लघुकथा-बकुला पारेख

सच
आज करोड़ीमल की दुकान बंद थी। मुन्ना पुस्तकें लेकर उनके पास बैठ गया। करोड़ीमल ने गांधीजी का पाठ पढ़ाते हुए लिखवाया, ‘हमे हमेशा सच बोलना चाहिए।’ कापी पलटते हुए टेस्ट के नंबर देखे दस में से दो! गाल पर चांटा जड़ते हुए करोड़ीमल बोले-‘‘मुझे आठ बता रहे थे और नंबर मिले हैं दो। पढ़ते हो ‘सच बोलो’ और फिर झूठ बोलते हो!’’
तभी फोन की घंटी ट्रीन-ट्रीन की आवाज के साथ घनघनाई। लेनदार का फोन होने की आशंका भांपते हुए करोड़ीमल बोले-‘‘मुन्ना! फोन उठाओ, अगर मेरे लिए हो तो बोले देना, पापा टूर पर गये हैं।’’
सुहागन
वट सावित्री का व्रत है। पूजा करने जाना है, सूत समेत पूजा की थाली तैयार कर शांता ने पड़ोसन सुमित्रा को आवाज दी।
सुमित्रा की बेटी ने जवाब दिया-‘‘मम्मी तो बुआ के साथ चली गई।’’
‘‘लो चली गई, कल से तो बात चल रही थी कि साथ में चलेंगे।’’ शांता बुदबुदाई-‘‘पिछली बार तो अम्मा के साथ चली गई थी, पर अब….अम्मा (सासू मां) भी अकेली और मैं भी! क्या करती, रोज-रोज के झगड़ों से तंग आ चुकी थी।’’
शांता बुदबुदाती रही।
बड़ के पेड़ के पास जाकर पूजा की, सूत लपेटा, पति की दीर्घायु की कामना की। धूप तेज हो चली थी तनिक विश्राम करने बैठ गई शांता। बड़ यानी वट के पेड़ से लटकती हुई शाखाएं जो कि जमीन के अंदर चली गई थीं, उन्हंे अपलक निहारती रही।
‘‘बूढ़े हो रहे बरगद के पेड़ को शाखाएं सहारा दे रही हैं।’’ कहीं कुछ मन में खटका, आंखों में आंसू भर आये। उठ खड़ी हुई शांता। घर जाने के बदले अम्मा (सासू मां) के घर गई। अम्मा बहू को देखकर भौचक रह गइ। शांता अम्मा के पैर छूकर बोली-‘‘अम्मा हम साथ रहेंगे, घर चलो। इस उम्र में आपका सहारा बनना हमारा फर्ज है।’’
अम्मा भावुक होकर रो पड़ी, बोली-‘‘बेटा! आज व्रत का तुझे पूरा फल मिलेगा, मेरा आशीर्वाद तेरे साथ हमेशा रहेगा। चाहे तू व्रत करे या न करे, हमेशा सुहागिन बनी रहेगी।’’

श्रीमती बकुला पारेख
18-जूनियर एम.आई.जी.,
जय बजरंग नगर,
इंदौर, म.प्र.
मो-9826952602