व्यंग्य-सुभाष पाण्डे

सावधान मंत्री भ्रमण पर आ रहे हैं

एक वन अधिकारी, जिसने हाल ही में उच्च स्तरीय जंगल परीक्षा पास की थी, ने कहना आरंभ किया -तो दोस्तों! जैसा कि आपको मालूम है, हमें जंगलों की रक्षा करनी है। वनों का विस्तार करना है। राष्ट्रीय संपत्ति वन्य प्राणियों की रक्षा करनी है। लेकिन प्रश्न यह है कि हम वन एवं वन्य प्राणियों की रक्षा कैसे करें ? वनों का विस्तार कैसे करें ? इस मीटिंग में इन अहम् मुद्दों पर विचार करने की फौरी जरूरत इसलिए आन पड़ी है, क्योंकि अगले हफ्ते वन मंत्री महोदय का इस वन प्रांतर में आगमन होने वाला है। मुझे आशा है कि पेड़ों एवं वन्य प्राणियों की संख्या प्रदर्शित करने वाले समस्त अभिलेख अब तक दुरुस्त कर लिए गए होंगे। जंगलों में गश्त तेज कर दी गई होगी। लकड़ी चोरों को समझा दिया गया होगा। वन पशु मांस प्रेमी अवैध शिकारियों को कुछ समय तक शाकाहारी रहने की हिदायत दे दी गई होगी। लकड़ीचोर और अवैध शिकारी भी इसी देश के सम्मानित नागरिक हैं। मताधिकार प्राप्त सम्मानित नागरिक। वनरक्षा के लिए सब का सहयोग अपेक्षित है।
लेकिन निरंतर कटते वनों की समस्या का हल कैसे निकालंे! -एक वन कर्मी ने प्रश्न उछाला।
अधिकारी बोले -हां, यह चिंता का विषय है। हम वैसे विधानसभा के हर सत्र में अपनी चिंता से मंत्री महोदय को अवगत कराते रहे हैं, लेकिन आप लोग यह भी तो सोचिए कि हमें अगर खाली मैदान नहीं मिलेगा तो हम नए-नए पेड़ पौधे कहां लगाएंगे ? आपको शायद याद हो, पिछली बार मंत्री महोदय जब वृक्षारोपण का शुभारंभ करने पहुंचे तो उनके द्वारा पौधा लगाने के लिए हमें माकूल जगह ढूंढने में कितनी तकलीफ उठानी पड़ी थी। वह तो गांव के पटेल ने समस्या हल कर दी। झाड़ी-झंकाड़ साफ कर पौधा रोपने लायक साफ सुथरी जगह दिखा दी। विभाग की इज्जत बचा दी। अब यह आलम है कि हमें नए पौधे लगाने में दिक्कत हो रही है। जंगल के बीच जितनी खाली जगह, जितने खाली मैदान थे, उनमें अतिक्रमणकारी काबिज हैं। हमें अब अग्नि परीक्षा से गुजरना है। हमें एक मुश्त खाली मैदानों में वृक्षारोपण करना है। और इन्हीं मैदानों में काबिज ग्रामीण अतिक्रमणकारियों को वन भूमि का पट्टा भी देना है। खैर! हम इस समस्या से भी निपट लेंगे।
अभी दो माह पूर्व जंगल देखने जो शिष्टमंडल आया था कोई जाकर उससे पूछे कितने प्रसन्न हुए थे वे। इसी विश्राम गृह में उनके रुकने की व्यवस्था की गई थी। जब हमने उनके समक्ष वनवर्णन प्रारंभ किया तो भावातिरेक से शिष्टमंडल के सदस्यों की आंखों से हरे रंग के आंसू बहने लगे। वे हमारी वनरक्षा की भावना से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने कागजों में ही घना जंगल देखा और अपने नगर की ओर प्रस्थित हो गए। वैसे हम चाहते थे कि वे असली जंगल देखें, लेकिन शेरखोरी की अफवाह से उनके हौसले पस्त हो गये। वन विश्रामगृह में ही वनभ्रमण का रसास्वादन कर अपने-अपने गृहग्राम लौट गये। वन जब गैरकानूनी ढंग से कटते हैं तो मन में असीम पीड़ा होती है। कानूनी ढंग से पेड़ यदि काटे जाते, तो हमें कोई आपत्ति नहीं होती। हमारा कहना है आप कानूनी प्रक्रिया पूरी कर आदेश प्राप्त कर पूरा जंगल काटें, लेकिन अवैध रूप से हम एक भी पेड़ काटने नहीं देंगे। मालिक मकबूजा के तहत लाखों पेड़ काटे गए हमने किसी से कुछ कहा क्या ? इसलिए नहीं कहा क्योंकि जो भी काटा, कानून की परिधि में काटा।
मुर्दे सबसे ज्यादा लकड़ी बर्बाद करते हैं। हमें इनसे भी पूरी शक्ति से निपटना होगा। मृत्यु दर में वृद्धि का सीधा असर जंगल पर पड़ रहा है। चुनाव के टाइम नेता और बाकी टाइम पत्रकार अक्सर कटे ठूंठ ढूंढने जंगल पहुंच जाते हैं। इन्हें ठूंठ दिखाते रहना है। उनसे हमें यह भी कहना पड़ता है कि इन पेड़ों को किसी ने काटा नहीं वरन पेड़ किसी अज्ञात वृक्ष रोग की वजह से ठूंठ के पास से खुद कट कर गिर गए।
अब प्रश्न है वन्य प्राणियों की रक्षा कैसे की जाए ? वैसे वन्य प्राणी खुद अपनी रक्षा कर लेते हैं। बल्कि वह हमारी भी रक्षा करते हैं। लकड़ीचोरों के हौसले पस्त करने में शेरों के योगदान को क्या हम वनकर्मी कभी भुला सकेंगे ? हमारी तो मंशा है कि ऐसे किसी जंगल बचाओ शेर को पकड़कर उसे 26 जनवरी में पुरस्कृत किया जाए। पिछले दिनों कुछ ग्रामीण शेरों के शिकार हो गए। सब भाग्य की बात है। हम 50 बार जीप में उन्हीं रास्तों से गुजरे हैं हमें तो किसी शेर ने आज तक कुछ नहीं किया। बल्कि अब तो वे विभागीय जीप की आवाज पहचानने लगे हैं। हार्न बजाओ तो बीच सड़क पर आकर दुम हिलाने लगते हैं।
लकड़ीचोरों से टक्कर लेने की समस्या भी हमारे सामने है। सरकार का हम पर विश्वास है। सरकार समझती है कि एक निहत्था वनरक्षक सौ वर्ग किलोमीटर जंगल की गश्त पैदल कर सकता है। वह जूडो, कराटे, कुंग फू से गिरोह में जंगल में घुसे लकड़ीचोरों को अकेले ही परास्त कर सकता है। हम सरकार के इस विश्वास का सम्मान करते हैं।
अब एक नई मुसीबत आन पड़ी है, वन मंत्रालय से स्पष्टीकरण मांगा जा रहा है कि पिछले वनमहोत्सव में वनमंत्री महोदय द्वारा पौधरोपण कार्यक्रम में रोपा गया बेशरम का पौधा खाद-पानी देने के बावजूद सूखकर कैसे मर गया।
यह भी कहा जा रहा है कि इस संदर्भ में विभागीय जांच होगी। जिसमें वन विशेषज्ञों की टीम अपना निष्कर्ष देगी। बेशरम पौधा सूखने के लिये जिम्मेदार वन अधिकारी के खिलाफ निलंबन की कार्यवाही भी हो सकती है।

सुभाष पांडे