लघुकथा-मीना गोदरे

कितनी फांसी

पुलिस ने पूछताछ की तो उसने तुरंत गुनाह स्वीकार कर लिया पुलिस ने पीटा तो पिटता रहा, हाथ जोड़ता रहा।
’बोल,,,,,चार साल में की छोटी बच्ची के साथ गलत काम करके तू समझ रहा है,,,, तूने क्या गुनाह किया है?’
गुनाहगार ने चुपचाप, ’न’ में सिर हिलाया।
’उसके बाद उस मासूम का गला घोंटते तेरे हाथ नहीं कांपे ,,,,दो झापड़ और रसीद किए, मैं कुछ पूछ रहा हूं तूने सोचा है तेरे मां-बाप तेरे मरने से कितने दुखी होंगे।’
गुनहगार ने ’हां’ में सिर हिला दिया।
’तेरी आत्मा नहीं कांपी ऐसा जघन्य कार्य करते हुए..’ दो लातें और जड़ दीं ’तुझे पता है इसकी सजा फांसी है?’
उसने ’हां’ में सिर हिला दिया, वह फांसी पर चढ़ने तैयार था।
’सर, ऐसे आदमी को तो पीटने का भी मन नहीं होता।’ पुलिसवाला इंस्पेक्टर से बोला।
’जिसे न अपराध की समझ है न सजा का डर, देते रहो फांसी, और ’कितनी फांसी’ ,,,
वह मानसिक रूप से विक्षिप्त लगता है।
’इंस्पेक्टर ने इशारे से मारने के लिए रोक दिया और बोले-
’विकार, उपेक्षा, अज्ञानता के साथ मीडिया मोबाइल टीवी इंटरनेट वीडियो आदि का वह प्रदूषित रक्त है जो अपराधी की नसों में दौड़ता है। रक्त शुद्ध होगा तो आदमी स्वस्थ होगा।’

मीना गोदरे अवनी
इंदौर
मो.-9479386446