अंक-1 पाठकों की चौपाल

बस्तर पाति का अंक-1 पढ़ने का सुअवसर मिला. चौंसठ पृष्ठों का सुंदर आवरण के साथ सुशोभित अंक प्रथम दृष्टया आकर्षक लगा. काव्य, हायकू, लघुकथा, साक्षात्कार, कहानी, ग़ज़ल सभी विधाओं का सुंदर अंकन, संयोजन कर सुंदर सम्पादन हुआ है. हमारा मानना है कि पत्रिका अंचल की पकड़ के साथ उनके जीवन शैली को समेटते हुए एक आंदोलन को प्रवाहित करने का आग्रह करे तो साहित्य के क्षेत्र में वह निश्चित ही अपना मुकाम प्राप्त करेगी. बधाई!
बहस में आपने मिथकों के माध्यम से सांस्कृतिक मूल्यों को स्थापित करने का संकेत दे ही दिया है तो कथा में तकनीक के सवाल उठा जीवन की जटिलता को प्रतिकृति बनाम अनुकृति की एक नयी बहस भी छेड़ दी है, जो होनी भी चाहिये, लेखकों के मध्य. यूं तो सभी रचनायें श्रेष्ठ हैं परन्तु ‘दीया जलता रहा’ बी.एस.धीर जी की कहानी पत्रिका की धरोहर कहानी है.सभी रचनाकारों, संपादक मंडल व आपको बधाई.
श्री नरेन्द्रसिंह परिहार, संपादक ‘दिवान मेरा’, 04,उत्कर्ष अनुराधा, सिविल लाइन, नागपुर, मो.-09561775384
आदरणीय नरेन्द्रजी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. आपने बड़ी मेहनत से पत्रिका का अध्ययन किया एवं प्रतिक्रिया प्रेषित की. आपके अमूल्य सुझाव पर जरूर अमल किया जायेगा. हमारा तो प्रयास ही है कि पत्रिका क्षेत्र का दर्पण बने.
सनत जैन
आपकी भेजी पत्रिका ‘बस्तर पाति’ प्राप्त हुई. इस साहित्यिक प्रयास के लिए आपको हार्दिक बधाई. आपकी लिखी संपादकीय पढ़ी, बहुत अच्छी लगी, खरी है पर सही है. सभी ग़ज़लें एवं लघुकथायें अच्छी लगीं. पत्रिका के माध्यम से बहिन उषा अग्रवाल को प्रणाम प्रेषित है. उनके हाइकू अच्छे लगे. कमलेश्वर साहू एवं श्रीमती सुषमा झा की कवितायें बहुत अच्छी हैं. आप बधाई के पात्र हैं आपके इस साहित्यिक अभियान में देखिये एक दिन एक कारवां आपके साथ होगा-बेहिचक चलते रहिये.
कृष्णमोहन ‘अम्भोज’, नर्मदा निवास, न्यू कालोनी, पचोर-465683 जिला-राजगढ़ मो.-07566695910
आप के द्वारा प्रेषित ‘बस्तर पाति’ का प्रवेशांक प्राप्त हुआ. स्मरण के लिए आभार. प्रवेशांक को पढ़ने से पत्रिका के भविष्य की उम्मीदें जगती हैं. आवरण पत्रिका के उद्देश्यानुरूप, मुद्रण संतोषप्रद, एवं चयन, संपादन अत्युत्तम. बधाई एवं शुभकामनायें.
अशोक ‘आनन’ 61/1, जूना बाजार, मक्सी-465106 जिला-शाजापुर मो.-09977644232
‘बस्तर पाति’ का प्रवेशांक प्राप्त हुआ. आपके प्रति आभार ज्ञापित करता हॅूं. मुख पृष्ठ के चितेरे बंशीलाल विश्वकर्मा जी को साधुवाद. रचनाओं का चयन सुरूचिपूर्ण है. रऊफ परवेज़ की ग़ज़लें उम्दा हैं. सुरेश तिवारी एवं ऊषा अग्रवाल जी के हाइकू पसन्द आये. उर्मिला आचार्य जी की कहानी ‘एक था एनकू सोनार ’ विशेष पसन्द आई.
एक सुझाव अवश्य देना चाहॅूंगा, यदि आप अन्यथा न लें तो. आप पृष्ठ को दो कालम में विभाजित करें. लम्बी पंक्तियॉं पढ़ना उबाऊ होता है. कहानी का नाम सबसे ऊपर बोल्ड तथा बड़े फांट में दें. उसके तुरंत नीचे लेखक का केवल नाम दें. लेखक का पूरा पता मय मोबाइल नम्बर के रचना के अन्त में छोटे फांट में दें. आपका प्रयास श्लाघनीय है. मेरी शुभकामनाएं.
डॉ0 रघुनन्दन चिले, 232, मागंज वार्ड नं0ः1,दमोह म0प्र0 470661, मो.-9425096088
आपकी पिंत्रका ‘बस्तर पाती’ मिली, धन्यवाद. मैं राजनांदगांव का वासी हूॅं. मेरे शिक्षकीय पेशे के शुरुआती दिनां में सन् ;1976-80, तक बस्तर के जगरगुण्डा में रहने का सौभाग्य मिला. उन दिनां मैंने काफी कविताएं लिखीं. आशा करता हूं पत्रिका अविराम प्राप्त होती रहेगी.
नलिन श्रीवास्तव,वार्ड नंबर-32 ब्राहमण पारा, राजनांदगांव छ.ग.,मो-07587160610
आपकी पिंत्रका ‘बस्तर पाती’ मिली, धन्यवाद. आपने बड़ी मेहनत से पत्रिका तैयार की है. कवर एवं मटेरियल दोनो ही अच्छा है. संपादकीय अच्छा है, उसके माध्यम से पत्रिका का उद्देश्य समझा दिया है. शुभकामनायें एवं बधाई. (फोन पर)
थानसिंह वर्मा, गली नंबर-2, वार्ड नंबर-4 शांति नगर, राजनांदगांव छ.ग.,मो-09406272857
स्नेही स्वजन, सप्रेंम नमस्कार
बस्तर पाति प्रथमांक प्राप्त हुआ, आपकी पूरी टीम के सार्थक प्रयास को नमन, साधूवाद. अपनी संस्कृति, कला एवं साहित्य को प्रश्रय देने एवं प्रसारित करने के इस अथक प्रयास को मेरी शुभकामनायें.
बस्तर के सरस जन जीवन, बस्तरिया स्वभाव एवं भावनाओं से ओत प्रोत ’एक था एनकू सोनार’ ने सर्वाधिक प्रभावित किया. सुश्री उर्मिला आचार्य को मेरी बधाई. लाला जगदलपुरी की पुण्य स्मृतियों को समेटे हरिहर वैष्णव जी द्वारा लिया साक्षात्कार प्रेरणादायी है. आदरणीय लाला जी के रचना संसार की झलक हम नये रचनाकारों के लिए मार्गदर्शी है. इस प्रथमांक के सभी प्रतिभागी रचनाकारों को उनकी रचनार्धमिता के लिए मेरी शुभकामनायें.
मुखपृष्ठ के सजीव गुण्डाधर के चित्र से चित्रकूट जल प्रपात तक बस्तर की महक से रची बसी बस्तर पाति निरंतर प्रगति के सोपान चढे. एक बात की ओर ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूँ कि क्या यह जान बूझ कर किया गया है कि पत्रिका के नाम में ’पाति’ शब्द लिया गया है चूकि मेरे विचार से ’पत्र’ के अर्थ मे सही शब्द पाती होना चाहिए. पत्रिका के संदर्भ मे एक और अनुरोध है कि प्रथम पृष्ठ मे अनुक्रमणिका एवं द्वितीय में संपादकीय विवरण देने से पत्रिका का कलेवर और सुंदर हो जायेगा. पुनःश्च शुभकामनाओं के साथ ,,,
अखिल रायजादा, 20/265, रामनगर, सिम्स के पास, बिलासपुर. छ.ग. 495001
प्रिय श्री सनत कुमार जैन
शुभकामनायें
आज दिनांक 16.04.2014 को डाक द्वारा बस्तर पाति साहित्य को समर्पित त्रैमासिक पत्रिका मुझे प्राप्त हुई जिससे प्रेरित होकर खत लिखने बैठा हूं. बस्तर पाति आई है जिसके मुख पृष्ट पर श्री बंशीलाल विश्वकर्मा द्वारा उकेरा गया गुण्डाधूर का चित्र देखकर ‘‘आकृति’’ की याद आ गई. जहां घंटो बैठा करते थे. सूरज ,चांद , सितारों के माध्यम से सारे जहां की बातें किया करते थे. जगदलपुर छोडे़ हुए छःसाल होने वाले हैं पर कभी भी भूला नही हूं. जना़ब रऊफ परवेज़ , नूर जगदलपुरी , श्री ऋषि शर्मा ‘ऋषि’ की ग़ज़ले अच्छी लगी. और भी अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिली. पाति शब्द मे अपनापन लगता है इसीलिए मैं कहता हूं कि बस्तर पाति के माध्यम से –
‘‘ खत लिखने की परम्परा फिर से डालो यार. बातें टेलीफोन की हाय हलो बेकार.’’
बस्तर पाति पत्रिका साहित्य और कला के विकास के साथ-साथ जन-जन की समस्याओं को उठाने में एक मील का पत्थर बने. आज अपनी ही कविता मुझे याद आ गयी कि-
‘‘ हॅसते हुए नयनां को रुलाती हैं चिठ्ठियां, आने में भी जब भी देर लगाती हैं चिठ्ठियां.
परदेश में यही है सहारा हर एक का, अपने वतन की याद जगाती हैं चिठ्ठियां.’’
मैं चाहता हूं कि बस्तर पाति साहित्यिक पत्रिका त्रैमासिक से मासिक बने. सबका अनवरत सहयोग मिले. एक कठिन कार्य सरल हो जाये. अपनों का सन्देशा बस्तर पाति के माध्यम से मिलता रहे. पुनः मेरी शुभकामनाओें के साथ.
आपका भ्रातवत् जयप्रकाश राय, दलदल सिवनी शिवाजी नगर, मोवा, रायपुर, मो0 94242-80776
लोक संस्कृति एवं आधुनिक साहित्य को समर्पित हिन्दी पत्रिका ‘बस्तर पाति’ प्राप्त हुई. हार्दिक आभार. इस प्रथम अंक को आपने इस प्रकार संजोया है कि प्रतीत होता है, बहुत पुरानी पत्रिका है. कहानी, कविता, लघुकथा, के साथ-साथ ग़ज़ल, हायकू, बहस, यात्रावृतांत, संस्मरण, साक्षात्कार, साहित्यिक उठापटक आदि सबकुछ तो है इस पत्रिका में. सभी रचनायें पढ़ीं. सम्पादकीय टीम के साथ सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई.
सम्पादकीय में आपने लघु पत्रिका एवं पाठक व लेखक के बीच कई संबंधों पर वाजिब बात कही है.
मैं बहुत दिनों तक पत्रिका ‘मण्डप’ का संयोजक रहा जिसके तहत बहुत पत्रिकायें मंगाता था. मैं चाहता हूं कि लेखक व पाठक पत्रिका खरीदकर पढ़ें. पत्रिकाओं के प्रति मुफ्तख़ोरी बंद होनी चाहिये.
श्याम नारायण सिन्हा, बी.एफ.-1 जिन्दल स्टील एण्ड पावर लि., रायगढ़, छ.ग. मो.-9827477442
श्री श्याम नारायण सिन्हा जी एवं श्री नलिन श्रीवास्तव जी ऐसे पाठक एवं रचनाकार हैं कि जो बगैर आग्रह के ही पंचवर्षीय सदस्य बन गये और सदस्यता शुल्क भेज दिया. आप लोग ही हैं जिनसे उत्साह बढ़ता है. धन्यवाद.-सनत जैन