मरूथल का यात्री ‘निराला’
सोनिका प्रकाशन
लक्ष्मीगंज लश्कर, ग्वालियर-1
मूल्य रू150.00
महाकवि निराला को पहली बार प्रोफेसर डॉक्टर लक्ष्मण सहाय ने नव वैशिष्टय कलेवर में प्रस्तुत किया, वैशिष्टय यह है कि इसमें ‘निराला’ में मानववाद को आधार बनाया गया। उन्होंने सिद्ध भी कर दिया कि ‘निराला’ अपनी रचनाधर्मिता के सृजन वैविध्य के उन आयामों को स्थापित कर पाए, जिसकी थाह पाना हर किसी के लिए संभव नहीं तो कष्टप्रद अवश्य है। डा. लक्ष्मण सहाय, समीक्षक, विश्लेषक तो हैं, परन्तु उनकी अन्वेषक की दृष्टि व्यापक एवं वेधक है, इसीलिए उनकी कृति ‘निराला’ के समग्र आयमों को स्पर्श करती है। यह कृति ‘निराला’ के व्यक्तित्व कृतित्व के अबूझ, गूढ़ गांठां को सुलझा कर, निराला के मात्र कृतित्व की ही नहीं उनके अन्तरमन की पीड़ा, दर्द, विद्रोह, परदुःख, कातरता का सन्तुलित समन्वयिक पक्ष बना दिया। उनकी कृति साहित्य सुधि पाठकां के लिए नए प्रतिमान रचेगी जो उनको संतुष्टि दे, जिज्ञासा शान्त करने में समर्थ है।
इस कृति में डा. सहाय ने निराला, तुलसी, कबीर को समकक्ष रखा, क्योंकि तीनों ही समाज में व्याप्त विद्रूपताओं पर तीक्ष्ण व्यंग्य किए हैं, व्यंग्य करने में दुखी विद्रोही रचनाकार ही सक्षम एवं समर्थ होता है। ‘मरूथल का यात्री निराला‘ में डॉ. सहाय ने निराला की मानसिक, सामाजिक, वैयक्तिक, आयामों को रेखांकित कर इसे सम्पूर्ण समग्र, सार्थक अभिधान बना दिया। डॉ. सहाय की सोच बस्तर के साहित्य सर्जक ‘लाला जगदलपुरी’ की सापेक्ष समानता, एक निकष की तरह कसी गई शोधकर्ता, छात्रों, पाठकों के लिए एक अमूल्य प्रेरणास्पद ग्रंथ सिद्ध होगी। इस कृति के आवरण पृष्ठ चित्रांकन के लिए इन्दु जैन व उपयुक्त शीर्षक के लिए डा. साधना भी प्रभासित रहेंगी।
पुस्तक समीक्षा बी.एन.आर नायडू