अंक 9+10-कविता कैसे बदले तेरा रूप

कविता का रूप कैसे बदलता है देखें जरा। नये रचनाकार ने लिखा था, नवीन प्रयास था इसलिए कसौटी पर खरा नहीं उतरा। उसी कविता को कैसे कसौटी पर खरा उतारें-

कागज
कागज फेंके इधर उधर
कभी फाड़े, कभी मोड़कर।
जब भी मिला मौका कागज को
दो कौड़ी का साबित कर दिया।
जरा सी गलती पर
पूरी कापी बदल दी।
छपते रहे न्यूज पेपर
जाने उसमें किसने
समोसे धरे तो जलेबी बांधी।
स्कूलों में हर साल
पिछले क्लास की पुस्तकों के
चित्रों की वर्क बुक बनवाई।
आज भी घर में दादाजी की पुस्तकें हैं
जिससे पापा पढ़े थे
आज पढ़ना चाहें भी तो कैसे पढ़ें
स्कूल की दुकान कैसे चलेगी।

यही कविता कुछ अन्य पंक्तियां जोड़ने पर देखें कैसे रूप बदलकर रोमांचित करती है-
कागज
कागज फेंके इधर उधर
कभी फाड़े, कभी मोड़कर।
जब भी मिला मौका कागज को
दो कौड़ी का साबित कर दिया।
जरा सी गलती पर
पूरी कापी बदल दी।
छपते रहे न्यूज पेपर
जाने उसमें किसने
समोसे धरे तो जलेबी बांधी।
स्कूलों में हर साल
पिछले क्लास की पुस्तकों के
चित्रों की वर्क बुक बनवाई।
आज भी घर में दादाजी की पुस्तकें हैं
जिससे पापा पढ़े थे
आज पढ़ना चाहें भी तो कैसे पढ़ें
स्कूल की दुकान कैसे चलेगी।
जब रूक जायेंगी सांसें पेड़ों की
तब कौन ऑक्सीजन बेचेगा ?