लघुकथा-शिवराज प्रधान

रूप परिवर्तन का एक और चरण
एक दिन भगवान ने बैठे ठाले सोचा कि आजकल पृथ्वीलोक में बहुत सारा परिवर्तन आया है, क्यों न एकबार पृथ्वीलोक का भ्रमण कर आयें। भगवान छद्म रूप धारण करके पृथ्वीलोक के भ्रमण को निकल पड़े। वहां पांव रखते ही उनकी नजर बड़े से शॉपिंग मॉल पर पड़ी। वो तत्काल ही शापिंग मॉल में घुस
गये। मॉल के अंदर घुसते ही वहां के दृश्य उन्हें चकाचौंध कर गये। भगवान प्रफुल्ल हो गये। पास के धोती विक्रय केन्द्र पर उनकी नजर पड़ी। उनका मन वहां शोकेस पर सजाई बहुमूल्य धोती पर आ गया। वे तपाक से धोती उठाकर सेल्सगर्ल के पास जाकर बोले-‘‘हे कन्याश्री! मैं भगवान हूं और छद्म रूप में तुम्हारे सामने खड़ा हूं। ये धोती मुझे दान में चाहिए। क्या तुम मुझे ये दे सकोगी ?’’
सेल्सगर्ल बोली-‘‘भगवान जी आपको दिखाई नहीं देता कि यहां हर माल बिकाऊ है। सबके ऊपर बिक्री मूल्य लगाया हुआ है। और फिर यहां सीसीटीवी भी लगाया हुआ है।’’
भगवान ने देखा, वहां बनावटी केश यानी ‘विग’ विक्रय केन्द्र में अर्द्धवयसी तरूणियां विभिन्न स्टाईलों के विग पहनकर शीशे में निहारकर अपने रूप परिवर्तन पर खुश हो रही हैं।
भगवान ये देखकर कुछ सोच में पड़ गये और धोती वहीं रखकर कहीं दूसरे कोने में चले गये। वहां जाकर वे शानदार आधुनिक व्यक्ति का रूप धारण कर लिया। शरीर पर महंगे कपड़े और महंगी घड़ी, मोबाइल हाथ पर थे।
वे ये रूप धारण कर उस कोने से निकलकर मॉल में थोड़ी देर इधर उधर घूमे और फिर वहीं उसी सेल्सगर्ल के पास पहुंच गये। उन्हें देखकर सेल्सगर्ल ने तुरंत ही नमस्ते किया। भगवान उसका अभिवादन स्वीकार करके उसी धोती को उठाकर रख लिए और वहां से चल पड़े। मुख्य द्वार पर पहुंचते ही सिक्यूरिटी गार्ड ने जोरदार सलाम ठोका। भगवान ने उसका जवाब दिये बिना दरवाजा पार किया और शॉपिंग मॉल से दूर चल पड़े। उनके चेहरे पर मुस्कान थी और हाथों के बीच वही धोती चमक रही थी।


शिवराज प्रधान
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