ग़लतफहमी
रामेश्वर बाबू हाट से सब्जी आदि लेकर जैसे ही शहर की मेन रोड पर आये कि किसी ने ‘प्रणाम भैया!’ कहकर उनका चरण स्पर्श किया। ‘कल्याण हो!’ कहकर जो उस व्यक्ति पर दृष्टि जमी तो बोले, ‘‘अरे! कामेश्वर…तुम! कहो, कैसे हो ? क्या बात है….एक लम्बे अरसे से घर नहीं आये। अपने भैया से ऐसी क्या नाराजगी हो गई ? कभी किसी छुट्टी को बहू व बच्चों को लेकर घर आओ….बैठकर बातें करेंगे।’’
‘‘बड़े भैया! आपसे तो मुझे कोई शिकायत नहीं है, किन्तु तपेश्वर से मैं अवश्य नाराज हूं।’’
‘‘भई, तुमने तो कमाल कर दिया-तपेश्वर! अरे, वह तो हम दोनों का अनुज है! अगर तुम्हें उससे कोई शिकायत है तो…..कल ही रविवार है-हम तीनों भाइयों की छुट्टी है। घर आ जाओ…..बैठकर सारे गिले-शिकवे दूर कर लेंगे। यह कौन-सी बड़ी बात है!’’
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‘‘अरे कामेश्वर! आओ…..आओ, बहू तुुम भी आओ! तुम लोगों का स्वागत है।…पर बच्चों को क्यों नहीं लाये तुम लोग ?’’
‘‘कोई खास बात नहीं भैया…घर अकेला न रहे इसी ख़्याल से नहीं लाये।’’
अनुज एवं अनुज-वधू के चरण स्पर्श के उत्तर में रामेश्वर बाबू आशीर्वाद दे ही रहे थे कि बगल के कमरे से निकलकर तपेश्वर भी अपने अग्रजों के मध्य उपस्थित हो गया और आते ही उसने अपने मंझले भैया-भाभी का चरण स्पर्श किया। उत्तर में उन्होंने न केवल आशीर्वाद दिया बल्कि भावविह्वल होने के साथ-साथ लज्जित भी हो गये।
‘‘कामेश्वर! मैं चाहता हूं जब तक भोजन तैयार हो चाय की चुस्कियों के साथ-साथ लगे हाथ गिले-शिकवे भी हो ही जाएं।’’
‘‘भैया! अब कहने को कुछ भी शेष नहीं रहा। हमारी शिकायत स्वतः ही दूर हो गई है।’’
‘‘भई तुम कमाल करते हो….अभी तो कोई बात हुई ही नहीं, तो स्वतः शिकायत दूर कैसे हो गई ? कल ही तो शिकायत के लिए तुम काफी गंभीर दिख रहे थे।’’
‘‘यह सच है भैया! किंतु तपेश्वर ने हम दोनों के चरण स्पर्श करके हमारी सारी शिकायत दूर कर दी है।’’
’’वह तो मैं सदैव करता हूं; इसमें क्या बड़ी बात है।’’ तपेश्वर ने झट् बात को अपने हाथ में लेते हुये कहा।
अनभिज्ञता ज़ाहिर करते हुये बड़े भैया ने कहा-‘‘तुम साफ-साफ कहो कामेश्वर! बात क्या है।’’
‘‘पिछली बार जब आपके पुत्र चुन्नू के मुंडन पर हम लोग आये थे तो तपेश्वर ने मात्र मेरा ही चरण स्पर्श किया और अपनी भाभी की उपेक्षा कर दी थी।’’
इस पर तपेश्वर ने बहुत ही विनम्रता एवं आदर से कहना शुरू किया-’’भैया! यदि इस कारण आपको कष्ट हुआ है तो मैं आपका अनुज हूं, क्षमा कर दें। परन्तु वास्तविकता तो यह है कि उस दिन मैं किसी काम से लौटा तो कमरे में काफी भीड़ थी। मेरी दृष्टि मात्र आप पर ही पड़ी थी…भाभी को तो मैंने देखा तक नहीं था। यदि मेरी दृष्टि भाभी पर पड़ती तो भाभी के आशीर्वाद से कौन अभागा वंचित रहना चाहेगा!’’
‘‘चलिए! अब सब लोग उस कमरे में चलें। उधर भोजन लगा दिया गया है।’’ यह बड़ी भाभी थी।
डॉ. सतीशराज पुष्करणा
अध्यक्ष, अ.भा.प्रगतिशील लघुकथा मंच
लघुकथा नगर, महेन्द्रू
पटना-800006
मो.-08298443663