शुभ दीपावली
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नव दीपों की स्वर्णिम किरणें,
जीवनपथ आलोकित करदें।
सुख संवृद्धि,शांति,यशपूरित,
सारा घर वैभव से भरदें।
न्याय विवेक लोकमंगल की,
उत्कट अभिलाषा हो।
खुद के साथ साथ औरों के,
सुख की भी आशा हो।
पारिजात लहलहा उठे,
कविता कानन में।
स्नेहशिक्त सौरभ सा लहके,
विमल प्रेमपंकज आनन में।
ऐसी रचना लिखो कि,
कलम सफल हो जाए।
अनहद में कुछ ऐसा डूबो,
जो भी लिखो ग़ज़ल हो जाए।
डॉ रामसरोज द्विवेदी,,शान्तिदूत
हमारी हिन्दी व्हाट्सएप्प वाॅल से।
ग़ज़ल-एक कोशिश
किसी की आँख का काजल, गले का हार हो जाना,
बहुत ये बात अच्छी है किसी से प्यार हो जाना।
कोई मझधार में घिरकर तुम्हें आवाज़ दे दे तो,
कभी नाविक, कभी कश्ती, कभी पतवार हो जाना।
कोई शायर बना कैसे इसी पर हो अभी मंथन,
नहीं इसमें बड़ा कुछ भी, बड़ा व्यापार हो जाना।
बहुत हैं रास्ते टेढ़े, धरा ये गोल है आखि़र,
मिलन होगा पुनः अपना, प्रिये तैयार हो जाना।
नहीं चाहत बड़ी मेरी, रखी है आरज़ू इतनी,
मेरी साँसों में बस जाना, मेरा आधार हो जाना।
कभी उत्तर नहीं आता, कभी वो प्रश्न करता है,
निशानी प्रेम की होती, अलग व्यवहार हो जाना।
तुम्हीं से रंग जीवन के, तुम्हीं से रोशनी जगमग,
कभी होली, कभी दीपों का तुम त्यौहार हो जाना।
… राजेश जैन ’राही’ रायपुर
सुधा साहित्य मीमांसा व्हाट्स वाॅल से
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