अर्ध रात्रि का ज्ञान
पकने का समय कई दिनों से अब तक/लिखने का समय 8.00 पी.एम. से 11.55 p.एम. दिनांक-4 मार्च 2021
सपन सलोना
लेखक-सनत सागर, संपादक बस्तर पाति, जगदलपुर, छ.ग.
’हां, भाई हीरा, बताओ, आपको इस कार्यक्रम में रहना है या नहीं ? डिसीजन लेने में देर करने से क्या फायदा!’’ चंदन बोला।
’पर हमे कहां इंट्री मिलेगी वहां पर। दूसरे कलाकरों का ग्रुप हमें कहां आगे आने देगा।’’ चिन्ता व्यक्त करते हुये हीरा हाथ में थामे कप की चाय अपने होठों से लगा लिया। चंदन उसकी बातों और हाव भाव से मुस्कुराने लगा।
’’क्या यार हीरा! इतने समय से मेरे साथ रहता है और मुझे नहीं पहचान पाया। मैं जिस सरकारी कार्यालय में काम करता हूं न, उसके साहब के हाथ में ही है कार्यक्रम करवाने की जिम्मेदारी। फिर मुझको कौन ये कार्यक्रम करने से रोक पायेगा। किसकी हिम्मत कि मुझे आउट करवा कर खुद की इंट्री करवा ले।’’
हीरा के माथे पर पड़ी चिंता की रेखायें अब जरा सी कम गहरी थीं पर अपना वजूद नहीं खोयी थी। चेहरे पर छाया प्रश्न स्पष्ट दिख रहा था।
’यार! प्रतिभा भी तो कोई चीज होती है। न तो मेरे गले में कोई सुर है न ही कोई साज और तुम हो कि मुझसे लोगों की भीड़ में गाना गवाना चाहते हो। पब्लिक जूते लेकर दौड़ायेगी। ऐसी दुश्मनी तो मत निभा मेरे भाई।’’ हीरा अपने हाथ में पकड़ा कप डस्टबिन में फेंक कर अपने हाथ जोड़ लिया।
’पिछले बीस बाइस बरस से मैं ऐसे ही स्टेज में आ-आ कर कवि और मंच संचालक साबित हो चुका हूं। आज हर विभाग वाले जानते हैं कि चंदन एक कवि और उत्कृष्ठ मंच संचालक है। मेरे घर आना, दिखाउंगा, ढेरों सर्टिफिकेट पड़े हैं मेरे सम्मान के। दुनिया भर के मेडलों, उपहारों और स्मृतिचिन्हों से पूरा का पूरा कमरा भर गया है। कोई माई का लाल मुझे किसी मंच से हटा तो दे मान जाउं कि मैं कवि नहीं हूं।’ चंदन तैश में आ कर अपनी बाहें चढ़ाने लगा। फिर एकदम से अपना मोबाइल निकाल कर फोटो दिखाने लगा। जिसमें उसे बड़े बड़े अधिकारियों जैसे कलेक्टर कमीशनर आदि द्वारा सम्मान पत्र व मोमेन्टो दिया जा रहा था। तमाम अखबारों की कटिंग की फोटो भी दिखाने लगा।
’ये है मेरे जीवन भर की कमाई…ये बात अलग है कि मुझे न तो कविता सुनाने आता है न ही मंच संचालन करने। हां, अपने अधिकारियों को सेट करना अच्छे से आता है। उनके साथ रह रह कर आज मुझे न केवल मंच संचालक, कवि बल्कि लोक कलाकार, लोक जानकार, पुरातत्वविद, साहित्यकार, गायक और बुद्धिजीवी के रूप में जाना जाता है। और इन सबके पीछे एकमात्र एक ही प्रतिभा का ही कमाल है और वह है…..अपने मुंह से नहीं कहूंगा मैं…..मुझे भी तो शर्म आती है कि नहीं ?’ हो-हो की आवाज के साथ चंदन हंसने लगा।
’यही तो; यही मैं भी सोचता था कि तुम लगातार अखबारों में छपते रहते हो वास्तव में तुममे तो वो सब है ही नहीं…..’ हीरा भी हंसता हुआ बोला।
’अब तुझे भी गायक बना कर ही मानूंगा। गायक न सही कवि तो बन ही जायेगा तू। दो लाइन इधर की दो लाइन उधर की और कुमार विश्वास तैयार!’
ये कहते हुये चंदन अपनी हथेली हीरा की हथेली पर ठोक दिया।
’कहा न, कोई माई का लाल मुझे कार्यक्रम में भाग लेने से नहीं रोक सकता है। तनखा के साथ ये कमाई भी अलग।’
’और शहर के अन्य लोग इस पर आब्जेक्शन नहीं करते ?’ हीरा ने एक प्रश्न दाग ही दिया।
’क्या खाकर करेंगे। हमारे कार्यक्रम हैं हमें डिसीजन लेना है कि कौन रहेगा कौन नहीं रहेगा।’ हीरा के कान के पास आकर चंदन बोला। ‘वैसे भी तो ये कार्यक्रम खानापूर्ति ही तो होते हैं। आज तक जितनी भी प्रतिभायें सामने आयी हैं वो अपने बलबूते ही आती हैं। जहां सरकारी सपोर्ट मिला वहां प्रतिभा सिर्फ एक ही होती है और वो होती है ’जी सर!’ और ’हां, सर!’ इसके सहारे ही तो हमारे जैसे लोग प्रतिभावान मान लिये जाते हैं। अधिकारी को काम होने से मतलब होता है और उसको इस बात कोई मतलब नहीं कि सही आदमी को इसका फायदा हो रहा है या फिर हमारे जैसे कुमार विश्वास और अनामिका अम्बर को। तुमको पता भी है कि नहीं! कि किसी भी कला क्षेत्र में देश में दो तरह के प्रतिभावान होते हैं। पहले जो वास्तव में संघर्ष करके आम जनता के बीच अपनी पहचान बनाते हैं। और दूसरे हमारे जैसे अमरबेल! मजबूरी में करते करते ’घोषित’ हो जाते हैं। सरकारी विभाग के ध्यानचंद, उड़नपरी, क्रिकेटर, निराला, प्रेमचंद, लता, मुकेश, एक अलग ही पहचान रखते हैं। एक राज की बात और बताता हूं। मेरी कमर जरा सी चौड़ी है वरना मैं नाच नाच कर उसमें भी मोमेन्टो खींच खांच कर ले आता। ये क्षेत्र न छूट जाये इसलिये भतीजी को नाचना सिखवा दिया है।’
तभी मोबाइल बज उठा चंदन का। तो वह चुप होकर मोबाइल देखने लगा।
’नहीं भाई नहीं हो पायेगा। हीरा भाई ने अपना आवेदन दे दिया है पहले से ही। वही इस आयोजन में गाना गायेंगे।’
हीरा भाई चंदन का चेहरा अचरज से देखने लगे। मन में अनजानी उमंग की सुरसुरी सी उठ गयी।
फोन बंद करके चंदन बोला ’हीरा! मैं तुम्हारे लिये इतना काम कर रहा हूं तो तुम भी मेरी एक ताजा कविता सुनकर जाओ।’
’क्यों नहीं। सुनाओ भाई।’
’पापा! मैं गाना गाउंगा
तुम सबका नाम रोशन कर जाउंगा,
भले ही गले में सुर न दो
पापा! मैं गाना गाउंगा….’
चंदन की कविता की इन पंक्तियों को सुनते ही हीरा भागने लगा तो चंदन चिल्लाया-
’भाई! मैंने तुझे कार्यक्रम दिलवाया है मुझे यूं छोड़कर न जा। भविष्य के कुमार विश्वास यूं न भाग। तुझे गली का काला कुत्ता काट खाये……’