देहात का कवि सम्मेलन
त्यौहारों का सीजन आ गया था। सभी इसकी तैयारी में जुट गये थे। गांव के लोग चाहते थे कि इस बार शहर की तरह वे अपने गांव में भी कवि सम्मेलन, आर्केस्ट्रा आदि का आयोजन करें जिससे उनके गांव का भी नाम हो।
एक दिन सरपंच जी मेरे यहां आये और बोले ‘सर! इस बार हम नवरात्रि पर अपने गांव में कवि सम्मेलन रखना चाहते हैं….आप हमें कुछ कवियों के नाम तो बताइये।
मैंने पांच-सात लोकल कवियों के नाम पता लिखवा दिये।
उन्होंने पूछा ’खर्चा कितना बैठेगा ? और सर यह भी बताइये कि इंतजाम क्या करना पड़ेगा ? हम लोग पहली बार अपने गांव में कवि सम्मेलन करवा रहे हैं न, इसलिए हमें कुछ मालूम नहीं कि क्या करना पड़ता है।’
मैंने कहा ‘सरपंच जी! खरचा तो कुछ भी नहीं आयेगा…..आप चिन्ता मत करिये, मैंने ऐसे नाम लिखवाए हैं कि उन कवियों को अपनी कविताएं सुनाने की चौबीसों घंटे रहती है। यदि आप आने-जाने का इंतजाम कर देंगे तो ठीक नहीं तो वे साइकिल से ही पहुंच जायेंगे। आप निश्ंिचत रहिए।’
वह बोले ’फिर भी कुछ खने पीने का इंतजाम तो करना ही पड़ेगा न।’
मैंने कहा ‘खाने में उनकी रूचि कम ही रहती है। यदि आप पीने का इंतजाम कर देंगे तो वे रात भर आपको कविताएं सुनाते रहेंगे।’
मंत्रालय के पीछे वाले मित्र
दोस्त राजधानी में रहते थे। इस बार वे मेरे शहर आये। हम दोनों मित्रों के बीच बातों का सिलसिला शुरू हुआ।
मित्र ने मुझसे पूछा-‘इधर की क्या स्थिति है ?’ दरअसल चुनाव होने वाले थे, फिर मित्र भी राजनीति में भी सक्रिय थे।
मैंने कहा-‘हम तो कस्बे वाले हैं। आप ही बताइये राजधानी का क्या हाल है ?’
वह बोले-‘उधर तो एक सौ एक परसेन्ट अपने मुख्यमंत्री जी की स्थिति सॉलिड है। नए प्रदेश में उन्होंने बहुत काम किया है। तुम बताओ कस्बों में लोगों की क्या सोच है ?’
मैंने कहा-‘यहां के लोग तो मुख्यमंत्री जी से खुश नहीं हैं। उन्होंने छोटे कार्यकर्ताओं को तो जड़ से ही काट दिया है।’
वह बोले-‘यह तो कार्यकर्ताओं की फैलाई हुई हवा है। देखना इस बार जब चुनाव होंगे, अपने मुख्यमंत्री जी ही दोबारा अपना मंत्रीमंडल बनाएंगे। मेरे हिसाब से तो उन्हें कोई डिगा नहीं सकता। उनकी जीत और मुख्यमंत्री पद पक्का है।’
मैंने कहा-‘यार! बहुत दिनों बाद मिले हो यह सब तो चलता ही रहेगा। पहले यह बताओ कि राजधानी में घर कहां है तुम्हारा ?’
वह बोले-‘ठीक मंत्रालय के पीछे है। किसी से भी पूछोगे तो बता देगा।’
मैंने कहा-‘इसीलिए तुम पर मंत्रालय और अपने मुख्यमंत्री का प्रभाव है।’
वह कुछ नहीं बोले। मैं समझ गया कि जरूर इनकी कोई फाइल मुख्यमंत्री के मंत्रालय में अटकी होगी।
और खरगोश फिर हार गया
हमेशा की तरह इस बार भी कछुए और खरगोश में दौड़ की प्रतियोगिता हुई और हर बार की तरह इस बार भी कछुए की जीत हुई।
प्रतियोगिता के संचालक ने खरगोश से उसकी हार की प्रतिक्रिया जाननी चाही। पेड़ के नीचे लेटे-लेटे खरगोश ने बड़े इत्मीनान से जम्हाई लेते हुए जवाब दिया-
’सदियों से हमारे पुरखे इस दौड़ में हारते चले आ रहे हैं, फिर भला मैं इस चली आ रही परिपाटी को कैसे बदल सकता हूं…आखिर हमारे पुरखों की इमेज का सवाल है।’
इसके बाद संचालक ने कछुए से परंपरानुसार जीत की प्रतिक्रिया जाननी चाही तो कछुए ने कहा-‘वैसे तो सदियों से हम खरगोश से जीतते आये हैं, लेकिन इस बार खरगोश ने मुझे चेतावनी दी थी कि वह जीतेगा…तो मैंने मामला सेट कर लिया और खरगोश से मैच फिक्सिंग कर लिया था, इसलिए वह हार गया….।’
‘लेकिन आप यह बात किसी को बताइयेगा मत…और इस सच्चाई को अपने तक सामित रखना।’
महेश राजा
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