने की कोशिश करें, महिलाओं, बच्चों, के लिये सामग्री दें. हर अंक में बस्तर की माटी की गंध आवश्यक है जिससे बाहरी दुनिया में इस पत्रिका के माध्यम से बस्तर की पहचान बने. लोग महसूस करें कि बस्तर आदिवासियों की भारी आबादी वाला क्षेत्र होने के साथ साहित्य के क्षेत्र में भी दमख़म रखता है.