लघुकथा-डॉ गजेन्द्र नामदेव

आईना


चुनावी माहौल अपने चरम पर था। समाचार पत्रों की खबरें, समाचार चैनलों की तीखी उबाऊ बहसंे, चाय-पान के ठेले, सब जगह राजनैतिक बुखार का संक्रमण फैला था। हर पार्टी का कार्यकर्ता और नेता पूरे जोर-शोर से अपने उम्मीदवार का पक्ष मजबूत करने में जी जान से लगा था। सच क्या है, ये तो वे भी जानते थे लेकिन ये भी सच है कि भला कोई ग्वाला अपने दूध को पतला कहता है क्या? फिर सबके अपने-अपने भविष्यकालीन गणित भी लगे हैं।
आज शहर के पिछड़े इलाके में जनआशीर्वाद यात्रा है। उसी उम्मीदवार की, जिसे जनता ने पिछली बार चुनकर भेजा था। ‘‘फिर एक बार-आपके द्वार‘‘, ‘‘आपका सेवक आपका नेता‘‘ और भी मिश्री से मीठे बोल जो सिर्फ इसी समय सुनाई देते हैं, लाऊडस्पीकर से आम जनता को नेताजी के आने का संदेश दे रहे हैं।
आगे-आगे ढोल नगाड़े चल रहे हैं। नेताजी फूलमालाओं से लदे हैं। माथा तिलक से लाल है। चेहरे पर थकान को जबरन मुस्कराहट लाकर दूर करने की भरपूर कोशिश चल रही है। दोनों हाथ जुड़े हैं। निगाहें चारों तरफ घूम रहीं हैं। आंखों में निवेदन, आशा, विश्वास, उत्साह और गलियोें में फिर भटकने की विवशता साफ पढ़ी जा सकती है। उत्साह से लबरेज कार्यकर्ता ‘‘जिंदाबाद‘‘ ‘‘फिर एक बार‘‘ जैसे जोशीले नारे लगा रहे हैैं। गली के बच्चे उत्साह से नाच रहे हैं। महिला-पुरुष द्वारों, खिड़कियों, छज्जों से ताक रहे हैं। एक बुजुर्ग महिला अपने दरवाजे पर खड़ी है। वक्त की नजाकत देख नेताजी तुुरंत उस ओर बढ़ गये। कुछ कार्यकर्ता भी फुर्ती से उस ओर हो लिये। एक बोला-
‘‘अम्माजी नेताजी को आशीर्वाद दीजिये। इन्हें वोट देकर फिर जिताइये।‘‘
नेताजी चरण छूने आगे बढ़े ही थे कि वृद्धा ने अपना चश्मा ठीक किया-
‘‘ये तो पिछले बार भी आया था न।‘‘
कार्यकर्ता के चेहरे पर अतिरिक्त मुस्कराहट फैल गई। उत्साह से बोला-
‘‘जी हां आपके आशीर्वाद से पिछले बार भी जीते थे। इस बार भी दीजिये अपना वोट और…….।‘‘
यह सुनते ही अम्माजी के तेवर अचानक बदल गये-
‘‘क्यों रे पिछले बार क्या कहकर वोट ले गया था कि सड़क बनेगी, बिजली मिलेगी, पानी की समस्या दूर होगी। और भी बहुत कुछ कहा था, याद है न?‘‘
‘‘हां माताजी इस बार जरूर पूरा…।‘‘ कार्यकर्ता फिर अधीरता से बोला।
‘‘तू चुपकर।‘‘ बुढ़िया ने अबकी उसे डपट दिया और नेता से बोली-
‘‘तुझे शरम नहीं आई पांच साल बाद फिर वही बातें दुहराते ? हमें बेवकूफ समझ रखा है क्या ? चले आये मुंह उठाये…। बेशरम…। बरसाती दादुर…। हुंह…।‘‘
मुंह फेरकर बुढ़िया अंदर चली गई। नेताजी का मुंह लटक गया। कार्यकर्ताओं में सन्नाटा छा गया। ढोल बंद हो गये। गली में दूर तक सिर्फ पदचापों की आवाजंे आ रहीं थीं।

डॉ. गजेन्द्र नामदेव
भूगोल विभाग, शासकीय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय छिन्दवाड़ा (म.प्र.) 480001
मो.-09993225244