लघुकथाएं-इन्दू देवांगन

अन्धविश्वास

नयी उमंग और उत्साह में साथ पलक ने आज अपने ससुराल में कदम रखा. नये रिश्तों और पति के प्यार में मानों वह पूरी तरह से डूब सी गई. कुछ दिनों बाद उसके जीवन में खुशखबरी आई. वह माँ बनने वाली थी.
घर में जैसे खुशियों की बहार आ गई, सासु माँ ने उसकी खूब सेवा की, उसकी हर खुशी का ध्यान रखा.
‘‘पलक! तुझे मीठा खाने की इच्छा हो रही है ?’’
‘‘पलक! तू दुबली हुई जा रही है. ये लक्षण तो…..जरूर मेरा पोता ही होगा.’’
नौ महीने बाद पलक ने एक प्यारी से बेटी को जन्म दिया. सास की आँखे तो फटी की फटी रह गई, उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था.
आखिर पोते के लिए ऐसा अंधा विश्वास क्यों ?

दस्तूर
बहुत ही प्रेम और विश्वास के साथ एक मध्यमवर्गीय परिवार ने अपनी बेटी का विवाह बड़े सम्पन्न घर में कर दिया, जहाँ सास-ससुर व पति के बीच सरला अपने आप को खुशनसीब समझने लगी. वक्त बीतते समय सरला उस घर में अपनी पहचान खोजने लगी.
सास ने कहा- ‘‘सुबह जल्दी उठा करो और रात में सब काम निपटा कर सोया करो.’’
ससुर ने कहा- ‘‘सर पर पल्लो लिया करो’’
सरला सबकी बातों को सुनकर अनमनी सी रहती. पर किसी से कुछ न कहती. इसी तरह से समय निकलता गया.
राशि- ‘‘मम्मी! मुझे इनके परिवार के साथ बिल्कुल नहीं रहना हैं. यहां से मुझे अभी ले जाओ’’
मम्मी- ‘‘चिंता मत करो बेटी! तुम्हारे पापा आ रहे हैं.’’
पापा- ‘‘बेटी-दामाद को अपने परिवार के बीच परेशानी हो रही है, हम उनका घर अलग-अलग कर…
सरला निःशब्द उन्हें निहारती रही.
‘‘शायद! यही दुनिया का दस्तूर है.’’ उसके दिमाग में चल रहा था.

 

श्रीमती इंदु देवांगन
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कोरबा, जिला-बिलासपुर
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