लघुकथा-रचना

किसके लिए रोता है?…..


रात साढ़े नौ बजे थे। पोलीस थाने में पी. एस. आय.
“हवलदार.. सब कैदियों ने खा लिया?“
“हां साब सिर्फ 55 नंबर के कैदी ने नहीं खाया।“
“क्यों नहीं खाया, तबियत ठीक है ना उसकी?“
“हां साब, ठीक है, सिर्फ दो दिन से खाना नहीं खाया है।“
“दो दिन से? और तू आज बता रहा हैं मुझे?“
पी. एस. आय. को गुस्सा आया। इस कैदी की बीवी को खुदकुशी किये पचास दिन हुये थे, तबसे वह यहां कैद मंे था। उसकी बच्ची सिर्फ छै महिने की थी। वे झटसे उठकर कोठरी की और बढ़े।
“हवलदार, दरवाजा खोलो।“
हवलदार ने दरवाजा खोला। 55नं का कैदी उठकर खड़ा हो गया।
“क्यों रे खाना क्यों नहीं खाता? तबियत ठीक नहीं है क्या?“
“नहीं साब, ऐसी कोई बात नहीं।“
“फिर क्यों नहीं खा रहा?“
“साबजी, आप को जितना चाहिए उतना रुपया देने के लिए तैय्यार हूं…… मुझे घर जाने दीजिए। आपके पांव पड़ता हूं। मुझे बहुत याद आ रही है…मेरी बच्ची की।“
“और बीवी की?“
बीवी का नाम लेते ही वह जोर-जोर से रोने लगा।……थोड़ी देर कोई कुछ नहीं बोला।
“अच्छा, चल रो मत, खाना खा ले और एक बात बता, तू अब किसके लिए रोता हैं?……बेटी या बीवी?“
…………..पी.एस.आय. बोल गया और कैदी उनकी तरफ देखता रहा। उसकी नजर में बड़ा प्रश्नचिह्न उपस्थित था।

हे भगवान


दूसरी कक्षा! अध्यापक द्वारा दिया गया प्रोजेक्ट जमा का काम चल रहा था।
अध्यापक हर छात्र से उसका नाम लेकर प्रोजेक्ट फाईल जमा कर रहे थे। एक के बाद एक छात्र आकर अपनी प्रोजेक्ट फाईल देकर जा रहा था। जैसे ही प्रीति का नाम लिया, प्रीति हाथ में दो फाईलंे लेकर आयी। उसने अपनी फाईल जमा कर दी। अध्यापक अगला नाम ले रहे थे। प्रीति ने बीच में ही टोक दिया-“सर आप स्वाति को भूल गये क्या? ये लीजिए उसकी फाईल भी रख लीजिए। अस्पताल जाने से पहले ही उसने फाईल पूरी कर दी थी।“
“लेकिन……“ अध्यापक के कुछ कहने से पहले ही,
“सर आप इसे रख लीजिए, नहीं तो स्वाति अस्पताल से आने के बाद नाराज हो जाएगी।“ इतना कहकर प्रीति फाईल देकर अपनी जगह पर झट से जा बैठी।
अध्यापक की आंखों से आंसूओं की धारा बहने लगी। स्वाति प्रीति की जुडवां बहन थी। जो चार दिन पहले एक हादसे में गुजर गयी थी। अध्यापक ने अपनी आंखें बंद कर ली मन ही मन इतना कह पाये,’हे भगवान……!’

रचना
श्री उमेश शिवलिंग आय्या
रविवार पेठ
तिसगांव 414106
तालुका-पाथर्डी
जिला-अहमदनगर
मो.-7066301946